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रातो नदी के कहर से कराह रहे किसान, रहनुमा है अनजान

चुनावी बयार तेजी से बह रही है विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रत्याशी व समर्थक गांव-गांव दरवाजे-दरवाजे पहुंच कर वोटरों को लुभाने में जुटे हैं।

By JagranEdited By: Published: Wed, 24 Apr 2019 12:26 AM (IST)Updated: Wed, 24 Apr 2019 12:26 AM (IST)
रातो नदी के कहर से कराह रहे किसान, रहनुमा है अनजान
रातो नदी के कहर से कराह रहे किसान, रहनुमा है अनजान

सीतामढ़ी। चुनावी बयार तेजी से बह रही है, विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रत्याशी व समर्थक गांव-गांव दरवाजे-दरवाजे पहुंच कर वोटरों को लुभाने में जुटे हैं। लेकिन, हर साल रातो नदी के कहर से कराहते चोरौत प्रखंड के किसानों की समस्या से सभी अनजान बने हुए हैं। हर बार किसान अपने जनप्रतिनिधियों को समस्याओं से अवगत कराते हैं, लेकिन उनकी आवाज नक्कारखाने में तूती की आवाज बन कर रह जाती है। किसानों के लिए खेती घाटे का सौदा बनता जा रहा है। लहलहाती फसलों पर जब बाढ़ का कहर टूटता है तो किसानों की कमर भी टूट जाती है। तटबंध नहीं होने से रातो नदी ढाती कहर :

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नेपाल से आने वाली रातो नदी पर 17 किलोमीटर बिना तटबंध के बह रही है । नेपाल बोर्डर भिट्ठामोड़ से मधुबनी जिला स्थित पिरौखर तक यह नदी तटबंध विहीन है । ऐसे मे हर साल बरसात के समय बड़े इलाके में भारी तबाही मचाती है। नेपाल में हल्की बारिश होने पर भी चोरौत, सुरसंड व पुपरी प्रखंड के साथ मधुबनी जिला के कुछ क्षेत्र को भी प्रभावित करती है। रातो नदी के कहर से भिट्ठामोड़, भिठ्ठा , दिवारी, मतौना, यदुपट्टी - डुमरवाना, परिगामा, बसोतरा, भंटाबारी, चोरौत, चन्द्रसैना, बलसा, बररी बेहटा, घुघला, पुराण्डिह सहित कई गांव के लोग हर साल परेशान होते हैं। बाढ़-बरसात के मौसम मे इन गांवों का संपर्क प्रखंड मुख्यालय से टूट जाता है। सैकड़ों हेक्टेयर में लगी धान की फसलें बर्बाद हो जाती है। साथ ही कई दिनों तक जलजमाव की समस्या बनी रहती है। हर साल हजारों हेक्टेयर में लगी धान की फसल बाढ़ से बर्बाद हो जाती है। अच्छी उपज की उम्मीद लगाए किसानों की आशा पर पानी फिर जाता है । अगर किसी तरह उपज भी अच्छी हुई तो कीमत बिचौलिया ही तय करते हैं क्योंकि अनाज खरीद के सरकारी तंत्र पूरी तरह फेल है। बाढ़ से खेतों हुआ जलजमाव लंबे समय तक रहने की समस्या को देख कुछ संपन्न किसानों ने खेतों में जगह-जगह तालाब ही खुदवा डाला है। जिसमें मछली पालन कर आय की वैकल्पिक व्यवस्था कर चुके हैं। जबकि लघु व सीमांत किसान बर्बादी की मार झेलने को विवश हैं। बार-बार आश्वासन के बाद भी नहीं बना तटबंध:

रातो नदी के किनारे तटबंध निर्माण के बार-बार आश्वासन के बावजूद तटबंध का निर्माण नहीं हो सका। समय-समय पर इस इलाके के किसानों ने इसके लिए आवाज भी उठाई। आश्वासन तो मिला लेकिन आज तक तटबंध का निर्माण नहीं हो पाया। पिछले वर्ष संबंधित विभाग ने तटबंध निर्माण को लेकर सीमांकन किया था । जो नदी के वर्तमान बहाव से तीन सौ मीटर अलग लाल झंडी लगाई गई थी । विभाग किसान के निजी जमीन को 23 मीटर चौड़ाई में खरीदने की योजना थी । तटबंध के उपर पांच मीटर चौड़ा सड़क निर्माण किया जाना था। लेकिन अभी भू अर्जन का कार्य नहीं हो पाया है। ये सभी कार्य ठंडे बस्ते में है। इन कार्यो की फाइलें कार्यालयों में धूल फांक रही है। तटबंध के निर्माण से हजारों हेक्टेयर क्षेत्र में धान की उपज अच्छी होगी। किसान बाढ़ की समस्या से मुक्त हो जाएंगे। किसान युगल किशोर ठाकुर, रामचन्द्र ठाकुर, विजय ठाकुर, प्रेम कुमार, रामचन्द्र राय, बिल्टू राय, रामकिशोर राय, रामशोगारथ ठाकुर, महेन्द्र ठाकुर आदि किसानों ने बताया कि रातो नदी पर के तटबंघ का निर्माण नहीं होने से धान की फसल हर साल बर्बाद हो जाती है। जनप्रतिनिधियों से हमलोगों को कई बार आश्वासन मिला लेकिन तटबंध नहीं बना। हर चुनाव में यह मुद्दा उछलता है, लेकिन बाद में ठंडे बस्ते में चला जाता है।


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