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सार को ग्रहण करें असार को छोड़ें क्योंकि सृष्टि का सार तत्व है परमात्मा: आस्था भारती

सीतामढ़ी। शहर स्थित एसआरके गोयनका कॉलेज मैदान में हो रहे सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के चौथे दिन दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के संस्थापक व संचालक श्रीआशुतोष महाराज की शिष्या भागवताचार्य महामनस्वीनि विदुषी सुश्री आस्था भारती ने श्री कृष्ण की बाल लीला का प्रसंग सुना श्रद्धालुओं को भाव विभोर कर दिया।

By JagranEdited By: Published: Sat, 19 Oct 2019 12:51 AM (IST)Updated: Sat, 19 Oct 2019 06:17 AM (IST)
सार को ग्रहण करें असार को छोड़ें क्योंकि सृष्टि का सार तत्व है परमात्मा: आस्था भारती
सार को ग्रहण करें असार को छोड़ें क्योंकि सृष्टि का सार तत्व है परमात्मा: आस्था भारती

सीतामढ़ी। शहर स्थित एसआरके गोयनका कॉलेज मैदान में हो रहे सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के चौथे दिन दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के संस्थापक व संचालक श्रीआशुतोष महाराज की शिष्या भागवताचार्य महामनस्वीनि विदुषी सुश्री आस्था भारती ने श्री कृष्ण की बाल लीला का प्रसंग सुना श्रद्धालुओं को भाव विभोर कर दिया। कहा, दो घंटे तक भगवान श्रीकृष्ण के पालना में बीते बालपन को 'कान्हा झूले पालना, झूलावे महारानी' जैसे भजन में यशोदा व उनकी साखियों के रूप में कथा में यजमान की भूमिका निभा रही महिलाओं ने श्रीकृष्ण की पालना को ऐसे झूला रही थीं जिससे गोकुल की छटा दिख रही थी। दूसरी ओर, हाथी घोड़ा पालकी जय कन्हैया लाल की, जैसे भजन में पूरा पंडाल झूम उठा। कहा कि भगवान श्री कृष्ण ने गोपियों के घरों से माखन चोरी की। इसके पीछे भी आध्यात्मिक रहस्य है। दूध का सार तत्व माखन है। उन्होंने गोपियों के घर से केवल माखन चुराया अर्थात् सार तत्व को ग्रहण किया और असार को छोड़ दिया। प्रभु हमें समझाना चाहते हैं कि सृष्टि का सार तत्व परमात्मा है। इसलिए असार संसार के नश्वर भोग पदार्थों की प्राप्ति में अपने समय, साधन और साम‌र्थ्य को अपव्यय करने की अपेक्षा हमें अपने अंदर स्थित परमात्मा को प्राप्त करना चाहिए। इसीसे जीवन का कल्याण संभव है। साध्वी ने कहा कि वास्तविकता में श्री कृष्ण केवल ग्वाल-बालों के सखा भर नहीं थे, बल्कि उन्हें दीक्षित करने वाले जगदगुरु भी थे। श्री कृष्ण ने उनकी आत्मा का जागरण किया और फिर आत्मिक स्तर पर स्थित रहकर सुंदर जीवन जीने का अनूठा पाठ पढ़ाया। संस्थान के गौ संरक्षण व संवर्धन कार्यक्रम-कामधेनु'की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि गौ भारतीय संस्कृति का आधार है। भगवान श्री कृष्ण कहते हैं- 'धेनूनामस्मि कामधुक'-धेनुओं में मैं कामधेनु हूं। इस प्रकार गौ को उन्होंने अपनी ही विभूति बताया व सदा ही गोरोचन का तिलक अपने मस्तक पर सुशोभित किया। लेकिन, आज हमारी देसी गाय की नस्लें लुप्त होती जा रही हैं। इसी कारण श्री आशुतोष महाराज के दिशा-निर्देशन में संस्थान द्वारा कामधेनु प्रकल्प चलाया जा रहा है। इसके अंतर्गत गांव की उन्नति के लिए जन-जन को प्रेरित और प्रोत्साहित किया जा रहा है। साध्वी ने स्वयं व्यासपीठ से सभी सीतामढ़ी निवासियों से गोमाता के संरक्षण की अपील की। भजन में साध्वी सुश्री अवनी भारती, साध्वी सुश्री शालिनी भारती, साध्वी सुश्री सुमन भारती, साध्वी सुश्री बोधया भारती, स्वामी प्रमितानंद व गुरु श्रेष्ठ ने स्वर दिया। इन भजनों को ताल व लयवध किया-साध्वी सुश्री दीपा भारती, साध्वी सुश्री महाश्वेता भारती, साध्वी सुश्री अभया भारती, साध्वी सुश्री रुचिका भारती, साध्वी सुश्री वीणा भारती, साध्वी सुश्री प्रियंका भारती, स्वामी मुदितानंद, स्वामी करुणेशानंद व गुरु भाई अमित ने किया।

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