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गन्ना किसानों के लिए चीनी उद्योग अब बन रहा अभिशाप

कभी नगदी फसल के रूप में किसानों के लिए लाभकारी गन्ना की खेती आज घाटे का सौदा बन गया है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 17 Apr 2019 12:23 AM (IST)Updated: Wed, 17 Apr 2019 12:23 AM (IST)
गन्ना किसानों के लिए चीनी उद्योग अब बन रहा अभिशाप

सीतामढ़ी। कभी नगदी फसल के रूप में किसानों के लिए लाभकारी गन्ना की खेती आज घाटे का सौदा बन गया है। पिछले साल रीगा चीनी मिल को अपना गन्ना देने के बाद आज तक अधिकतर किसान खाली हाथ हैं। किसानों के गन्ना मूल्य का 135 करोड़ रुपये बकाया है। जबकि इस साल भी किसान चीनी मिल को गन्ना दे रहे हैं। इसका भुगतान कब होगा कहा नहीं जा सकता। चीनी मिल के पास अभी भी पेराई के लिए करीब 10 लाख क्विटल गन्ना खेतों मे खड़ा है। मिल की पेराई धीमी होने तथा भीषण गर्मी से किसान परेशान हैं। गन्ना की खेती शोक का कारण बन गया है। अभी गन्ना की कटनी की मजदूरी बहुत बढ़ गई है किसान गन्ना को घर में रख नहीं सकता इसलिए हर हाल में आपूर्ति सुनिश्चित कराना चाहता है। विगत 5 वर्ष पूर्व जहां 65 लाख क्विटल गन्ना की पेराई होती थी वह घटकर 38-40 लाख क्विटल पर आ गया है। राज्य के अन्य चीनी मिल जिसके पास अतिरिक्त कोई ईकाई नहीं है वह गन्ना मूल्य का भुगतान कर रहा है लेकिन दो तीन अलग ईकाई होने पर भी रीगा चीनी मिल के किसान तबाह हैं और धीरे-धीरे गन्ना खेती से मुंहमोड़ रहे हैं। इस चुनावी शोर में गन्ना किसानों के दर्द मुद्दा बनेगा या उनकी आवाज नक्कारखाने में तूती की आवाज बन कर रह जाएगी।

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--गन्ना मूल्य भुगतान के लिए दर-दर भटक रहे किसान सीतामढ़ी जिले का एकमात्र चीनी उद्योग वरदान की जगह अभिशाप बनता जा रहा है। आज चीनी मिल पर किसानों के गन्ना मूल्य का 2017-18 तथा 2018-19 का करीब 135 करोड़ रुपये बकाया है। किसान गन्ना मूल्य के भुगतान के लिए दर-दर भटकने को विवश हैं। संयुक्त किसान संघर्ष मोर्चा रीगा एवं अन्य किसान संगठनों के तत्वावधान में लगातार धरना, प्रदर्शन किया गया। गन्ना उद्योग विकास बिभाग तथा मुख्यमंत्री के यहां दर्जनों स्मार-पत्र भेजा गया। सीएम नीतीश कुमार के सीतामढ़ी आगमन पर उन्हे स्मार पत्र देकर भी मिल की चीनी जब्त कर रिसीवर बहाल करने की मांग की गई थी। इस पर सीएम ने संज्ञान लिया और रिसीवर बहाल भी किया गया। सरकारी आदेश पर चीनी, ईथेनाल, कोजेन सहित अन्य श्रोतों से प्राप्त राशि में से 85 फीसद किसानों तथा 15 फीसद मिल के खाता मे भेजने का आदेश हुआ। इसके तहत भुगतान भी शुरू हुआ। इस बीच 2018 में ही केन्द्र सरकार के आदेश से चीनी बिक्री का कोटा निर्धारण से चीनी की बिक्री सीमित हो गई और किसानों के बकाये के भुगतान की गति धीमी होती गई। दूसरा नया पेराई सत्र भी कुछ दिनों में समाप्त होने वाला है और अभी भी पिछले सत्र का करीब 35 करोड़ रुपये बकाया है जबकि नये सत्र मे राज्य के सभी चीनी मिलो द्वारा भुगतान किया जा रहा है अकेला रीगा चीनी मिल है जो नये सत्र का भुगतान शुरू ही नहीं किया है। इस बीच नये सत्र के पेराई के समय राज्य सरकार ने अपने पिछले आदेश को संशोधित करते हुए चीनी बिक्री की राशि का 70 फीसद किसानों के खाता में तथा 30 फीसद मिल के खाता मे भेजने का निर्णय दे दिया जिससे भुगतान की गति और धीमी हो गई है । महंगी हो गई गन्ना की खेती, कर्ज में डूब रहे किसान गन्ना की खेती से घर-परिवार चलाने वाले किसान चीनी मिल की व्यवस्था से अब तबाही के कगार पर पहुंच गए हैं। पिछले साल खेत में उपजे गन्ना का अब तक मूल्य का भुगतान नहीं हुआ। जिस कारण घर खर्च हो या खेती, कर्ज लेकर ही करना पड़ा। जबकि इस बार भी गन्ना मूल्य का भुगतान नहीं हुआ। अब उनके आगे फिर अंधेरा ही छा रहा है। उनकी समस्या इस चुनाव में मुद्दा बनेगा या आश्वासन एवं भाषण तक ही सिमट कर रह जाएगा। मोर्चा के संरक्षक डा. आनंद किशोर तथा अध्यक्ष रामतपन सिंह ने सीएम से किसान हित में सरकार के पूर्व के आदेश को लागू करते हुए नये सत्र में भी रिसीवर बहाल रखने का आग्रह किया है तथा पूर्व की भांति ईथेनाल तथा कोजेन सहित अन्य श्रोतों से प्राप्त राशि का भी 85 फीसद किसानों के खाता में भेजे जाने का आग्रह किया है इससे भुगतान की गति तेज हो सके। अभी पिछले वर्ष की बची चीनी की बिक्री से पिछला भुगतान संभव नहीं है। इस संबंध में विभाग द्वारा सरकार को प्रस्ताव भी भेजा गया है।


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