Move to Jagran APP

अपने ही घर में दासी बनकर रह रही हिन्दी

अंग्रेज लेखक कार्लाइल ने एक बार शेक्सपीयर को श्रद्धांजलि देते हुए कहा था-'हे शेक्सपीयर आप धन्

By Edited By: Published: Sun, 13 Sep 2015 08:29 PM (IST)Updated: Sun, 13 Sep 2015 08:29 PM (IST)
अपने ही घर में दासी बनकर रह रही हिन्दी

अंग्रेज लेखक कार्लाइल ने एक बार शेक्सपीयर को श्रद्धांजलि देते हुए कहा था-'हे शेक्सपीयर आप धन्य हैं। आपके द्वारा बनायी भाषा को हिन्दुस्तान जैसा विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक राष्ट्र स्वीकार कर रहा है तथा अपनी मातृभाषा को तिलांजलि दे रहा है। इसलिये मैं आज आपको श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा हूं। भारत की तो अपनी कोई राष्ट्र भाषा है ही नहीं। विश्व के लोकतांत्रिक देशों में भारत ही एक मात्र ऐसा देश है जहां एक विदेशी भाषा को राष्ट्र भाषा के समान सम्मानित किया जाता है। भाषाई आत्महत्या का उदाहरण अन्यत्र कहीं ढूंढने पर नहीं मिलेगा।'

loksabha election banner

कार्लाइल ने हिन्दी को लेकर यह बात दशकों पूर्व कही थीं, लेकिन आज भी उनकी यह बातें तब से ज्यादा प्रासंगिक हो चली है। हम अपने बच्चों को शुरू से ही अंग्रेजी माहौल में डालना चाहते हैं। इसके लिये हम बिना सोचे समझे अंग्रेजी नामों पर खुले स्कूलों में उन्हें जबरन ढकेल रहे हैं। ऐसे में हिन्दी की अस्मिता को बचाने के लिये हम कहां कोई प्रयास कर रहे हैं। आज जब देश के कई जगहों पर हिन्दी दिवस मनाया जा रहा है। इस अवसर पर एक बार फिर हम लोग हिन्दी की खोई हुई गरिमा को वापस लाने तथा राष्ट्र भाषा के रूप में उसे स्वीकार करने की बात पर कुछ बुद्धिजीवियों का विचार प्रस्तुत करते हैं।

राष्ट्र के विकास के लिये जिस दृढ़ता व संकल्प की आवश्यकता होती है। उसका भारत में अभाव है। इस अभाव से देश कमजोर होता है। हिन्दी का विकास न होना इसी अभाव को दर्शाता है। अगर यही स्थिति रही तो हिन्दी की भी हालत बृजभाषा संस्कृत जैसी हो जायेगी। अभिव्यक्ति का माध्यम कमजोर होने से मनुष्य व देश भी कमजोर होता है। भौतिक सुविधाएं व बुनियादी सुविधाएं चाहिए, लेकिन दुनिया को जब हम खूबसूरत बनाने की बात करते हैं उसमें उसकी भाषा भी आती है। अपनी भाषा की प्रवृत्ति व स्वभाव की रक्षा करना हम लोगों का कर्तव्य होना चाहिए। आज हिन्दी को इसकी जरूरत है। ऐसा होने पर ही हम उसकी गरिमा को पुर्नस्थापित कर सकते हैं।

शंभु कमलाकर मिश्र,

सामजशास्त्री

हिन्दी दिवस पर हिन्दी की हम तो खूब बातें करते हैं। लेकिन फिर अंग्रेजी ही हमारी भाषा बन जाती है। यह ना तो राष्ट्र के लिये और ना ही समाज के लिये शुभ संकेत है। हिन्दी हमारी सिर्फ भाषा ही नहीं बल्कि संस्कार भी है। आज के बच्चे जब अंग्रेजी भाषा सीख रहे हैं तो उनका संस्कार भी अंग्रेजियत वाला हो रहा है। राष्ट्र भाषा हिन्दी की उन्नति के लिये यह आवश्यक है कि हिन्दी भाषियों में विशेष रूप से उन लोगों में जो दायित्वपूर्ण पदों पर हैं, उनमें नि:स्वार्थ सेवा का भाव प्रबल हो।

कश्मीरा सिंह,

समाजिक कार्यकर्ता

कोई देश अपनी राष्ट्र भाषा के माध्यम से ही विकास कर सकता है। इसका उदाहरण हम चीन, रूस, जापान से ले सकते हैं। इन देशों ने अपनी मातृभाषा को अपनाकर ही प्रगति की है। लेकिन भारत ही ऐसा देश है जो अपनी मातृभाषा को त्याग कर विदेशी भाषा को अंगीकार कर रहा है। इससे सही मायनों में देश का विकास नहीं हो सकता है।

अमिय नाथ चटर्जी, रंगकर्मी

राष्ट्रीय आंदोलन से लेकर विकसित राष्ट्र बनने तक में राष्ट्र भाषा ने अपनी भूमिका अदा की है। लेकिन आज हम बड़े गर्व से अंग्रेजी भाषा को अपना रहे हैं। राष्ट्र भाषा का प्रयोग न करने के कारण हमारे राजनेताओं को भी विदेशों में अपमानित होना पड़ा है। राष्ट्र भाषा हिन्दी की उन्नति के लिये यह आवश्यक है कि हिन्दी भाषियों में विशेष रूप से उन लोगों में जो दायित्वपूर्ण पदों पर हैं, उनमें नि:स्वार्थ सेवा का भाव प्रबल हो।

डा. विजया रानी,

चिकित्सक


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.