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शिव के वियोग में 87 हजार साल रही सती : मोरारी बापू

सती शिव के वियोग में 87 हजार साल रही। सती के पिता दक्ष महाराज यज्ञ कर रहे थे। यज्ञ में दक्ष से बदला लेना चाहते थे।

By JagranEdited By: Published: Thu, 11 Jan 2018 01:48 AM (IST)Updated: Thu, 11 Jan 2018 01:48 AM (IST)
शिव के वियोग में 87 हजार साल रही सती : मोरारी बापू

सीतामढ़ी। सती शिव के वियोग में 87 हजार साल रही। सती के पिता दक्ष महाराज यज्ञ कर रहे थे। यज्ञ में दक्ष से बदला लेना चाहते थे। एक बार ब्रह्मा की सभा में दक्ष जी आए। सब देवता खड़े हुए। लेकिन राम के सुमिरन में लगे शिव जी का ध्यान उधर नहीं गया वे नहीं खड़े हुए। दक्ष जी दुखी हो गए। दामाद के ऐसे व्यवहार से अहंकारी ससुर को चोट लगती है। इसलिए आपके ससुर जब आएं तो जरूर खड़े हो जाइए। उक्त बातें मानस मर्मज्ञ प्रसिद्ध कथा वाचक मोरारी बापू ने सीतामढ़ी के खरका स्थित मिथिलाधाम में श्रीराम कथा के पांचवें दिन कही। बापू ने कहा कि दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया। सभी देवताओं को आमंत्रित किया। लेकिन शिव-सती को आमंत्रित नहीं किया। कोई सत्कर्म बदला लेने के लिए करो तो वह विफल हो जाता है। शिवजी सती को कथा सुना रहे थे। सती से कैलाश के ऊपर से विमान जाते हुए देखकर पूछती है देव लोग विमान से कहां जा रहे हैं। शिव जी पहले टालते हैं। लेकिन, सती जब कारण जानने की जिद करती है तो कहते हैं कि आपके पिता जी यज्ञ कर रहे हैं। वे देवता लोग कैलाश होकर इसलिए जा रहे हैं ताकि हमें जानकारी हो और हम जले। कहा कि हमारी मानसिकता ऐसी होती है। आपने अपने दैनिक जीवन में देखा होगा किसी से यदि बोलचाल बंद है। उसके यहां कोई यज्ञ प्रयोजन हो रहा है तो आपके पड़ोसी को जरूर बुलाएगा। पड़ोसी भी पूरे तामझाम के साथ आपको जलाते हुए उसमें शामिल होने जाएगा। इंसान में द्वेष की प्रवृति होती है। शिव ने कहा कि माता-पिता के घर बिना आमंत्रण के जा सकती हैं। गुरु के घर बिना आमंत्रण के जा सकती हैं। मित्र के घर बिना आमंत्रण के जा सकती हैं। आप भी अपने पिता के घर बिना आमंत्रण के जा सकती हैं। लेकिन, जहां स्नेह नहीं हो, बदला लेने की प्रवृति हो, वहां नहीं जाना चाहिए। पिता ने आपकी सब बहनों को बुलाया है। मेरे कारण आपको नहीं बुलाया है। इसलिए वहां मत जाइए। बापू ने कहा कि पत्नी किसी बात पर जिद करे तो समझाओ, नहीं माने तो तुम भी जिद मत करो, इससे घर का वातावरण बिगड़ता है। आखिरकार सती न मानी। शिव ने कहा मुस्कुराकर विदा लो। पिता के घर जब भवानी गई तो किसी ने सम्मान नहीं किया। सती ने योग अग्नि से अपना देह जलाया। अगले जन्म में भी पति के रूप में शिव की मांग की।

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शिव ने तीसरे नेत्र से कामदेव को किया भस्म

अगले जन्म में सती हिमाचल के घर पार्वती के रूप में जन्म ली। पुत्री के जन्म के समय ज्यादा उत्सव मनाया गया। आप लोग भी ऐसा ही करिए। पुत्री के जन्म पर मुंह मत बिगाड़ना। नारद ने नामकरण किया-उमा, अंबा, जगदंबा आदि। बहुत प्रसन्न हुए पति-पत्नी। घर वर कैसा मिलेगा इस बारे में नारद से पूछातो नारद ने कहा कि हे हिमाचल ऐसा पति मिलेगा जो अगुण होगा। जटिल होगा, निष्काम जीवन होगा। इतनी सुंदर कन्या को ऐसा मिलेगा। भवानी भी रो पड़ी। लेकिन, उनकी आंखों में खुशी के आंसू थे। वे समझ गई कि शिव ही पति के रूप में मिलेंगे। नारद ने पार्वती को तप करने की सलाह दी। उधर शिव जी से देवताओं ने आग्रह किया कि हिमाचल जब आपको आमंत्रित करें तो आप पार्वती से शादी करेंगे। इसके लिए सप्त ऋषि ने पहले पार्वती की परीक्षा ली। फिर शिव से कहा भगवान पार्वती का आपसे असीम अनुराग है। भगवान शिव समाधि में थे। कामदेव समाधि में विध्न किया। शिव ने तीसरे नेत्र से उन्हें भस्म कर दिया। कामदेव की पत्नी रोते हुए भगवान शिव के पास पहुंची तो शिव ने कहा कि तुम्हारा पति अब हर प्राणी के शरीर में विद्यमान रहेगा। शरीर रूप में तुमको कृष्णावतार में मिलेगा।

बेहोश हो गए बाराती स्वागत समिति के लोग

देवता लोग ताड़िकासुर के आतंक से परेशान थे। उसका संहार करने के लिए शिव के पुत्र का होना जरूरी था। स्वार्थी देवताओं ने शिवजी की प्रशंसा की। शिवजी समझ गए। शादी की तैयारी शुरू हो गई। शिव के गण उनका श्रृंगार करने लगे। चिता के भस्म से लेप लगाया जाने लगा। हाथ में त्रिशुल, डमरू। बैल की सवारी। दुनिया में पहली एवं आखिरी बार दूल्हा की ऐसी सजावट हुई। देवगण मजाक करने लगे। कहा कि इन लोगों के ससाथ चलने से प्रतिष्ठा गिरेगी। शिवजी समझ गए कि व्यवस्था के नाम पर देवता लोग मुझे विलग कर रहे हैं। उन्होंने दुनिया के तमाम भूत-प्रेत को आमंत्रित कर दिया। बारात हिमाचल प्रदेश पहुंची। देवता लोग आगे थे। हिमाचल के लोगों ने सोचा कि बाराती लोग जग इतने सुंदर है तो दूल्हा किता सुंदर होगा। देवताओं का भव्य स्वागत हुआ। इतने में भूत-प्रेत पहुंचे। स्वागत समिति के लोग माला पहनाना तो दूर खुद के गले में माला डाल बेहोश हो गए।

गिर गई महारानी मैना की आरती की थाली

महारानी मैना दूल्हे का परीक्षण करने आई। शिवजी की आरती उतारने गई तो आरती की थाली गिर गई। भगवान के भाल में चांद देख उन्होंने सोचा कि जिसके भाल में चांद हो उसको मेरे छोटे द्वीपों की क्या आरती। वह पार्वती को गोद में लेकर रो पड़ी। भवानी ने कहा कि सुख-दुख सबके भाग्य में होते हैं। आप इसे बदल नहीं सकती। सब नारद जी भड़क उठे। क्या ऐसे पति के लिए नारद ने पार्वती से इतनी तपस्या कराई। शिवजी ने प्राणी ग्रहण किया। शिव-पार्वती के नित नए नूतन बिहार से पार्वती ने कार्तिकेय को जन्म दिया। कार्तिकेय ने ताड़िकासुर को परलोक भेज दिया और देवताओं को शांति मिली।


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