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चिरांद संगम की महत्ता ग्रंथों में है वर्णित

कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर धार्मिक नगरी व गंगा सरयुग सोन के संगम तट चिरांद के विभिन्न घाटों पर हजारों श्रद्धालुओं ने स्नान कर पूजा अर्चना की।

By JagranEdited By: Published: Mon, 30 Nov 2020 11:22 PM (IST)Updated: Mon, 30 Nov 2020 11:22 PM (IST)
चिरांद संगम की महत्ता ग्रंथों में है वर्णित
चिरांद संगम की महत्ता ग्रंथों में है वर्णित

सारण । कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर धार्मिक नगरी व गंगा सरयुग सोन के संगम तट चिरांद के विभिन्न घाटों पर हजारों श्रद्धालुओं ने स्नान कर पूजा अर्चना की। इस दौरान जिला प्रशासन द्वारा तिवारी घाट, बंगाली बाबा घाट, जहाज घाट, मेला घाट, डोरीगंज घाट, महुआ घाट सहित अन्य घाटों पर एसडीआरएफ, एनडीआरएफ स्थानीय गोताखोर की व्यवस्था की गई थी । छपरा सदर के अंचलाधिकारी सत्येंद्र सिंह, प्रखंड विकास पदाधिकारी आनंद कुमार डोरीगंज थानाध्यक्ष ओम प्रकाश चौहान स्वयं घाटों पर मुस्तैद दिखे। चिरांद संगम तट पर स्नान करने वाले सारे पाप व तीनों ताप से मुक्त हो जाते हैं। तभी तो गोस्वामी तुलसीदास जी ने बालकांड में इस संगम तट का वर्णन किया है

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राम भगति सुरसरितहि जाई। मिली सुकीरति सरजु सुहाई।।

सानुज राम समर जसु पावन। मिलेउ महानदु सोन सुहावन।।

अर्थात सुंदर कीर्तिरूपी सुहावनी सरयू जी राम भक्ति रूपी गंगा जी में जा मिली। छोटे भाई लक्ष्मण सहित श्री राम जी के युद्ध का पवित्र यशरूपी सुहावना महानद सोन उसमें आ मिला।।

जुग बिच भगति देवधुनि धारा। सोहति सहित सुबिरति बिचारा।।

त्रिबिध ताप त्रासक तिमुहानी। राम सरूप सिधु समुहानी।।

दोनों के बीच में भक्तिरूपी गंगा जी की धारा ज्ञान और वैराग्य के सहित शोभित हो रही है। ऐसी तीनों तापों को डराने वाली यह तिमुहानी नदी रामस्वरूप रूपी समुद्र की ओर जा रही है।

एक पौराणिक कथा के अनुसार, देवता अपनी दिवाली कार्तिक पूर्णिमा की रात को ही मनाते हैं। इसलिए, यह सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन चिरांद में स्नान और दान को अधिक महत्व दिया जाता है। इस दिन चिरांद के पवित्र गंगा नदी में स्नान करने से मनुष्य के सभी पाप धूल जाते हैं। कार्तिक पूर्णिमा पर दीप दान को भी विशेष महत्व दिया जाता है। माना जाता है कि इस दिन दीप दान करने से सभी देवताओं का आशीर्वाद मिलता है ।

एक पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव ने त्रिपुरारी का अवतार लिया था और इस दिन को त्रिपुरासुर के नाम से जाना जाने वाले असुर भाइयों की एक तिकड़ी को मार दिया था। यही कारण है कि इस पूर्णिमा का एक नाम त्रिपुरी पूर्णिमा भी है। इस प्रकार अत्याचार को समाप्त कर भगवान शिव ने शांति बहाल की थी। इसलिए, देवताओं ने राक्षसों पर भगवान शिव की विजय के लिए श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए इस दिन दीपावली मनाई थी। इसलिए आज के दिन देव दीपावली भी मनाई जाती है।


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