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गोयनका कॉलेज प्रकरण में आठ दिनों तक प्राथमिकी दर्ज नहीं, पुलिस कटघरे में

एसआरके गोयनका कॉलेज में कुर्सी की लड़ाई में दोनों दावेदारों की आर से दिए आवेदन पर पुलिस प्रशासन की रहस्यमयी चुप्पी से सवाल खड़े हो रहे हैं।

By JagranEdited By: Published: Thu, 04 Jun 2020 10:40 PM (IST)Updated: Fri, 05 Jun 2020 06:17 AM (IST)
गोयनका कॉलेज प्रकरण में आठ दिनों तक प्राथमिकी दर्ज नहीं, पुलिस कटघरे में
गोयनका कॉलेज प्रकरण में आठ दिनों तक प्राथमिकी दर्ज नहीं, पुलिस कटघरे में

सीतामढ़ी। एसआरके गोयनका कॉलेज में कुर्सी की लड़ाई में दोनों दावेदारों की आर से दिए आवेदन पर पुलिस प्रशासन की रहस्यमयी चुप्पी से सवाल खड़े हो रहे हैं। नगर थाना पुलिस इस मामले में छानबीन से बाहर नहीं निकली है। इस प्रकार आठ दिनों बाद भी प्राथमिकी को लेकर ऊहापोह की स्थिति है। पूरे प्रकरण में एसपी अनिल कुमार की बेफिक्री लोगों को बहुत खल रही है। विश्वविद्यालय की ओर से प्राचार्य बहाल किए गए रामनरेश पंडित ने भी इस मामले में पुलिस की शिथिलता पर सवाल उठाया है। प्राचार्य ने कहा कि उनका आवेदन पुलिस अभी तक दबाकर रखी हुई है। हाईकोर्ट व विश्वविद्यालय के आदेश पर कॉलेज में योगदान देने आए तो विरोधियों ने जबरन रोक दिया। कुर्सी पर बैठने नहीं दी और मारपीट पर उतारु हो गए। उधर, पुलिस पर शिथिलता के आरोपों के बाद नगर थाना प्रभारी प्रभात रंजन सक्सेना का कहना है कि जांच चल रही है। छानबीन मुकम्मल होते ही प्राथमिकी दर्ज की जाएगी। जानाकारों का कहना है कि छानबीन की आड़ में पुलिस किसी मामले में प्राथमिकी दर्ज करने से नहीं बच सकती। दिए गए आवेदन पर तुरंत प्राथमिकी दर्ज करनी होती है। छानबीन उसके बाद की प्रक्रिया है। अगर, मामला निराधारा पाया गया तो संबंधितों पर भादवि की धारा 211/182 के तहत उल्टा केस दर्ज करने का अधिकार भी पुलिस के पास होता है। इस बीच सामाजिक न्याय मोर्चा के संयोजक मंडल सदस्य विनोद बिहारी मंडल, ग्यासुद्दीन अंसारी, उमेश पासवान, मदन राम, अनिल कुमार, शिवशंकर पासवान ने विश्वविद्यालय की जांच समिति को लपेटे में लिया है। उनका कहना है कि जांच समिति सिर्फ कोरम पूरा कर लौट गई। समिति में शामिल पदाधिकारियों पर मोर्चा ने दूसरे पक्ष के मेलजोल में आकर एकपक्षीय कार्रवाई का आरोप भी लगाया है। मोर्चा ने साफ कहा है कि जांच समिति की बदौलत नैसर्गिक न्याय की उम्मीद नहीं है।

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तब कॉलेज में योगदान नहीं करने दिया गया तो विश्वविद्यालय में योगदान दिया। कैंपस में नहीं घुसने दिया गया। जिससे नाराज योगदान देने के बाद प्राचार्य कक्ष में नहीं घुसने देने को लेकर काम जांच दर्ज दाअभी और भी लंबी खींचती हुई दिख रही है। विश्वविद्यालय की ओर से गठित जांच समिति बुधवार को आई तो दिनभर की बैठकों के बाद भी नतीजा कुछ पता नहीं चल पाया। जांच टीम ने भी मुंह नहीं खोला और बिना कुछ बताए लौट गई। विश्विवद्यालय की ओर से गठित छह सदस्यीय जांच टीम के कई सदस्य तो पहुंचे ही न सकें। इस बीच अंदरखाने से मिली जानकारी के अनुसार, प्राचार्य बहाली का मुद्दा जांच टीम भी सुलझा नहीं पाई। विश्वविद्यालय को क्या रिपोर्ट सौंपी जाती है, यह देखने वाली बात होगी। जांच टीम के संयोजक विश्वविद्यालय के डीएसडब्ल्यू डॉ. अभय कुमार सिंह, प्रॉक्टर डॉ. आरएन झा, कॉलेज इंस्पेक्टर आ‌र्ट्स डॉ. प्रमोद कुमार, परीक्षा नियंत्रक डॉ. मनोज कुमार, एमएस कॉलेज मोतिहारी के प्राचार्य डॉ. हरिनारायण ठाकुर पहुंचे मगर आरबीबीएम की प्राचार्य डॉ. ममता रानी गैरहाजिर रहीं। जांच टीम ने विश्वविद्यालय से नियुक्त प्राचार्य डॉ. रामनरेश पंडित से भी कोई बात नहीं की। दूसरे पक्ष से प्रभारी प्राचार्य डॉ. हसन मुस्तफा और उनकी टीम के लोगों से ही उनकी बातें हो पाई। पूर्व प्राचार्य डॉ. हसन मुस्तफा के अलावा बीसीए भवन में चल रही बैठक में डॉ. श्याम किशोर सिंह, डॉ. रेणु ठाकुर भी शामिल थीं।

अंदर रही जांच टीम, बाहर रहा पुलिस का सख्त पहरा

जांच टीम के पहुंचने की खबर के बाद पद के दावेदारों के बीच काफी सरगर्मी रही। दोनों तरफ से समर्थकों का जमावड़ा लगा रहा। जिससे कॉलेज परिसर में अफरातफरी की स्थिति रही। बाहर पुलिस का सख्त पहरा रहा। जांच टीम कॉलेज में करीब सात घंटे टिकी रही। इतनी देर तक क्या सब बातें हुईं और किन-किन बिदुओं पर जांच की गई जांच टीम ने इस बारे में कुछ जानकारी नहीं दी। गौरतलब है कि कॉलेज में प्राचार्य पद को लेकर माहौल गरमाया हुआ है। शिक्षक व कर्मचारी संगठनों मे ंभी दो फाड़ हो चला है। उधर, छात्रों का एक बड़ा वर्ग किन्हीं पर जांच व कार्रवाई से बेफिक्र रहते हुए सीधा पठन-पाठन सुचारू कराने की मांग कर रहे हैं। प्राचार्य डॉ. पंडित ने भी इस बात पर कड़ी आपत्ति जताई। कहा कि जांच टीम के इंतजार में ही दिनभर सीतामढ़ी में रुके रहे मगर मुझको कॉलेज में बुलाया तक नहीं गया। उधर, दूसरे कॉलेज से आए कर्मचारियों को कैंपस में देखकर एक पक्ष भड़क उठा। हल्ला-हंगामे पर उतारु हो गया। इस पक्ष को इस बात पर आपत्ति थी कि जांच टीम के पहुंचने पर वे लोग कैंपस में क्यों आए। उनका कहना था कि ये सभी कर्मचारी पूर्व में निलंबित किए जा चुके हैं और अब उनका मुख्यालय साइंस कॉलेज किया गया है। छात्र व कर्मचारी संगठनों ने जांच टीम को सौंपा आवेदन

जांच टीम के बाहर निकलने पर विभिन्न छात्र व कर्मचारी संगठनों के नेताओं ने अपनी-अपनी बातें रखीं। सामाजिक न्याय मोर्चा के प्रो. गणेश राय, ब्रजमोहन मंडल, विनोद कुमार, शिवशंकर पासवान, मदन राम, महताब बैठा, नागेंद्र कुमार पासवान, उमेश पासवान, विनोद बिहारी मंडल, राकेश कुमार चंद्रवंशी, ग्यासुद्दीन अंसारी, अनिल कुमार, भिखारी शर्मा, उमेश पासवान ने जांच टीम को ज्ञापन सौंपा। प्राचार्य डॉ. रामनरेश पंडित को कार्यभार संपादित कराने एवं शैक्षणिक वातावरण कायम करने देने की मांग की। मोर्चा ने इस बात पर भी गहरी आपत्ति जताई कि 28 मई को प्राचार्य की ओर से थाने में दिए गए आवेदन पर पुलिस ने अभी तक कोई कार्रवाई क्यों नहीं की? इधर, कॉलेज इकाई छात्रसंघ के अध्यक्ष आयुष सिंह, उपाध्यक्ष सावन कुमार ने भी जांच टीम से न्याय संगत कदम उठाने की मांग की। कॉलेज बन गया राजनीति का अड्डा

बतातें चले कि पूर्व में भी प्राचार्य पद को लेकर कॉलेज राजनीति का अड्डा रहा है। 31 जनवरी, 2019 को तत्कालीन प्रभारी प्राचार्य प्रो. नागेंद्र सिंह द्वारा रिटायर होने के बाद विश्वविद्यालय के आदेश की अनदेखी कर प्रो. गणेश राय को प्रभारी प्राचार्य का चार्ज दिया गया। जबकि, विश्वविद्यालय द्वारा वरीय शिक्षक को चार्ज देने की बात कही गई थी। 4 फरवरी, 19 को प्रो.मधुरेंद्र सिंह द्वारा विश्वविद्यालय से पदभार ग्रहण करने की चिट्ठी मिलने के बावजूद प्रो. गणेश राय द्वारा प्रभार नहीं दिया गया। इसको लेकर भारी बवाल हुआ तब जाकर 7 फरवरी, 19 को विश्वविद्यालय द्वारा साहेबगंज कॉलेज के कमीशंड प्रिसिपल रहे डॉ. रामनरेश पंडित को प्राचार्य नियुक्त किया गया। 14 फरवरी, 2019 को उन्होंने पदभार ग्रहण किया। इसी बीच तत्कालीन कुलपति डॉ. आरके मंडल द्वारा जनवरी 2020 में उनका तबादला कर दिया गया। और उनकी जगह डॉ. हसन मुस्तफा को प्रभारी प्राचार्य बनाया गया। इससे नाराज डॉ. पंडित हाईकोर्ट चले गए। हाईकोर्ट ने तत्कालीन कुलपति के आदेश को निरस्त कर डॉ. पंडित को पद पर बने रहने का आदेश दिया। आदेश के आलोक में विश्वविद्यालय ने डॉ. पंडित को योगदान करने के लिए पत्र निर्गत करते हुए वित्तीय प्रभार सौंपने का आदेश दिया। मगर दूसरी बार भी डॉ. पंडित को योगदान देने से बलपूर्वक रोका गया।


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