यहां रत्नाकर डाकू बने वाल्मीकि
सीतामढ़ी। सीतामढ़ी जिला अंतर्गत भारत-नेपाल सीमा के पास स्थित बाबा वाल्मीकेश्वर नाथ मंदिर सदियों से आ
सीतामढ़ी। सीतामढ़ी जिला अंतर्गत भारत-नेपाल सीमा के पास स्थित बाबा वाल्मीकेश्वर नाथ मंदिर सदियों से आस्था का केंद्र बना है। यहां पूरे वर्ष भक्तों का तांता लगा रहता है। सावन में तो दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं। बाबा का जलाभिषेक पटना के गंगा घाट के जल से होता है।
मान्यता है कि त्रेता में महर्षि वाल्मीकि की तपस्या से खुश होकर भगवान शंकर ने उन्हें दर्शन दिया था। उनकी तपस्थली पर महादेव का शिव¨लग उत्पन्न हुआ था। बाद में इसी का नाम वाल्मीकेश्वरनाथ महादेव पड़ा। यहां महाशिवरात्रि के अलावा रामनवमी व विवाह पंचमी में भी वृहद मेला लगता है।
क्या है इतिहास : इस क्षेत्र में मिथिला के राजा विदेह का शासन था। उनके राज्य में डाकू रत्नाकर का आतंक था। उसने राजा का खजाना लूटने की रणनीति बनाई। गुप्तचर से जब राजा को इसकी सूचना मिली तो राजा ने खुद डाकू से मिलने का निश्चय किया। प्रहरी का वेश धारण कर खुद खजाने की सुरक्षा करने लगे। जब वह डकैती करने पहुंचा तो प्रहरी के रूप में तैनात राजा विदेह को बांध कर लूटपाट करने लगा। इस बीच प्रहरी के रूप में तैनात राजा व रत्नाकर के बीच संवाद हुआ। बाद में विचलित डाकू रत्नाकर ने राजा की सलाह से तप करने का निश्चय किया। तकरीबन साठ वर्ष तक तप करते रहे। बाद में भवगवान शंकर ने तपस्वी रत्नाकर को दर्शन दिया। इसके बाद ही डाकू रत्नाकर वाल्मीकि हो गए। बाद में यही पर विशाल शिव¨लग निकला। जिसका नामकरण वाल्मीकेश्वरनाथ महादेव हुआ। इस शिव¨लग की पूजा-अर्चना भगवान श्रीराम ने भी की थी। अयोध्या से आने के क्रम में लक्ष्मण व विश्वामित्र के साथ यहां पहुंचे थे। जाने के क्रम में माता जानकी के साथ भी पूजा-अर्चना की थी।
पूजा का विधान व चढ़ावा:
यहां भोलेनाथ की पूजा का विधान अत्यंत सरल है। कनैल के फूल, धतूरे व जल से पूजा की जाती है।
कैसे जाएं:
सीतामढ़ी रेलवे स्टेशन से तकरीबन 25 व बस पड़ाव से 27 किसी की दूरी पर सुरसंड में यह शिव¨लग है। यहां जाने के लिए बस सेवा है। इसके अलावा निजी वाहन से भी यहां जाया जा सकता है।
कहां रुकें
सुरसंड में ठहरने के लिए कई होटल हैं। इसके अलावा मंदिर परिसर में विश्रामालय भी है।
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