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पावापुरी व कुंडलपुर में 5 से शुरू होगी दीपावली, निर्वाण पर्व मनाएंगे जैन धर्मावलम्बी

सिलाव : प्राचीन मान्यता के अनुसार सुनते आ रहे हैं कि भगवान राम लंका से यु़द्ध में विजय प्राप्त करके

By JagranEdited By: Published: Sat, 03 Nov 2018 05:06 PM (IST)Updated: Sat, 03 Nov 2018 05:06 PM (IST)
पावापुरी व कुंडलपुर में 5 से शुरू होगी दीपावली, निर्वाण पर्व मनाएंगे जैन धर्मावलम्बी
पावापुरी व कुंडलपुर में 5 से शुरू होगी दीपावली, निर्वाण पर्व मनाएंगे जैन धर्मावलम्बी

सिलाव : प्राचीन मान्यता के अनुसार सुनते आ रहे हैं कि भगवान राम लंका से यु़द्ध में विजय प्राप्त करके अयोध्या लौटे थे तो अयोध्यावासियों ने सारे नगर को दीपमालाओं से सजाकर दीपावली पर्व मनाया था। तब से आज तक दीपावली पर्व उसी स्मृति में मनाया जाता है। लेकिन आश्चर्य कि बात यह है कि पूजन संध्याकाल में श्री गणेश एवं लक्ष्मी की होती है और श्री राम को सिर्फ याद किया जाता है। सनातन संस्कृति में आज भी दीपावली पर्व मनाने की यही परम्परा है।

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जैन परम्परा के अनुसार नालंदा जिले के पावापुरी और कुंडलपुर में दिवाली सोमवार से शुरू हो जाएगी। इस मौके पर जैन धर्मावलंबी तीन दिनों तक भगवान महावीर का निर्वाण पर्व मनाएंगे। इस साल भी 5 नवम्बर को पावापुरी में नए बने कीर्तिस्तंभ पर ध्वजारोहण के साथ पर्व शुरू हो जाएगा जिसका समापन 7 नवंबर को होगा। उद्घाटन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार करेंगे। आचार्य विद्यासागर का संदेश देने के उद्देश्य से यह 31 फुट ऊंचा स्तंभ बनाया गया है। दिगम्बर जैन कमेटी पावापुरी के प्रबंधक अरुण कुमार ने बताया कि इस स्तम्भ को मकराना मार्बल से बनाया गया है। इसे बनाने में छह माह लगे हैं। सुबह में केसरिया वस्त्र पहन निर्वाण लाडू चढ़ाएंगे श्रद्धालु :

इस दौरान प्रात:काल में जैन धर्मावलंबी केसरिया वस्त्र (धोती और दुपट्टा) पहनकर मन्दिरों में भगवान महावीर की प्रतिमा के समक्ष निर्वाण लाडू चढ़ाते हैं और उनका अभिषेक कर पूजन करते हैं। संध्या में भगवान के मोक्ष प्राप्त करने की खुशी में अपने-अपने घरों में दीप जलाकर भगवान के निर्वाण कल्याणक का पूजन करते हैं एवं एक-दूसरे के बीच मिठाई बांटते हैं। फिर सरस्वती एवं लक्ष्मी की महापूजा कर गौतम गणधर स्वामी का पूजन करते हैं। जैन धर्म में लक्ष्मी का अर्थ निर्वाण, सरस्वती का अर्थ होता है ज्ञान :

जैन धर्म में लक्ष्मी का अर्थ होता है निर्वाण और सरस्वती का अर्थ होता केवल ज्ञान। इसलिए प्रात:काल भगवान महावीर स्वामी का निर्वाण उत्सव मनाते समय भगवान की पूजा में लाडू चढ़ाई जाती है। भगवान महावीर को मोक्ष लक्ष्मी की प्राप्ति हुई और गौतम गणधर को केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई थी, इसलिए लक्ष्मी व सरस्वती का पूजन दीपावली के दिन किया जाता है। लक्ष्मी पूजा के नाम पर कहीं-कहीं मुद्रा की पूजा की जाती है। कार्तिक अमावस्या को भगवान महावीर ने मोक्ष पाया, तभी से मना रहे दीपावली :

कुण्डलपुर दिगम्बर जैन समिति नंद्यावर्त महल के मंत्री विजय कुमार जैन ने बताया कि जैन मान्यता के अनुसार प्राचीनकाल से समाज में यह मान्यता रही है कि जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी, जिनका जन्म कुण्डलपर (नालंदा) बिहार में हुआ था। उस स्मृति में जैन साध्वी परमपूज्य गणिनीप्रमुख श्रीमति ज्ञानमती माताजी ने कुण्डलपुर विकास के अंतर्गत नंद्यावर्त महल की सुन्दर प्रतिकृति बनवाकर भगवान के पूर्व इतिहास से लोगों को अवगत कराया गया है। भगवान महावीर ने आज से 2544 वर्ष पूर्व पावापुरी के जल मंदिर से कार्तिकअमावस्या को मोक्ष प्राप्त किया था। तभी से दीपावली पर्व मनाया जाता है और भगवान महावीर के निर्वाण जाने के उपलक्ष्य में सारे देश से लोग एकत्र होकर निर्वाण लाडू चढ़ाने के लिए पावापुरी पहुंचते हैं। रात से ही जैन धर्मावलंबी जल मंदिर प्रांगण में ले लेते हैं जगह :

पावापुरी के जल मंदिर प्रांगण के अंदर रात से ही लोग स्थान ले लेते हैं। लोगों को आशंका रहती है कि सुबह में उन्हें बैठने का स्थान मिलेगा या नहीं क्योंकि जिन्होंने जल मंदिर को देखा है, वह जानते हैं कि मंदिर प्रांगण में बैठने का ज्यादा स्थान नहीं है। श्रद्धालु भगवान के निर्वाण की प्रत्युष वेला में निर्वाण लाडू चढ़ाकर शाम में दीपमाला सजाकर दीपावली मनाते हैं। जो लोग भगवान महावीर के इस जल मंदिर तक नहीं पहुंच पाते हैं, वह अपने-अपने नगरों के मंदिरों में सुबह में भगवान महावीर का निर्वाण लाडू चढ़ा भगवान का निर्वाण उत्सव मनाते हैं। फिर उसी दिन शाम में अपने-अपने घरों में भगवान महावीर का पूजन करके दीपमालिका सजाते हैं। मान्यता है देवताओं ने किया था भगवान महावीर का अंतिम संस्कार :

जैन समाज का एक वर्ग यह भी मानता है कि आज से लगभग छठी शताब्दी ईसा पूर्व जैनधर्म के चौबीसवें अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर का निर्वाण होने पर देवताओं ने यहां पर अंतिम संस्कार किया गया। इस पवित्र स्थान की भस्म व मिट्टी को उठाते-उठाते ही एक बड़ा सा गड्ढ़ा बन गया जिसने एक विशाल सरोवर का स्थान ले लिया। इस सरोवर में कमल रहने से इसे कमल सरोवर भी कहते हैं। वर्तमान में इस सरोवर की लंबाई 1451 फुट एवं चैड़ाई 1223 फुट है। महावीर स्वामी ने इसी जल मंदिर से योग निरोध करके कार्तिक अमावस की प्रत्युष वेला में मोक्ष प्राप्त किया, उसके पश्चात सौधर्म इन्द्र आदि सभी देवताओं ने मिलकर उनका निर्वाण कल्याणक महोत्सव मनाया। पुन:अग्नि कुमार देवों ने स्वर्ग से आकर अपने मुकुट से अग्नि निकालकर भगवान के शरीर का अंतिम संस्कार किया था। वहां पर इन्द्र ने वज्र से भगवान के चरण उत्कीर्ण किये थे। कमल सरोवर में आज भी मौजूद हैं भगवान महावीर के परमाणु :

पूज्य आचार्य श्री समन्तभद्र स्वामी ने स्वयंभू स्त्रोत में लिखा है कि पावापुरी सरोवर के मध्य मणिमयी शिला से भगवान के मोक्ष जाने के बाद इन्द्रों ने वज्र से यहां पर भी चरणचिन्ह उत्कीर्ण करके इस शिला को सिद्ध शिला के समान पूज्य पवित्र बनाया था। तब से आज तक उस क्षेत्र में जाने वाला व्यक्ति यही मन में एक धारणा लिए रहता है कि भगवान महावीर के परमाणु आज भी इस मिट्टी में विद्यमान हैं। कोई-कोई व्यक्ति यह भी कहता है कि भगवान के मोक्ष जाने के समय जल मंदिर में लगा छत्र कुछ क्षण के लिए हिलने लग जाता है। पावापुरी का जल मंदिर कमलों से भरा हुआ अत्यन्त ही रमणीय एवं सुन्दर प्रतीत होता है।

नए बही-खाते की पूजा कर नववर्ष की शुरूआत मानते हैं जैन धर्मावलम्बी :

दीपावली पर्व नूतन वर्ष का आगमन लेकर भी अपने साथ आता है। आज भारत देश में वीर निर्वाण संवत, विक्रम संवत, शालिवाहन शक संवत और ईसवी सन प्रचलित है। इनके प्रथम दिवस को वर्ष का प्रथम दिन मानकर नववर्ष की मंगल कामनाएं की जाती हैं। जैन समिति नंद्यावर्त महल के मंत्री विजय कुमार जैन ने कहा कि जैन धर्मानुयायी को किस संवत का कौन सा दिवस नववर्ष का मंगल दिवस मानना चाहिए। इस विषय पर विचार करना चाहिए। वर्तमान में पाश्चात्य संस्कृति के अनुसार लोग जनवरी से नव वर्ष मनाने लग गये, लेकिन प्राचीन मान्यता के अनुसार व्यापार में जो बही और खाता लिखने की परम्परा रही है, वह दीपावली के अगले दिन से ही नव वर्ष मानते हैं। आज भी यह परम्परा साकार है। लोग अपने प्रतिष्ठानों में पूजन करने के पश्चात स्वास्तिक बनाकर रखते हैं एवं इस दिन को ही नव वर्ष मानते हैं। उसी दिन रात्रि में नूतन बही पूजन के समय लक्ष्मी और गणेश की पूजा की प्रथा है।

श्री गौतम स्वामी के पर्यायवाची नाम गणानां ईश: गणेश: गणधर: के कारण पूजते हैं लक्ष्मी-गणेश :

मान्यता है कि दीपावली के ही दिन पावापुरी में भगवान महावीर स्वामी के मोक्ष जाने के बाद सायंकाल में श्री गौतम गणधर को केवल ज्ञान प्रकट हुआ था, तत्क्षण ही इन्द्रों ने आकर उनकी गंधकुटी की रचना करके उनके केवल ज्ञान की पूजा की थी। गणानां ईश: गणेश: गणधर: ये पर्यायवाची नाम श्री गौतम स्वामी के ही हैं। सब लोग इस बात को न समझकर गणेश और लक्ष्मी की पूजा करने लगे। वास्तव में गणधर देव की केवल ज्ञान महालक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए। खासकर जैनों को तो यही कार्तिक शुक्ला प्रतिपदा का नूतन वर्ष मानना चाहिए। इसी दिन से तिथि दर्पण व कैलण्डर छपाना चाहिए। कुण्डलपुर तीर्थ पर भी दीपावली की जोरदार तैयारी :

बिहारशरीफ-राजगीर मेन रोड में पश्चिम दिशा में करीब दो किमी अंदर कुण्डलपुर नंद्यावर्त महल तीर्थ पर भी प्रतिवर्ष भगवान महावीर के निर्वाण जाने के उपलक्ष्य में निर्वाण लाडू चढ़ाया जाता है। इस बार भी दीपावली की जोरदार तैयारी है। जैन श्रद्धालु बड़ी संख्या में उपस्थित होकर भगवान के चरणों में 11 किलो का बडा निर्वाण लाडू चढाएंगे। श्रद्धालु केसरिया वस्त्र पहनकर भगवान की प्रतिमा की उंचाई के बराबर श्वेत वर्णी प्रतिमा का अभिषेक करेंगे। रात में सारे परिसर में दीप जलाए जाते हैं। पावापुरी थाना क्षेत्र में 14 नवंबर तक मांस-मछली की बिक्री पर रोक :

पावापुरी के महत्व का इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि डीएम डॉ. त्यागराजन एसएम ने 2 नवंबर से 14 नवंबर तक पूरे क्षेत्र में मांस, मछली और अंडा के बिक्री पर रोक लगा दी है। भगवान महावीर अ¨हसा के पुजारी थे। जैन धर्मावलंबी भी शाकाहारी होते हैं। इस कारण जिला प्रशासन ने यह फैसला लिया है। इसके अलावा देश-विदेश से आ रहे श्रद्धालुओं की सुविधा के मद्देनजर पावापुरी मोड़ से जल मंदिर तक जाने वाली सड़क के किनारे अतिक्रमण हटाने का काम शुरू कर दिया गया है।


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