देश में तेजी से फैल रहा ड्रग रेसिस्टेंस टीबी
संगोष्ठी में जिले के चिकित्सकों को भारत में यक्ष्मा रोग के विस्तार रोग के कारण होने वाली जटिलताएं एवं इसके निदान के क्षेत्र में हो रहे आधुनिक अनुसंधान इलाज तथा डायग्नोसिस की
सीतामढ़ी। स्थानीय होटल के सभागार में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन सीतामढ़ी शाखा की ओर से अनवरत चिकित्सा शिक्षा कार्यक्रम के तहत यक्ष्मा (टीबी)रोग को लेकर संगोष्ठी आयोजित की गई। संगोष्ठी में जिले के चिकित्सकों को भारत में यक्ष्मा रोग के विस्तार, रोग के कारण होने वाली जटिलताएं एवं इसके निदान के क्षेत्र में हो रहे आधुनिक अनुसंधान, इलाज तथा डायग्नोसिस की नई आधुनिक पद्धति के विषय में विस्तार से अवगत कराया गया। पटना स्थित ड्रक रेसिस्टेंस टीबी सेंटर के प्रमुख व देश के ख्याति प्राप्त यक्ष्मा रोग विशेषज्ञ डा.बालकृष्ण ने ड्रग रेसिस्टेंस टीबी के फैलाव एवं इसके निदान के संबंध में विस्तृत जानकारी दी। कहा कि भारत में करीब डेढ़ लाख ड्रग रेसिस्टेंस टीबी के मरीज हैं और इसका फैलाव बड़ी तेजी हो रहा है। एक टीबी के मरीज से करीब 15 स्वस्थ व्यक्ति रोजाना संक्रमित हो रहे हैं। चुंकि ड्रग रेसिस्टेंस टीबी के मरीज पर उपयोग में लाई जाने वाली अधिकांश दवाएं निष्फल हो जाती है। ऐसे में मरीज का इलाज करना एवं इसके फैलाव को रोकना चिकित्सकों, विशेषज्ञों एवं सरकार के लिए बहुत बड़ी चुनौती है। भारत के प्रधानमंत्री द्वारा घोषित क्षयमुक्त भारत 2025 को सफल बनाने के लिए इस दिशा में विशेष एवं गहन प्रयास की आवश्यकता है। कहा कि मल्टी ड्रग रेसिस्टेंस टीबी के डायग्नोसिस करने के लिए आधुनिक न्यूक्लिक एसिड एम्पलीफिकेशन टेस्ट सीबी नैट एवं टीबी के किटाणु में मौजूद ड्रग रेसिस्टेंस जीन को पता लगाने वाली मशीन अब देश के सभी जिलों में विश्व स्वास्थ्य संगठन एवं सरकार की ओर से उपलब्ध करा दिए गए हैं। इससे समान्य टीबी एवं ड्रग रेसिस्टेंस टीबी रोग की पहचान बहुत कम समय में करीब दो घंटे में किया जा रहा है। कहा कि पहले ड्रग रेसिस्टेंस टीबी के इलाज में करीब दो से ढाई साल का समय लगता था और सफलता प्रतिशत बहुत कम थी। लेकिन आधुनिक दवा बेडाक्वीलिन एवं डेकलामीड के अविष्कार एवं उपलब्धता के कारण अब इसका इलाज मात्र एक साल में हो रहा है। बेडक्वीलिन दवा एक कोर्स का मूल्य करीब 28 हजार होता है। सरकार यह दवा निश्शुल्क वितरित कर रही है। एसोसिएशन के अध्यक्ष व प्रख्यात शिशु रोग विशेषज्ञ डा.युगल किशोर प्रसाद ने बच्चों में होने वाली टीबी चाइल्ड हुड विषय पर प्रकाश डालते हुए कहा कि विश्व में प्रतिवर्ष करीब दस लाख बच्चे टीबी रोग से ग्रसित होते हैं। जिसमें करीब दो लाख बच्चों की मौत हो जाती है। बच्चों में टीबी की बीमारी का शत-प्रतिशत डायग्नोसिस करना चुनौती बना हुआ है। क्योंकि डायग्नोसिस का कोई तरीका उपलब्ध नहीं हो सका। सिविल सर्जन डा.रविद्र कुमार ने जिले में टीबी के सभी मरीजों को सीबी नैट जांच के लिए जिला यक्ष्मा केंद्र में भेजने की सलाह दी। कहा कि केंद्र में बेड क्वीलिन जैसी महंगी दवा सहित टीबी की अन्य सभी दवाएं निश्शुल्क उपलब्ध है। प्रत्येक मरीज को पोषाहार के लिए पांच सौ रुपये दिए जाने का प्रावधान है। वैज्ञानिक सत्रों की अध्यक्षता एसोसिएशन ऑफ फिजिशियन ऑफ इंडिया के प्रदेश के पूर्व अध्यक्ष डा.एम ठाकुर, डा.मेजर बीएन झा, आइएपी सीतामढ़ी के अध्यक्ष डा.बीके झा, डा.निर्मल कुमार गुप्ता, डा.आलोक कुमार सिंह एवं डा.केएन प्रसाद ने की। संगोष्ठी में आइएमए के सचिव डा.जयशंकर प्रसाद, यक्ष्मा पदाधिकारी डा.मनोज कुमार, डा.एसपी खेतान, डा.अनिल कुमार तिवारी, डा.बीएन बाजोरिया, डा.केएन प्रसाद, डा.वरुण कुमार, डा.शंभू प्रसाद पांडेय, डा.एसके वर्मा, डा.राजेश सुमन, डा.मोहन झा, डा.प्रवीण कुमार, डा.शिवशंकर प्रसाद, डा.राजन पांडेय, डा.अंजना प्रसाद, डा.सोनी वर्मा, डा.संजय कुमार सहित कई चिकित्सक, यक्ष्मा से संबंधित स्वयंसेवी संस्थानों के प्रतिनिधि, पारा मेडिकल स्टाफ एवं फार्मा उद्योग के प्रतिनिधि आदि मौजूद थे।