बेलवा का दर्द बना नासूर, साढ़े तीन दशक बाद भी पुल का निर्माण नहीं
शिवहर। जिले के पिपराही प्रखंड अंतर्गत बेलवाघाट में साढ़े तीन दशक से पुल का निर्माण लंबित
शिवहर। जिले के पिपराही प्रखंड अंतर्गत बेलवाघाट में साढ़े तीन दशक से पुल का निर्माण लंबित है। बेलवा का दर्द अब नासूर बन गया है। जबकि, साढ़े तीन दशक पूर्व बने पांच पिलर व्यवस्था की नाकामी का दर्द बयां कर रहे है। अब जबकि, मौसम चुनाव का है, लिहाजा बेलवा घाट में पुल निर्माण इसबार चुनावी मुद्दा बनता दिख रहा है। लोग इसबार वोट मांगने के लिए पहुंचे नेताओं को घेरने की तैयारी में है। बताते चलें कि शिवहर को पूर्वी चंपारण जिले को जोड़ने वाली बागमती पुरानी घार पर बेलवा घाट में पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुनाथ झा की पहल पर पुल की स्वीकृति मिली। वर्ष 1985 में बेलवाघाट में पुल निर्माण के लिए तीन एकड़ जमीन अधिगृहित किया गया और चार करोड़ की लागत से पुल निर्माण की शुरूआत भी हुई। इसी बीच नदी ने धारा बदल दिया। इसके चलते काम रूक गया। तबतक निर्माण एजेंसी ने पांच पिलर बना लिया था। इसके बाद से अबतक पुल निर्माण की दिशा में कोई पहल नही हो सकी। स्थानीय लोग बताते हैं कि तीन किमी में भूमि अधिग्रहण नहीं होने के चलते पुल में पेंच फंस गया। मुआवजे को लेकर कुछ लोग कोर्ट चले गए। मामला कोर्ट में लंबित है। बेलवाघाट पर पुल का निर्माण नहीं होने से शिवहर का पूर्वी चंपारण जिले के ढ़ाका से संपर्क भंग है। उधर, पुल ही नही यहां सड़क भी बड़ी समस्या है। शिवहर-ढ़ाका पथ में तीन किलोमीटर भाग में सड़क बनाने के लिए सर्वे भी 30-35 साल से अटका है। इधर, जर्जर तटबंध और पुल के अभाव में हर साल नदी कयामत बरपाती है। वर्ष 1985 में बेलवा बांध के टूटने के बाद हाहाकार मच गया था। तब से अब तक हर साल बाढ़ के दौरान बेलवा, नरकटिया गांव व इनरवा समेत दर्जनों गांवों की हजारों की आबादी बाढ़ का कहर झेलती है। लोग बताते है कि बेलवाघाट का दर्द झेलने के प्रति न सरकार गंभीर है और नहीं प्रशासन ही। जनप्रतिनिधि हर चुनाव में वादों का सब्जबाग दिखाकर वोट ले लेते है। जीतकर जाने के बाद जनता का दर्द और खुद का वायदा याद तक नहीं रहता है।