सामाजिक व सांप्रदायिक सौहार्द का नमूना है महेश्वरी स्थान
शेखपुरा। आज जहां देश के विभिन्न हिस्सों में दलित और सवर्ण हितों को लेकर आमने-सामने की वैचारिक गोलबंद
शेखपुरा। आज जहां देश के विभिन्न हिस्सों में दलित और सवर्ण हितों को लेकर आमने-सामने की वैचारिक गोलबंदी है तो वहीं, जिले में एक पौराणिक दुर्गा मंदिर सामाजिक के साथ-साथ सांप्रदायिक सौहार्द का नमूना पेश कर रहा है। यह दुर्गा मंदिर जिला मुख्यालय से लगभग 10 किमी दूर सदर ब्लॉक के ही मेहुंश गांव में अवस्थित है। मेहुंश गांव का यह महेश्वरी स्थान दुर्गा मंदिर लगभग साढ़े तीन सौ साल से विद्यमान है। शारदीय नवरात्र में इस दुर्गा मंदिर का महत्व काफी बढ़ जाता है। इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि शारदीय नवरात्र की सबसे बड़ी पूजा मानी जाने वाली महानवमी में इस मंदिर में सबसे पहले दलित समुदाय के लोगों का प्रवेश होता है। दलितों के प्रवेश के बाद ही गांव के सवर्ण और अन्य लोग जा पाते हैं। इस संबंध में सामाजिक कार्यकर्ता कंचन कुमार ¨सह बताते हैं कि महानवमी में सबसे पहले दलितों के प्रवेश की यह परंपरा दादा-परदादा के समय से चली आ रही है। इस परंपरा को गांव की बहुसंख्यक सवर्ण आबादी आज भी बनाये हुए है।
महानवमी को राम सेना का प्रतिनिधित्व करते हैं दलित :
सामाजिक कार्यकर्ता कंचन कुमार ¨सह बताते हैं कि महानवमी के दिन इस दुर्गा मंदिर में सबसे पहले दलितों के प्रवेश की इस परंपरा के पीछे भी एक कहानी छिपी है। बताया गया कि महानवमी को महेश्वरी स्थान में प्रवेश के पहले राम और रावण की सेना के बीच युद्ध होता है। यह युद्ध दुर्गा मंदिर के बाहर लड़ा जाता है। इस युद्ध में गांव के दलित समुदाय के लोग राम सेना का प्रतिनिधित्व करते हैं और उनका मुकाबला रावण की सेना से होता है। रावण की सेना का प्रतिनिधित्व गांव के सवर्ण लोग करते हैं। इस युद्ध में जीत राम सेना (दलितों के समूह) की होती है। दलितों के प्रवेश के बाद गांव के सामूहिक चंदे से इस दुर्गा मंदिर में बकरे की बलि पड़ती है। इसके बाद ही सवर्ण तथा अन्य गैर दलित इस दुर्गा मंदिर में प्रवेश करते हैं। बलि में पड़े बकरे के मांस को देवी के प्रसाद के रूप में समूचे गांव में वितरित किया जाता है।
बलि देने को पहले हुसैनबाद के नवाब देते थे बकरा : ग्रामीणों ने बताया कि मेहुंश गांव का यह पौराणिक दुर्गा मंदिर महेश्वरी स्थान सांप्रदायिक सौहार्द का भी नमूना है। बताया जाता है कि साढ़े तीन सौ साल पुराने इस दुर्गा मंदिर में महानवमी को बकरे की बलि देने की प्रथा भी उतनी ही पुरानी है। ग्रामीण कंचन कुमार ¨सह बताते हैं कि पहले महानवमी को बकरे की बलि के लिए हुसैनाबाद के नवाब के यहां से बकरा आता। तब समूचा इलाका हुसैनाबाद नवाब का ही रियासत था। देश की आजादी के बहुत साल बाद तक मेहुंश में यह परंपरा कायम रही। बाद में जब जमींदारी व्यवस्था को कानूनन खत्म कर दिया गया तब यहां ग्रामीण आपस में चंदा करके बलि के लिए बकरे की व्यवस्था करते हैं।