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आंदोलनों की धार पर चलकर लिखी संघर्ष की गाथा, 24 साल में आखिरकार बना पुल

सीतामढ़ी। बैरगनिया के ब्रजमोहन कुमार एक ऐसे शख्स का नाम है जिन्होंने समाज सेवा आंदोलनों के

By JagranEdited By: Published: Thu, 21 Jan 2021 12:40 AM (IST)Updated: Thu, 21 Jan 2021 12:40 AM (IST)
आंदोलनों की धार पर चलकर लिखी संघर्ष की गाथा, 24 साल में आखिरकार बना पुल

सीतामढ़ी। बैरगनिया के ब्रजमोहन कुमार एक ऐसे शख्स का नाम है जिन्होंने समाज सेवा आंदोलनों के जरिए न केवल एक मुकाम बनाया है बल्कि इलाके में जन-जन की आवाज बन गए है। सामाजिक समानता, हक व विकास के लिए पिछले तीन दशक में ब्रजमोहन कुमार ने आठ सौ से अधिक आंदोलन किए हैं। इसके कारण उन्हें राज्य व देश स्तर पर कई प्रतिष्ठित सम्मान भी हासिल हुए हैं। खासकर बिहार सरकार के कर्मयोगी द हीरोज ऑफ बिहार के सम्मान से भी सम्मानित किया जा चुका है। अपने आंदोलनों के जरिए ब्रजमोहन न केवल बैरगनिया को समाज की मुख्य धारा से जोड़ने में सफल रहे बल्कि बैरगनिया में सड़क, पुल, रेल मार्ग, दूर संचार व एटीएम की व्यवस्था कराने में भी सफल रहे हैं। हाल के वर्षों में बैरगनिया को बागमती अनुमंडल बनाने के लिए आंदोलन किया। सरकार को लगातार पत्र लिखा। इसका नतीजा है कि राज्य सरकार के सचिव ने डीएम व एसपी से रिपोर्ट मांगा है। इतना हीं नही बैरगनिया में स्टेडियम निर्माण के लिए भी पहल की है। पहल का ही नतीजा है कि सरकार ने विभाग को इसके लिए जमीन आवंटित करने को लिखा है। ब्रजमोहन के पिता स्व.रामावतार साह स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्होंने स्वधाीनता का अलख जगा देश को आजादी दिलाने के लिए जंग लड़ी थी। वही, पुत्र आजाद देश में हक एवं समानता की लड़ाई लड़ रहे हैं। ब्रजमोहन को संघर्ष की प्रेरणा अपने पिता के अलावा चाचा बंशी साह से भी मिली। बंशी साह ने पुल के लिए आत्मदाह कर लिया था। इसके बाद उनके अधूरे सपने को पूरा करने का बीड़ा ब्रजमोहन ने उठा लिया। पिछले तीन दशक में बैरगनिया में जितने भी आंदोलन हुए हैं। ब्रजमोहन उसके केंद्र में रहे। महज 20 वर्ष की उम्र में ब्रजमोहन ने 24 मार्च, 1984 को आंदोलन का आगाज किया था। आंदोलन का मकसद बागमती नदी पर पुल का निर्माण कराना था। इसके लिए उन्होंने पुल निर्माण संघर्ष समिति का गठन कर आंदोलन को धार दी। उनके आंदोलन ने रंग लाया और 20 नवंबर, 2010 को पुल का उदघाटन हुआ। इस पुल के लिए उन्होंने 24 साल तक आंदोलन किया। इस दौरान दो वर्ष तक जेल में भी रहे। इसी क्रम में वंशी चाचा ने आत्मदाह किया था। इस आंदोलन के दौरान सात लोग पुलिस की गोलियों का शिकार हुए और सैकड़ों लोग घायल हुए। उन्होंने आरटीआई को भी अपना हथियार बनाया। यही वजह है कि ब्रजमोहन गण का गणतंत्र बन लोगों के बीच लोकप्रिय बन गए।

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