लॉकडाउन ने बदल दी आम व खास लोगों की दिनचर्या
कोरोना वायरस के खौफ ने देश दुनिया की न सिर्फ रफ्तार रोक दी। बल्कि घरों को एक मायने में कैदगाह बना दिया है।
शिवहर। कोरोना वायरस के खौफ ने देश दुनिया की न सिर्फ रफ्तार रोक दी। बल्कि घरों को एक मायने में कैदगाह बना दिया है। संक्रमण चक्र तोड़ने को लगाए गए 21 दिनों के लॉकडाउन ने सबकी दिनचर्या ही बदल दी है। अब चुनिदा लोगों को छोड़ किसी को ड्यूटी पकड़ने की जल्दी नहीं है। और न ही बच्चों को स्कूल छूटने और सजा भुगतने का डर। हां, एक ही डर है और वो है कोरोना वायरस संक्रमण का डर। इसके लिए एहतियातन जारी निर्देशों का पालन करने में लोग जुटे हैं। सबसे बड़ी मुश्किल आ रही है समय काटने की इसके लिए उम्र के हिसाब से कोई टीवी से चिपका हुआ है तो कोई एंड्रॉयड मोबाइल से। बच्चों को तो टीवी, मोबाइल एवं अन्य खेल के संसाधन भी मौजूद हैं बावजूद बाल मंडली के बिना उन्हें चैन कहां। परिवार के लोगों को बच्चों को बचाने को कड़ी निगरानी करनी पड़ रही है। खासकर महिलाओं की व्यस्तता बढ़ गई है। वहीं एक दिली सकून भी मिल रहा कि अभी घर भरा-पूरा दिख रहा है। फरमाइश के व्यंजन बनाना और अपनों को खिलाने का नैसर्गिक सुख को शब्दों बयां नहीं किया जा सकता। गोया कि आपदा की घड़ी में भी एक सुखानुभूति हो रही है। बच्चों में तकरार स्वयं की नोंक-झोंक का भी जीवन में अपना अलग महत्व है।
एक तबका और है जिसे कोरोना और लॉकडाउन के बावजूद दम लेने भर फुर्सत नहीं है। अन्नदाता किसान जो इस आपदा से भलि भांति परिचित हैं वहीं सरकार की इन सारी बंदिशों से भी। बावजूद इसके उन्हें अपने फसल की चिता है जो उनकी जीविका का साधन है और परिवार का आर्थिक संबल भी। दलहन की आधी फसल खलिहान में है तो आधी खेत में। गेहूं की फसल भी लगभग तैयार हो चुकी है जिसकी कटनी शेष है। ऐसे में सभी को खलिहान लाना और दौनी कर सहेजना किसी चुनौती से कम नहीं है। लॉकडाउन हो या डबल लॉकडाउन इस काम को नहीं रोका जा सकता है और न ही टाला जा सकता है। हर हाल में इसे अंजाम तक पहुंचाने की कवायद किसानों द्वारा प्रारंभ है। इसमें मजदूर की समस्या आड़े आ रही है। बहुतेरे मजदूर पंजाब हरियाणा फंस गए हैं। वहीं जो उपलब्ध हैं उन्हें कोरोना वायरस का भय सता रहा। बावजूद मौजूदा आर्थिक संकट में बढ़ी हुई मजदूरी पर ही सही काम लिया जा रहा।