ट्रेनों व बसों के साथ स्टेशन पर टूट रहा सुरक्षा चक्र, लौट रही भीड़ बेकाबू
प्रवासियों के लौटने में आई तेजी के साथ ट्रेनों व स्टेशनों पर सुरक्षा चक्र टूटने लगा है।
सीतामढ़ी। प्रवासियों के लौटने में आई तेजी के साथ ट्रेनों व स्टेशनों पर सुरक्षा चक्र टूटने लगा है। ट्रेनों में बेतहाशा भीड़ उमड़ रही है तो स्टेशनों के साथ बसों में भी शारीरक दूरी का घोर उल्लंघन हो रहा है। शायद यहीं वजह है कि कोरोना पॉजिटिव के केस जिले में तेजी से बढ़ने लगी है। तीन-चार दिनों में संक्रमण तेजी से बढ़ता हुआ दिखाई पड़ रहा है। एक दिन पहले जहां परिहार में एकसाथ 13 मामले सामने आए वहीं उसी प्रखंड में रविवार को भी चार नए केस मिलने से हड़कंप मचा हुआ है। स्टेशन पर प्रवासियों के लौटने पर अधिकतर को मास्क भी नहीं मिल पा रहे हैं। भीड़ के कारण खाने-पीने में भी कटौती हो गई है। कटौती इसलिए भी कि ट्रेनें अपने निर्धारित समय से 15-20 घंटे विलंब हो रही है, जिससे प्रवासियों के लिए पहले से तैयार खाना बासी होकर बेस्वाद हो जा रहा है, जिसको कोई खाना नहीं चाहता है। रविवार को मध्य प्रदेश के नरहड़ से एक ट्रेन से 1595, आनंद गुजरात से 1192, बेंगलुरू से दरभंगा जाने वाली ट्रेन से 20 तो जयपुर से वाया सीतामढ़ी होकर हाजीपुर जाने वाली ट्रेन से 266 प्रवासी पहुंचे। गुजरात के अहमदाबाद व भरुच से आने वाली ट्रेन 15-16 घंटे विलंब थीं। चार ट्रेनें सोमवार को आनी हैं। इनमें दो सूरत से, एक आनंद विहार दिल्ली से तथा एक लुधियाना से पहुंचने वाली है। ट्रेनों से उतरने के बाद बसों से प्रवासियों को उनके संबंधित क्वारंटाइन सेंटरों में भेजा गया। बसों में भेड़-बकरियों की तरह ठूसकर ले जाए गए।
---------------- अब लौटा हुआ सामान लाने के लिए टिकट कटाने की बेचैनी
कोरोना संक्रमण के खतरे के बाद जान की बाजी लगाकर घर लौटने वाले एकबार फिर छोड़ आए उन शहरों में जाने के लिए परेशान हैं। उनका बोरिया-बिस्तर सब वहीं छूट गया है, इसलिए जाने की बेचैनी में रेलवे स्टेशन के टिकट काउंटर पहुंच रहे हैं। उनको आसानी से टिकट नहीं मिल रही। बेलसंड बाजार के संजय कुमार रविवार को टिकट के लिए काउंटर पर लाइन लगे थे। पूछने पर कहा कि लौटने की जल्दबाजी में जरूरी सामान वहीं छूट गए। अब वो सामान लाने के लिए जाने की मजबूरी है। संजय का कहना है कि अब जो लौट के आएंगे फिर न जाएंगे। दिल्ली वालों की दिलेरी हमने देख ली। लॉकडाउन में रोजी-रोटी छीन गई तो मकान मालिक व राशन वाला दुकानदार ने भी हाथ खड़े कर लिए। वहां रहता तो भूखमरी की नौबत आती, शव को कंधे देने वाला भी नसीब नहीं होते। दिल्ली के आजादपुर के राहत कैंपों में भोजन के नाम पर नाश्ता भी ठीक ढंग से नहीं मिल पाता था। वाणिज्य अधीक्षक हरिकिशोर राम ने बताया कि लगातार तीसरे दिन 16 टिकटें कटीं। अधिकतर दिल्ली-मुंबई की थीं। 13500 रुपये टिकटों की बिक्री से आय हुई।