पता नहीं, कहां गुम हो गए ताल-तलईया
शेखपुरा। कहा जाता है कि जहां संवेदना ही मर जाए तो वहां कुछ बचने की उम्मीद नहीं की ज
शेखपुरा। कहा जाता है कि जहां संवेदना ही मर जाए तो वहां कुछ बचने की उम्मीद नहीं की जा सकती। यह स्थिति गांवों में पानी के परंपरागत स्रोतों ताल-तालाबों की है। पहले गांवों में लोग ताल-तालाबों के निर्माण तथा उसके रख-रखाव के लिए काम करते थे। मगर आज भौतिकता के पीछे दीवाने हुए जमाने में यह सब बात गुजरे •ामाने की बात होकर रह गई है। लोगों की संवेदना मरी और इसका असर गांवों के इन जल स्रोतों पर यह पड़ी कि गांव के ताल-तालाब मरने लगे हैं। ताल-तालाबों को लेकर इस मर रही संवेदना में सबकी भागीदारी लगभग बराबरी की है। यह संवेदना न तो आम लोगों में रही और न ही सरकारी संस्थानों में। निचले स्तर पर जनता का वोट हासिल करके जनप्रतिनिधि बनने वालों में भी ताल-तालाबों को पुनर्जीवित करने की संवेदना के बजाय पक्के काम के प्रति अधिक जागरूक दिखते हैं। ग्रामीण इलाकों में ताल-तालाबों के मरने का साइड इफेक्ट यह दिखता है कि कुएं तथा चापाकल चैत में ही फेल हो रहे हैं। इसके अलावे ¨सचाई के परंपरागत साधन भी बेकार हो रहे हैं और पशुओं के पीने के पानी की समस्या खड़ी हो रही है।
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अतिक्रमण है बड़ी समस्या
ताल-तालाबों के मरने के पीछे सबसे बड़ा कारण अतिक्रमण है। आज लोग अपने निजी तथा क्षणिक हित के लिए गांवों के तालाब-पोखरों का अतिक्रमण कर रहे हैं। इससे मुट्ठी भर लोगों को फायदे के अलावे बहुसंख्यक लोगों को परेशानी झेलनी पड़ रही है। लोग तालाबों को अतिक्रमित करने के साथ इसके जल स्त्रोत को भी कब्जा करने में नहीं हिचक रहे हैं। इससे फायदा मुश्किल से कुछ क्षणिक लोगों को हो रहा है। मगर इसका दुष्परिणाम 95 लोगों को भुगतना पड़ रहा है। इसका असर गांवों की खेती के साथ पशुओं पर भी पड़ रहा है।
पशुओं के पानी-पीने की समस्या
गांव में ताल-तालाबों के विलुप्त होने से आम लोगों के साथ बेजुबान पशुओं को भी इसकी पीड़ा सहनी पड़ रही है। हम कह रहे हैं जिला के अरियरी ब्लाक में विख्यात कोइंदा पोखर का। यह पोखर मर रहा है। इसमें पानी मुश्किल से तीन महीने रहता है। पहले इस पोखर में कोइंदा सहित आस-पास के आधा दर्जन गांवों के पशुओं को गर्मीं में नहलाने तथा पानी पिलाने का काम होता है। मगर अब स्थिति यह है कि यहां चिड़ियां के भी स्नान करने का पानी नहीं है। इससे आम लोग परेशान हैं।
¨सचाई भी हो रही प्रभावित
गांवों में ताल-तालाबों के सूखने से खेतों की ¨सचाई भी प्रभावित हो रही है। यहां बताया गया कि पहले कोइंदा पोखर से आस-पास के गांवों के सैकड़ों बीघा खेत की ¨सचाई होती थी। मगर अब तो हालत यह है कि खुद इस तालाब के सीने ही फटे हुए हैं। बताया गया कि पोखर के ़खत्म होने से खेती की पैदावार पर भी विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। पहले इस पोखर से निकलने वाले पाइन से खेतों को पानी मिलता था। मगर अब तो यह पोखर ही खुद प्यासा है तो खेतों को पानी कहां से मिलेगा।
जिम्मेवार लोग भी संवेदनहीन हो गए
गांवों में ताल-तालाबों के संरक्षण तथा इसके बचाव की जिम्मेवारी लेने वाले ही इस मसले पर संवेदनहीन बने हैं। कोइंदा पोखर के बारे में बताएं तो स्थानीय लोग कहते हैं कि पिछले दस वर्षों में इस पोखर की यह दुर्दशा हुई है। बताया गया कि बेमौत मर रहे इस पोखर को पुनर्जीवित करने के लिए स्थानीय लोगों ने गांव के जनप्रतिनिधि से लेकर प्रशासनिक अधिकारी तक अपनी पीड़ा तथा भावना पहुंचाई। मगर इन जिम्मेवार लोगों की संवेदना इस मामले में नहीं जाग सकी।
क्या कहना स्थानीय लोगों का
फोटो-11बीआइएच 02
कोइंदा गांव के निवासी अनिक प्रसाद बताते हैं कि इस तालाब का तो लोगों ने अतिक्रमण किया ही। असल में इसके जल स्त्रोत को भी अतिक्रमण करके कब्जा में कर लिया है। अनिक बताते हैं कि पहले इस पोखर में बरसात में चोढ छिलका से पइन के माध्यम से पानी आता था। मगर लोगों ने पइन को ही भरकर खेल का मैदान बना लिया है। फलत: इस तालाब में पानी आने का रास्ता ही अवरुद्ध हो गया है।
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फोटो-11बीआइएच 03
स्थानीय किसान पवन कुमार बताते हैं कि यह तालाब अंग्रेज के •ामाने का है। पहले इस तालाब से आस-पास के कई गांवों के खेतों की ¨सचाई होती थी। मगर अब तो यह तालाब ही खुद प्यासा है तो खेतों की प्यास कैसे बुझेगी। पवन बताते हैं कि इस तालाब में पानी लाने वाले पइन का तो लोगों ने अतिक्रमण किया ही। इससे निकलने वाले पइन को भी भरकर खेल बना डाला है।
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फोटो-11बीआइएच 04
स्थानीय निवासी तथा किसान सुभाष प्रसाद बताते हैं कि इस पोखर के खत्म हो जाने से आस-पास के लोगों के साथ आस-पास के गांवों में सैकड़ों पशुओं को भी समस्या झेलनी पड़ रही है। सुभाष बताते हैं कि पहले गर्मी के मौसम में आस-पास के गांवों के लोग अपने पशुओं को नहलाने तथा उसे पानी पिलाने के लिए इस तालाब में लाते थे, मगर पानी के अभाव में अब ऐसा नहीं हो पता।
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फोटो-11बीआइएच 05
सामाजिक कार्यकर्ता दानी प्रसाद कहते हैं कि आज पोखर तथा तालाबों के हमारे कब्जे की असली पीड़ा आने वाली पीढ़ी को भुगतना होगा। प्रसाद बताते हैं कि अभी भी समय है अगर इस मामले में हमनहीं चेते तो आने वाली पीढ़ी हमें माफ नहीं करेगी तथा हमें घृणा की भावना से देखेंगे।