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शेखपुरा में एक ही कमरे में संचालित होते हैं पांच-पांच क्लास

शेखपुरा। आकांक्षी जिला में विकास को लेकर आंकड़ों का खेल जबरदस्त होता है। परंतु जमीनी हकीकत कुछ और ही होती है। आधारभूत संरचना की कमी के साथ-साथ शिक्षकों की कमी की वजह से स्थिति यह है कि एक कमरे में चार से पांच वर्गों का संचालन किया जा रहा है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 26 Sep 2020 07:28 PM (IST)Updated: Sun, 27 Sep 2020 05:05 AM (IST)
शेखपुरा में एक ही कमरे में संचालित होते हैं पांच-पांच क्लास

शेखपुरा। आकांक्षी जिला में विकास को लेकर आंकड़ों का खेल जबरदस्त होता है। परंतु, जमीनी हकीकत कुछ और ही होती है। आधारभूत संरचना की कमी के साथ-साथ शिक्षकों की कमी की वजह से स्थिति यह है कि एक कमरे में चार से पांच वर्गों का संचालन किया जा रहा है। वहीं एक शिक्षक के द्वारा तीन से चार क्लास एक साथ लिए जा रहे हैं। आज भी जिले में कुछ गांव ऐसे हैं जहां स्कूल है ही नहीं।

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बानगी के रूप में शेखपुरा जिले के चेबाड़ा प्रखंड का कपासी स्कूल है। इस स्कूल को उत्क्रमित कर हाई स्कूल का दर्जा दे दिया गया है। यहां दो सौ बच्चे नामांकित हैं। प्रधानाध्यापक मिलाकर चार शिक्षक यहां कार्यरत हैं। गांव के निवासी नवीन कुमार और विमलेश कुमार कहते हैं कि स्कूल में पढ़ाई के नाम पर केवल बच्चे मध्याह्न भोजन के लिए ही आना-जाना करते हैं। स्कूल में छठी क्लास की छात्रा पल्लवी कुमारी, रागिनी कुमारी से पूछे जाने पर मीना मंच और बाल संसद के बारे में अनभिज्ञता जाहिर किया जाता है।

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एक और बानगी बरबीघा प्रखंड का नगर परिषद के फैजाबाद उर्दू प्राथमिक विद्यालय है। यह एक कमरे का स्कूल है। यहां तीन शिक्षकों के सहारे एक कमरे में पांचवीं क्लास तक की पढ़ाई होती है। एक ही कमरे में पांचों क्लास तक के बच्चे को बैठाया जाता है। पांच ब्लेक बोर्ड एक ही कमरे में लगा दिए गए हैं। इसी एक कमरे में एमडीएम का अनाज, जलावन भी रखा जाता है। यही हाल उर्दू विद्यालय मलीलचक का है। दो कमरे में पांच वर्ग संचालित है। स्कूल तक जाने का रास्त नहीं है। बरसात में पानी में प्रवेश कर जाना पड़ता है। पुरेसारा स्कूल का हाल भी यही है। खेत की मेड़ से होकर बच्चे स्कूल जाते है।

इसी तरह का एक मामला बरबीघा प्रखंड के केवटी पांचायत के लक्ष्मीपुर गांव का भी है। दो हजार के आबादी वाले इस गांव में कोई स्कूल नहीं है। भवन नहीं होने की वजह से इस गांव के स्कूल को दो किलोमीटर दूर पांक पंचायत के मूसापुर गांव के स्कूल में स्थानांतरित कर दिया है। इस वजह से इस गांव के बच्चे स्कूल कम ही जा पाते हैं। ग्रामीण मुन्ना यादव, राम लखन यादव की माने तो बच्चे स्कूल तक नहीं जा पाते। इस वजह से बच्चों की पढ़ाई की गारंटी की बात केवल कागजों पर ही है।

इसी तरह की स्थिति अरियरी प्रखंड के वरुणा गांव का है। गांव के रामाशीष यादव, जंग बहादुर प्रसाद कहते हैं कि स्कूल में किसी तरह का बदलाव पिछले दो-तीन सालों में देखने को नहीं मिला। शिक्षकों की कमी आम बात है। केवल मध्यान भोजन के लालच में बच्चे स्कूल आना-जाना करते हैं।

शेखोपुरसराय प्रखंड मुख्यालय बाजार के मध्य विद्यालय का हाल भी इसी तरह का है। चार कमरे के स्कूल में सभी बच्चों की पढ़ाई होती है। एक कमरे में तीन-तीन वर्ग का संचालन करना मजबूरी हो जाता है। बरबीघा बाजार के कन्या मध्य विद्यालय प्रसिद्ध विद्यालय है। यहां 350 छात्राओं का नामांकन है। पढ़ने के लिए मात्र चार कमरे हैं। मजबूरी में एक कमरे में दो-दो वर्ग का संचालन किया जाता है। प्रधानाध्यापक विनोद कुमार कहते हैं कि मजबूरी में बच्चों को इस तरह से पढ़ाना पड़ रहा है।

यही हाल बरबीघा प्रखंड के विष्णुपुर दलित गांव का है। यहां प्राथमिक विद्यालय का सृजन किया गया था। भवन नहीं होने से स्कूल को बगल के खोजागाछी गांव में मर्ज कर दिया गया। इस वजह से इस गांव के भी कई बच्चे स्कूल तक नहीं पहुंच पाते।


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