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मनुष्य बनाने की प्रक्रिया है रामकथा : मोरारी बापू

शहर के खरका रोड स्थित रामकथा स्थल मिथिलाधाम में रामकथा के अंतिम दिन रविवार को मानस मर्मज्ञ मोरारी बापू ने श्रीराम के वनवास से लेकर वापस अयोध्या लौटने तक का प्रसंग सुनाते हुए कहा कि मनुष्य बनाने, मानवीय गुण विकसित करने की प्रक्रिया है रामकथा।

By JagranEdited By: Published: Mon, 15 Jan 2018 01:35 AM (IST)Updated: Mon, 15 Jan 2018 01:35 AM (IST)
मनुष्य बनाने की प्रक्रिया है रामकथा : मोरारी बापू

सीतामढ़ी । शहर के खरका रोड स्थित रामकथा स्थल मिथिलाधाम में रामकथा के अंतिम दिन रविवार को मानस मर्मज्ञ मोरारी बापू ने श्रीराम के वनवास से लेकर वापस अयोध्या लौटने तक का प्रसंग सुनाते हुए कहा कि मनुष्य बनाने, मानवीय गुण विकसित करने की प्रक्रिया है रामकथा। कहा कि अयोध्या में 12 वर्ष रहने के बाद राजा दशरथ की आज्ञा से श्रीराम को 14 साल का वनवास मिला। उनके साथ सीता और लक्ष्मण भी गए। वन गमन के दौरान रास्ते में प्रयाग में भारद्वाज ऋषि के आश्रम में जाकर उनसे मिल। वहां से आगे गुरु वाल्मिकी से मिले। विश्वामित्र ने रहने के लिए 14 स्थान दिखाए। भगवान श्रीराम ने चित्रकुट में निवास किया। इस बीच राजा दशरथ का निधन हुआ। भरत के साथ अयोध्यावासी चित्रकुट पहुंचे और भगवान राम से अयोध्या लौटने का आग्रह किया। पितृ आज्ञा एक ओर और भरत का प्रेम एक ओर उन्होंने इसे भरत पर छोड़ दिया। प्रेमी समर्पण करता है इसलिए 'जेहि विधि प्रभु प्रसन्न होईहे ' कह भ्राता राम के चरण पादुका लेकर वापस अयोध्या लौट गए। वापस अयोध्या लौटने पर पहले वशिष्ठ से मिल कर कहा कह प्रभु श्रीराम जब तक वनवास में रहेंगे और मैं राजमहल में, ऐसा ठीक नहीं है। मैं राजकाज चलाउंगा लेकिन उदासीन बन नंदीग्राम में उन्हीं तरह रहूंगा। लेकिन वशिष्ठ जी के कहने पर भरत माता कौशल्या से अपने मन की बात कही। कौशल्या ने भरत को अनुमति दे दी। तब शत्रुध्न ने पूछा माता मैं कहां जाउं। माता कौशल्या ने तुम सूर्यवंश के हो। सूर्य को जलना ही होता है यानी सहना ही होगा। शत्रुध्न ने स्वयं को माताओं की सेवा में लगा दिया। इधर, वनवास के दौरान राम-सीता और लक्ष्मण अत्री ऋषि के आश्रम में गए वहां अनसूइया और जानकी की भेंट हुई। वहां से कुंभज ऋषि के आश्रम में गए। वहां गोदावरी नदी के तट पर पंचवटी में निवास किया। इसी क्रम में सूर्पणखा आई लक्ष्मण जी ने उन्हें दंडित किया। खर-दूषण से युद्ध हुआ। इसके बाद एक दिन लक्ष्मण कंद मूल लाने गए थे तभी प्रभु श्रीराम ने सीता से कहा मैं अब लीला करने जा रहा हूं इसलिए आप अग्नि में प्रवेश कर जाएं। अब केवल आपका प्रति¨बब यहां रहेगा। जिसे रावण द्वारा हरण किया जाएगा। यह सुन सीताजी अग्नि में प्रवेश कर गई। इसके बाद एक दिन मारिच मृग बन कर आया और सीता को लुभाया। राम मृग को मारने निकले और रावण सीता का हरण कर ले गया। उन्हें बचाने में जटायु ने बलिदान दिया। इधर, पंचवटी खाली देख राम सीते-सीते कहते रो पड़े। सीता की खोज में निकले। रास्ते में जटायु मिला उसे प्रभु राम के बाहों में निर्वाण को प्राप्त हुआ। फिर आगे सबरी के आश्रम में गए। सबरी ने उनकी आवाभगत की। प्रभु राम ने कहा मैं जात-पात, धर्म-कुल नहीं देखता सिर्फ भक्ति देखता हूं। सीता की खोज के दौरान बालि का निर्वाण हुआ। सुग्रीव, जाम्वंत, हनुमान, अंगद एवं वानरों की सेना के साथ रावण से युद्ध की तैयारी शुरू हो गई। समुद्र में नल-नील के सहयोग से सेतु बनाया गया। वहीं, भगवान श्रीराम ने भगवान रामेश्वरम की स्थापना कर पूजा अर्चना की। राम-रावण के बीच युद्ध हुआ। रावण को निर्वाण प्राप्त हुआ। रावण का तेज राम के रूप में समा गया। श्रीराम के कहने पर सीता अग्नि से बाहर आ गई। वहां से पुष्पक विमान से राम-सीता, लक्ष्मण, हनुमान, अंगद सहित कई वानर भी अयोध्या के लिए रवाना हुए। अयोध्या पहुंचने पर भगवान श्रीराम -सीता पहले माता कैकेयी से मिले। फिर माता कौशल्या एवं अन्य माताओं से। पूरे अयोध्या में खुशी छा गई। भगवान श्रीराम का राजतिलक हुआ और रामराज की स्थापना हुई।

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