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लंदन से पढ़कर आई यह युवती, 'परिवर्तन' कर संवार दी हजारों की जिंदगी

लंदन स्कूल ऑफ इकोनोमिक्स से पढऩे के बाद सिवान की इस युवती ने अपने गांव को नई पहचान दिलाने का सोचा और परिवर्तन संस्था की शुरुआत कर गांव के लोगों को रोजगार परक बना दिया।

By Kajal KumariEdited By: Published: Sat, 15 Sep 2018 07:40 PM (IST)Updated: Sun, 16 Sep 2018 09:41 AM (IST)
लंदन से पढ़कर आई यह युवती, 'परिवर्तन' कर संवार दी हजारों की जिंदगी

सिवान [कीर्ति पांडेय]। बिहार के शहर सिवान स्थित जीरादेई की पहचान अभी तक देश के पहले राष्ट्रपति देशरत्न डॉ. राजेंद्र प्रसाद से है, लेकिन अब इसे नई पहचान देने का काम कर रही हैं सेतिका सिंह। लंदन स्कूल ऑफ इकोनोमिक्स से पढऩे के बाद उनके सामने बेहतर भविष्य के सभी दरवाजे खुले हुए थे, लेकिन अपने गांव को नई पहचान दिलाने के लिए उन्होंने अपनी कर्मस्थली अपने गांव को ही चुना।

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इन्होंने अपने गांव में आठ एकड़ की भूमि में 'परिवर्तन' कैंपस खोला और यहां महिलाओं, पुरुषों के व्यक्तित्व विकास के गुर सिखा कर उन्हें रोजगार परक बनाया। इस कैंपस में आसपास के गांव के बेरोजगारों को निशुल्क  व्यक्तित्व निखार के गुर बताए जाते हैं। यही कारण है कि अभी तक इस संस्था से दो प्रखंडों के 36 गांव की हजारों महिलाएं-पुरुष रोजगार से जुड़ चुके हैं। 

कौन हैं सेतिका सिंह 

सेतिका सिंह मूल रूप से जीरादेई प्रखंड के नरेंद्रपुर गांव की रहने वाली हैं, इनकी प्रारंभिक पढ़ाई-लिखाई पटना और देश -विदेशों में हुई है। बावजूद इसके इन्होंने अपना कर्मस्थल अपनी गांव को चुना। वर्तमान में सेतिका सिंह पटना में रहती हैं और समय समय पर यहां आती रहती हैं। 

2009 में रखी आधारशीला, 2011 से अस्तित्व में आया 'परिवर्तन'

'परिवर्तन' कैंपस में बतौर प्रबंधक के रूप में काम कर रहे आलोक कुमार ने बताया कि इस संस्था की स्थापना 2009 में की गई, लेकिन सारी व्यवस्था को सुसज्जित करने में दो वर्षों का समय लगा। 2011 के बाद से यहां सारे काम शुरू हुए। इस कैंपस में स्मार्ट क्लासेज, कंप्यूटर रूम, सिलाई-कढ़ाई, सहित स्कूल की व्यवस्था है। यह कैंपस आठ एकड़ में फैला हुआ है। 

व्यक्तित्व निखार के गुर के लिए नहीं है कोई शुल्क

प्रबंधक ने बताया कि इस कैंपस में हर महीने के काम का खाका तैयार होता है। चार्ट को दीवारों पर लगा दिया जाता है और पूरे महीने उसके अनुसार काम किया जाता है। वहीं आसपास की महिलाओं, पुरुषों को रोजगार परक बनाने के लिए कोई भी शुल्क लोगों से नहीं लिया जाता है। इतना ही नहीं संस्था में जुड़े लोगों को रोजगार के अवसर भी दिए जाते हैं। 

 

दो शिफ्ट में  150 महिलाएं एक साथ करती हैं काम

जानकारी के अनुसार 'परिवर्तन' कैंपस में जीरादेई और आंदर प्रखंड के आठ पंचायत के 36 गांव की महिलाएं, पुरुष यहां पर काम करती हैं। ये महिलाएं सिलाई-कढ़ाई, स्कूल ड्रेस तैयार करना, आदि का काम करती हैं। इसके लिए दो शिफ्ट में काम चलता है। पहली शिफ्ट सुबह 6 से 1 व 1-6 चलता है। 

 

22 स्कूलों और 44 आंगनबाड़ी केंद्रों से है जुड़ा

बता दें कि 'परिवर्तन' कैंपस में बेरोजगारों को रोजगार परक बनाने वाले प्रशिक्षक जिले के 22 सरकारी स्कूलों में भी जाकर अपना योगदान देते हैं। यहां वे बच्चों को पर्सनालिटी डेवलपमेंट की जानकारी देते हैं। जिन बच्चों को किताबें या कंप्यूटर की जरूरत महसूस होती है वे नरेंद्रपुर स्थित 'परिवर्तन' कैंपस में आकर निश्शुल्क पढ़ते भी हैं। 

खादी को बढ़ावा देना मुख्य उद्देश्य

मिली जानकारी के अनुसार 'परिवर्तन' का मुख्य उद्देश्य खादी को बढ़ावा देना है। इसलिए यहां विशेष कर खादी के कपड़ों के काम पर ध्यान दिया जाता है। खादी के कपड़ों की बुनाई भी की जाती है। 

 

पुरुषों के लिए खेती की पाठशाला

'परिवर्तन' कैंपस में ही एक पाठशाला भी बनाया गया है। जहां खेती से जुड़े किसानों को खेती के नए किस्मों, गुर के बारे में बताया जाता है। ताकि वे इसका प्रयोग अपनी खेतों में करें और बेहतर उत्पादन कर आर्थिक लाभ अर्जित करें। 

सेरामिक से बनी बर्तनों को बाजार में लाने की तैयारी

जानकारी के अनुसार 'परिवर्तन' में काम करने वाले लोगों द्वारा जल्द ही सेरामिक के बर्तनों को बाजारों में बिक्री के लिए उतारा जाएगा। ऐसा इसलिए कि मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हारों को भी रोजगार मिल सके। हालांकि इसका प्लान अभी तैयार किया जा रहा है। जिसे गोपनीय रखा गया है।


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