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यहां के लोगों को गैस सिलेंडर की बढ़ती कीमत से नहीं पड़ता फर्क, निकाल लिया ये उपाय

बिहार के सीतामढ़ी में लोगों ने रसोई गैस के झंझट से मुक्ति का नया उपाय निकाला है। अब वे बाजार से गैस सिलेंडर नहीं खरीदते, बल्कि शौचालय की टंकी से निकलने वाले गैस से चूल्‍हा जलता है।

By Ravi RanjanEdited By: Published: Mon, 04 Jun 2018 03:56 PM (IST)Updated: Tue, 05 Jun 2018 11:09 PM (IST)
यहां के लोगों को गैस सिलेंडर की बढ़ती कीमत से नहीं पड़ता फर्क, निकाल लिया ये उपाय
यहां के लोगों को गैस सिलेंडर की बढ़ती कीमत से नहीं पड़ता फर्क, निकाल लिया ये उपाय

सीतामढ़ी [जेएनएन]। बिहार के सीतामढ़ी के एक गांव के लोगों को गैस सिलेंडर की बढ़ती कीमत का कोई फर्क नहीं पड़ता। साथ ही स्वच्छता के एक कदम से रसोई गैस के झंझट से मुक्ति के साथ खेत के लिए जैविक खाद भी भरपूर मिल रहा है। यह सब हो रहा है जिले के चोरौत प्रखंड के परिगामा गांव में। यहां एक दर्जन से अधिक परिवारों का चूल्हा उनके घरों में बनी शौचालय की टंकी से निकलने वाली मिथेन गैस से जलता है। अब तो अन्य ग्रामीणों के साथ आसपास के गांवों के लोग भी इसके लिए आगे आ रहे हैं।

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इस तरह हुई शुरुआत

दिसंबर 2016 में तत्कालीन डीएम राजीव रौशन ने स्वच्छता संबंधी बैठक में जिलेभर से आए मुखिया के साथ खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) पर चर्चा की। साथ ही शौचालय की टंकी से निकलने वाली मिथेन गैस और उसके उपयोग के बारे में जानकारी दी। कम लागत में टंकी और शौचालय निर्माण के लिए ग्रामीणों को जागरूक करने को कहा।

उसी दौरान डीएम ने नालंदा के तकनीशियन मिलन पासवान के बारे में जानकारी दी, जो इसका निर्माण करते थे। बैठक के बाद गांव आए परिगामा के मुखिया संजय साह ने इसे लेकर ग्रामीणों को जागरूक करना शुरू किया। सबसे पहले गांव के रामचंद्र कामत के घर जून 2017 में इस तरह का शौचालय मिलन पासवान ने बनाया। फिर तो पृथ्वी कापड़, राजीव कुमार, उमेश कापड़, अशोक, प्रेम, दशरथ साह, राजाराम, रामस्वार्थ साह, रामसनेही कामत एवं ब्रजलाल राय समेत करीब 15 लोगों ने इस तरह की टंकी बनवाई।

घड़े के आकार का निर्माण

इस तरह के शौचालय की टंकी का निर्माण दो घन मीटर में घड़े के आकार का होता है। टंकी में मोटा पाइप लगा दिया जाता है। थोड़ी ऊंचाई के बाद सॉकेट और पतला पाइप लगाकर उसे चूल्हे तक पहुंचाया जाता है। कुल खर्च 20 से 25 हजार रुपये आता है। 12 घंटे में आधा किलो से अधिक गैस बनकर तैयार हो जाती है। इसमें अपशिष्ट पदार्थ 40 दिनों में जैविक खाद में बदल जाता है। जिसका उपयोग खेत में होता है। 

जलावन की चिंता से मुक्ति

गांव की मंजू देवी, उर्मिला देवी, शिव कुमारी देवी, इंद्रकला देवी और विभा देवी आदि का कहना है कि अब सरेह में लकड़ी चुनने जाने और धुआं से मुक्ति मिल गई है। गोइंठा बनाने की भी चिंता नहीं है। एलपीजी की अपेक्षा यह बेहतर है। खतरा न के बराबर है। पैसे की बचत के साथ गैस सिलिंडर लाने का झंझट भी खत्म हो गया है।

मुखिया संजय साह कहते हैं, इससे पैसे की बचत हो रही। लोगों में जागरूकता बढ़ी है। बीएओ उमेश प्रसाद ङ्क्षसह का कहना है कि शौचालय की टंकी से निकली मिथेन गैस में ताप अधिक होता है। इसका उपयोग पूरी तरह सुरक्षित है। सरकार 18 हजार रुपये अनुदान भी लाभुक को देती है।


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