मिट्टी के दिए जलाने का है धार्मिक महत्व
प्रकाश पर्व नजदीक आता देख इसकी तैयारी जोर पकड़ने लगी है। शहर से लेकर गांव तक लोग दिन रात घरों की साफ-सफाई में मशगूल हैं।
शिवहर। प्रकाश पर्व नजदीक आता देख इसकी तैयारी जोर पकड़ने लगी है। शहर से लेकर गांव तक लोग दिन रात घरों की साफ-सफाई में मशगूल हैं। वहीं व्यवसायी वर्ग अपनी दुकानों को सजाने संवारने में लगे हैं। लक्ष्मी पूजन की तैयारियां जोरों पर हैं। पूजा कराने को अभी से ही पंडितों की बु¨कग प्रारंभ है। वहीं ग्रामीण क्षेत्रों से लेकर विभिन्न चंक चौराहों पर पटाखों की दुकानें सज गई हैं। इधर दीपावली को लेकर कुंभकारों ने मिट्टी के दिये बनाने का काम तेज कर दिया है। दीप निर्माण में पूरा परिवार लगा है। कुंभकार विन्देश्वर पंडित बताते हैं कि बदलते जमाने के साथ लोगों की सोच बदलघ है। चायनीज रंगीन बल्ब एवं लड़ियां परंपरागत दीपों के लिए खतरा से कम नहीं है। बावजूद अभी भी लोग जो मिट्टी के दीए का महत्व जानते हैं वह दीपक जलाना नहीं भूलते। वहीं अपनी परेशानी बताते हुए कहा कि बढ़ती महंगाई में दीप निर्माण भी महंगा हो गया है। बावजूद इसके अपने पुश्तैनी धंधा को जीवित रखते हुए काम करता हूं। माधोपुर छाता के शत्रुध्न पंडित ने बताया कि दीपावली आते ही पूरे परिवार के लोगों के सहयोग से छोटे बड़े दीप, मिट्टी के हाथी, घड़े एवं बच्चों के लिए मिट्टी के खिलौने बनाने का काम शुरू हो जाता है। बताया कि हालांकि लोग अब मोमबत्ती व इलक्ट्रोनिक बल्बों को ज्यादा पसंद कर रहे हैं इसका सीधा असर हमलोगों के रोजगार पर पड़ा है। लेकिन कुछ लोग अब भी विधि विधान के अनुसार धार्मिक मान्यताओं को मानते हुए मिट्टी के दीप जलाना नहीं छोड़ते। उन्हीं लोगों की बदौलत यह परंपरागत कारोबार ¨जदा है।