बच्चों को डेस्क बेंच भी नहीं हो रहा मयस्सर
शिवहर। मुख्यालय से पांच किलोमीटर दूर पर स्थित है प्राथमिक विद्यालय महारानी स्थान धर्मपुर। जहां से एनएच 104 महज एक किलोमीटर की दूरी पर है। उक्त स्कूल को देखकर ही लगा कि यह सरकारी स्कूल ही है। कुल तीन कमरों के इस विद्यालय में एक भी डेस्क बेंच नहीं है।
शिवहर। मुख्यालय से पांच किलोमीटर दूर पर स्थित है प्राथमिक विद्यालय महारानी स्थान धर्मपुर। जहां से एनएच 104 महज एक किलोमीटर की दूरी पर है। उक्त स्कूल को देखकर ही लगा कि यह सरकारी स्कूल ही है। कुल तीन कमरों के इस विद्यालय में एक भी डेस्क बेंच नहीं है। सुबह 11. 25 बजे दैनिक जागरण की टीम पहुंची तो विद्यालय में दो शिक्षक उपस्थित हैं वहीं बच्चों की संख्या महज 17 थी। हद तो यह कि विद्यालय के दोनों शौचालय में ताले लटके मिले। वहीं परिसर में कहने को दो चापाकल हैं। लेकिन, पानी एक से निकलता है। बच्चे अपने घर से लाए बोरे पर बैठे थे। कुछ इधर उधर धमाचौकड़ी मचा रहे थे। दोनों गुरु जी बाहर मैदान में। हेडमास्टर साहब नदारद। यही है सरकारी विद्यालय की सच्चाई। बाउंड्री विहीन इस विद्यालय से बच्चे कब आए और कब निकल गए पूछने वाला कोई नहीं है। शायद यही वजह है कि अभिभावकों का इस विद्यालय से मोह भंग हो गया है। दूसरी वजह भवन जर्जर होना भी है। वहीं दूसरी ओर इसी गांव से निजी विद्यालय की गाड़ियों में बच्चे भर भरके पढने शिवहर जाते हैं कितु इस घर के पास के विद्यालय में कोई बच्चा पढ़ाना नहीं चाहता। जबकि सरकार गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा का हवाला देते हुए एमडीएम भी देती है। विद्यालय में उपस्थित शिक्षक प्रवीण कुमार गुप्ता एवं दीपक कुमार ने बताया कि विद्यालय में कुल 252 बच्चे नामांकित हैं। जिसके लिए मध्याह्न भोजन स्कूल में ही बनता है। आज महज 17 बच्चों की उपस्थिति पर बताया कि मौसम खराब होने से बच्चे कम आए हैं। वहीं पता लगा कि एमडीएम के बच्चों की तादाद स्वत: बढ़ जाती है। एचएम की गैरमौजूदगी पर कुछ भी बताने से परहे•ा किया। जबकि फोन पर जब एचएम ध्रुवनाथ पांडेय से पूछा गया तो बताया कि कुछ आवश्यक काम से शिवहर में सहायक शिक्षक को चार्ज दिया। सनद रहे कि जिला पदाधिकारी अरशद अजीज ने स्पष्ट आदेश निर्गत किया है कि अवकाश के लिए अपने विभागीय पदाधिकारी से अनुमति लेनी होगी। कुल मिलाकर उक्त विद्यालय में पढ़ाई सरकारी ढ़र्रे पर चलती दिखी। वहीं व्यवस्था तो लचर थी ही। ऐसे में इन विद्यालयों में बच्चों के सर्वांगीण विकास की उम्मीद करना बेमानी होगी।