मनुषमारा का काला पानी, किसानों के लिए तबाही
शिवहर। आजादी के दशकों बाद भी इलाके के किसान मनुषमारा नदी की तबाही का दंश झेल रहे ह
शिवहर। आजादी के दशकों बाद भी इलाके के किसान मनुषमारा नदी की तबाही का दंश झेल रहे हैं। नेपाल से निकलकर शिवहर जिले से होकर सीतामढ़ी की ओर जाने वाली मनुषमारा नदी का काला पानी न केवल भूमि की उर्वरता को समाप्त कर चुका है, बल्कि हजारों हेक्टेयर कृषि योग्य जमीन को अपनी गिरफ्त में ले चुका है। काला पानी की वजह से जमीन बंजर व बेजान हो गई है। किसानों पर साल दर साल कर्ज का बोझ बढ़ रहा है। बाढ़ के दिनों में बागमती नदी की धाराओं के साथ मिलकर यह नदी तबाही मचाती है। साल दर साल तबाही का दायरा बढ़ता जा रहा है। किसानों की परेशानी को सीएम ने खुद हवाई सर्वेक्षण कर देखा था। इलाके के किसानों की समस्या के समाधान के लिए कई योजनाएं बनी। लेकिन तमाम योजनाएं फाइलों में कैद होकर रह गई। शिवहर के पूर्वी छोर पर स्थित मनुषमारा नदी जो पड़ोसी जिला सीतामढ़ी व शिवहर की सीमा रेखा भी तय करती है। चीनी मिल के कचरों की वजह से कभी इसका काला दुर्गंधयुक्त पानी अभिशाप बना था। लोग इसे नियति समझ कालापानी की सजा भुगतने में ही भलाई समझ रहे थे। दुर्गंधयुक्त पानी न पशु पक्षी के पीने के काम आता हैं और न ही खेतों की सिचाई में उपयोग हीं होता है। लॉकडाउन के दौरान मनुषमारा नदी की जलधारा न सिर्फ स्वच्छ और निर्मल हो गई है वरन आस पास पक्षियों के झुंड दिखाई दे रहे थे। अब एक बार फिर नदी की धाराएं काले पानी की गिरफ्त में है। मालूम हो कि मनुषमारा नदी का उद्गम स्थल पड़ोसी देश नेपाल है। बागमती नदी की उपधारा के रूप में इस नदी का प्रादुर्भाव वर्ष 1934 में आई भूकंप में होना बताते हैं। जो कालांतर में रीगा शुगर मिल के कमिकलयुक्त कचरों से इस तरह प्रदूषित हो गई कि इस नदी किनारे बसे रीगा, मोहनपुर, शंकरपुर बिधी, मीनापुर बलहां, धनकौल सहित अन्य गांववासी खुद को अभिशापित मान रहे थे। इस समस्या को लेकर कई बार विरोध प्रर्दशन भी हुए। बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण परिषद की टीम नदी के जल का नमूना ले गई लेकिन निदान की दिशा में कोई सकारात्मक कार्य नहीं हुआ। यह हैं मामला :::
बागमती नदी का बांध टूटने के बाद इसकी सहयोगी मनुषमारा नदी ने धार बदल दी। बाद में इस नदी की धार में चीनी मिल द्वारा दूषित पानी विमुक्त कर दिया गया। लिहाजा नदी का पानी प्रदूषित हो काले रंग में बदल गया। बाढ़ बरसात में जल जमाव बढ़ जाता है। कोर्ट में मुकदमा भी दर्ज हुए। हालांकि चीनी मिल अब भी दूषित पानी छोड़े जाने की बात को खारिज करता है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अगस्त 2008 में काला पानी के गिरफ्त वाले इलाकों का हवाई सर्वेक्षण किया था और जनता की परेशानी शीघ्र दूर करने का आश्वासन दिया था। वर्ष 2008 में जल जमाव से मुक्ति के लिए फिर प्रशासनिक कसरत शुरू हुई। पहली योजना 236.50 लाख की बनी। जिसमें मनुषमारा से शिवहर जिले के पिपराही प्रखंड के धनकौल से धोधनी-कठौर- गिसारा- लखनदेई लिक चैनल बनाने की बात थी। 636.33 लाख की संभावित राशि से दूसरी योजना बनी। जिससे मनुषमारा से डुमरी घाट- रामपुर-धरहरबा- हनुमान नगर -मधुबन से लखनदेई तक जल निस्सरण कार्य कराना था। 139.33 लाख की प्रस्तावित तीसरी योजना के तहत मनुषमारा मृत धार बेलसंड से चंदौली तक पुर्नस्थापन कार्य कराना था। लेकिन तमाम योजनाएं कागजों में दफन हो किसानों के अरमानों पर काला पानी बहता रह गया ।