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125 में सिर्फ 25 संस्कृत विद्यालय चालू, शादी-ब्याह के लिए भी पंडित का टोंटा

सीतामढ़ी। जानकी की जन्मभूमि पर संस्कृत यानी देवभाषा पर संकट मंडरा रहा है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 03 Mar 2020 12:12 AM (IST)Updated: Tue, 03 Mar 2020 06:11 AM (IST)
125 में सिर्फ 25 संस्कृत विद्यालय चालू, शादी-ब्याह के लिए भी पंडित का टोंटा

सीतामढ़ी। जानकी की जन्मभूमि पर संस्कृत यानी देवभाषा पर संकट मंडरा रहा है। शादी-ब्याह और मांगलिक कार्यों में मंत्रोच्चार तक ही यह भाषा सिमटकर रह गई है। विद्यालयों के बंद होने से शादी-ब्याह कराने के लिए विद्वान पंडितों का अभाव खटक रहा है। शहर के बीचोबीच जानकी स्थान का जानकी संस्कृत हाईस्कूल, जो कभी देशभर में अपना स्थान रखता था, अब वो बदहाल हो चुका है। नब्बे के दशक में जिले में 125 संस्कृत विद्यालय हुआ करते थे, अब मुश्किल 25 ही चालू हालत में रह गए हैं। इस भूमि पर देवभाषा की ऐसी दुर्दशा देखकर शिक्षाविद् चितित हैं। राष्ट्रपति पुरस्कार समेत कई पुरस्कारों से सम्मानित इस स्कूल के एक पूर्व प्राचार्य पंडित सुशील कुमार झा ने कहा कि अरसे से संस्कृत शिक्षक की बहाली नहीं हो सकी है। इसको तक्षशीला कहा जाता था। फिलहाल इस स्कूल में 126 विद्यार्थी नामांकित हैं। वही प्राचार्य समेत पांच शिक्षक हैं। यहां कालांतर में गुरुकूल प्रणाली के तहत छात्रों को शिक्षा के साथ ही संस्कार, सामाजिक दायित्व, नैतिक आचरण, योग व रचनात्मक कार्यो की शिक्षा दी जाती थी। लेकिन 90 के दशक के बाद स्कूल की स्थिति बदतर होती चली गई।

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तक्षशीला कहा जाने वाला श्रीजानकी संस्कृत हाई स्कूल की बदहाली रुलाती

प्राचीन भारत में तक्षशीला गंधार देश की राजधानी और शिक्षा का प्रमुख केंद्र था। ठीक उसी देव भाषा के उत्थान के लिए श्रीजानकी संस्कृत हाई स्कूल जाना जाता था। जानकी स्थान के तत्कालीन महंथ सियाशरण किशोरी दास ने वर्ष 1908 में एक एकड़ जमीन दान देकर इस उच्च विद्यालय की स्थापना की थी। उस दौरान भवन खपड़ैल का हुआ करता था। फिलहाल जमींदोज होने की स्थिति में है। तब यहां आचार्य यानी एमए तक की पढ़ाई होती थी। बड़े-बड़े विद्वान संस्कृत विषय पढ़ाया करते थे। तत्कालीन शिक्षक पंडित हरिशचंद्र झा, मोद नारायण मिश्र, मोसाफिर झा, शूलपाणी झा, रामचंद्र मिश्र व पंडित सुशील झा जैसे विद्वानों ने देश-दुनिया में जिले का मान बढ़ाया। इस स्कूल में देश व विदेश से छाद्ध संस्कृत विषय पढ़ने करते थे। बिहार के वर्तमान डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय हों या बिहार के पूर्व आइपीएस आचार्य किशोर कुणाल भी इसी भाषा के छात्र रहे हैं। कोट

देवभाषा की बदहाली देखकर मैं स्वयं आहत हूं। संस्कृत शिक्षा बोर्ड, पटना के अध्यक्ष और बिहार सरकार से इस निमित वार्ता कर ठोस पहल के लिए आग्रह करूंगा। मुझे इस भाषा से काफी लगाव रहा है। यह संस्कार की इस भाषा है और इसकी दुर्दशा से ही युवाओं में नैतिक पतन हो रहा है।

सुनील कुमार पिटू

सांसद, सीतामढ़ी।


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