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श्री बाबू की सादगी को नहीं भूला पैतृक गांव माउर

शेखपुरा आजादी के सिपाही एवं प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बिहार केसरी डा.श्री कृष्ण सिंह ग

By JagranEdited By: Published: Wed, 20 Oct 2021 11:44 PM (IST)Updated: Wed, 20 Oct 2021 11:44 PM (IST)
श्री बाबू की सादगी को नहीं भूला पैतृक गांव माउर

शेखपुरा : आजादी के सिपाही एवं प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बिहार केसरी डा.श्री कृष्ण सिंह गुरुवार को जयंती पर याद किए जाएंगे। उनकी पैतृकभूमि बरबीघा के माउर से लेकर कई शैक्षणिक और सामाजिक संस्थानों में जयंती समारोह का आयोजन किया गया है। पैतृक घर माउर में आज भी धरोहर के रूप में उनके उपयोग किए हुए सामान संरक्षित हैं।

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पूजा घर, पलंग और कुर्सी मौजूद : श्री बाबू के पैतृक गांव माउर में उनके उपयोग किए गए सामान मौजूद हैं। पुत्र हीरा बाबू कहते हैं कि जिस घर में पूजा करते थे अथवा जिस पलंग, कुर्सी या कमरे का उपयोग करते थे उसे संरक्षित रखा गया है।

पुस्तकालय की दशा जर्जर :

बिहार केसरी साहित्य प्रेमी थे। मुख्यमंत्रित्व काल में उनके द्वारा गांव में श्री रामकृष्ण पुस्तकालय की स्थापना की गई थी। आज यह जर्जर दशा में है। ग्रामीण इंदु भूषण सिंह कहते हैं कि श्री बाबू की पुस्तकालय में ग्रामीण साथियों संग बैठकी होती थी और पठन-पाठन का दौर चलता था।

श्री कृष्ण रामरुचि कालेज में शिक्षक ही नहीं : बिहार के मुख्यमंत्री रहते उनके और उनकी पत्नी के नाम पर कालेज की स्थापना स्वतंत्रता सेनानी लाला बाबू की पहल पर शुरू की गई थी। श्रीबाबू ने अपने नाम पर कालेज खोलने का विरोध किया था। इस कालेज में 10-15 सालों से बगैर शिक्षक पढ़ाई हो रही है। कालेज में पीजी की पढ़ाई दशकों से बंद है। वाचनालय, जिमखाना, पुस्तकालय, पीजी हास्टल इत्यादि भवन ध्वस्त हो गए हैं।

श्री कृष्ण जनाना अस्पताल का अस्तित्व नहीं : स्वतंत्रता सेनानी के नाम पर शेखपुरा के गिरीहिडा में श्रीकृष्ण जनाना अस्पताल खोला गया था। अब इस अस्पताल का अस्तित्व ही नहीं है। हालांकि यहां बोर्ड लगा हुआ है। वहीं बगल में स्थापित श्री बापू की प्रतिमा उपेक्षित पड़ी है।

गांव में सहजता से रहते थे श्री बाबू : श्री बाबू अपने गांव में सहज जीवन जीते थे। याद करते हुए बुजुर्ग चंद्रिका प्रसाद सिंह एवं आदित्य नारायण सिंह कहते हैं कि जब वे लोग किशोरावस्था में थे। श्री बाबू द्वारा पढ़ने के लिए प्रेरित किया जाता था। गांव में आते थे तो अधिकारियों और पुलिस को चेतावनी दी जाती थी कि ज्यादा तड़क-भड़क मत रखिए। सुरक्षा को लेकर गांव में कुछ खतरा नहीं है। गांव में आने के बाद खाली चौकी पर ही बैठते थे। गांव की भाषा में सबसे बात करते थे।

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