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सारण में छठ व्रतियों ने अस्ताचलगामी सूर्य को दिया अ‌र्घ्य

चैती छठ का चार दिवसीय अनुष्ठान के तीसरे दिन चैत्र शुक्ल षष्ठी यानी रविवार की संध्या पहर में अस्ताचलगामी भगवान भास्कर की पूजा संपन्न हो गयी। कोरोना संक्रमण के बढ़ते खतरे को देखते हुए अधिकांश व्रतियों ने घर में ही भगवान भास्कर को अ‌र्घ्य दिया। व्रती महिला -पुरुष ने स्नान -ध्यान कर पीला व लाल वस्त्र धारण कर पूरी पवित्रता के साथ हाथों में बांस की कलसूप में ऋतुफल ठेकुआ ईख नारियलकला रखकर डूबते हुए सूर्य अ‌र्घ्य दान किया।

By JagranEdited By: Published: Sun, 18 Apr 2021 05:25 PM (IST)Updated: Sun, 18 Apr 2021 05:25 PM (IST)
सारण में छठ व्रतियों ने अस्ताचलगामी सूर्य को दिया अ‌र्घ्य
सारण में छठ व्रतियों ने अस्ताचलगामी सूर्य को दिया अ‌र्घ्य

सारण। चैती छठ का चार दिवसीय अनुष्ठान के तीसरे दिन चैत्र शुक्ल षष्ठी यानी रविवार की संध्या पहर में अस्ताचलगामी भगवान भास्कर की पूजा संपन्न हो गयी। कोरोना संक्रमण के बढ़ते खतरे को देखते हुए अधिकांश व्रतियों ने घर में ही भगवान भास्कर को अ‌र्घ्य दिया। व्रती महिला -पुरुष ने स्नान -ध्यान कर पीला व लाल वस्त्र धारण कर पूरी पवित्रता के साथ हाथों में बांस की कलसूप में ऋतुफल ठेकुआ, ईख, नारियल,कला रखकर डूबते हुए सूर्य अ‌र्घ्य दान किया। अ‌र्घ्यदान को ले व्रतियों ने अपने घर में ही छठ घाट बनाया था। हालांकि ग्रामीण अंचलों में कुछ जगहों पर पोखर व तालाब में जाकर व्रतियों ने भगवान भास्कर को अ‌र्घ्य अर्पित किया। इस दौरान वे लोग आपस में शारीरिक दूरी बनाएं हुए थे। व्रती व उनके स्वजन अस्ताचलगामी सूर्य की पूजा अर्चना करने के बाद आंगन एवं छत पर मिट्टी के कोशी को छठी के रूप में पूजा किए।

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अब सोमवार की सुबह व्रती उदित सूर्य को अ‌र्घ्य अर्पित करेंगे। इसके साथ व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला उपवास खत्म हो जायेगा और वे पारण करेंगे। साल में छह महीने के अंतराल पर कार्तिक व चैत मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि पर होने वाले छठ पर्व का सामाजिक व धार्मिक ²ष्टि से काफी महत्व है। भविष्य पुराण के अनुसार छठ पर्व लौकिक व परलौकिक दोनों ही जीवन को सुख देने वाला है। कहते हैं कि इस पर्व से मृत्यु के बाद भी सूर्य लोक में स्थान प्राप्त होता है और वहां जीवात्मा को सुख की प्राप्ति होती है। कृषि से जुड़ा है लोक आस्था का महापर्व छठ

लोक आस्था का पर्व छठ कृषि से जुड़ा है। कार्तिक व चैत मास में यह पर्व तब मनाया जाता है जब नई फसलें कट कर किसानों के घर आ जाती है। अनाज से घर भरने को किसान सूर्य देव की कृपा मानते हैं। अन्न-धन से जब घर भर जाते हैं तो किसान परिवार सूर्य भगवान व उनकी बहन छठी मैया का आभार प्रकट करने को छठ पर्व मनाते हैं। छठी मैया ब्रह्मा की मानस पुत्री और षष्ठी तिथि की स्वामिनी हैं। भगवान सूर्य की बहन होने के नाते षष्ठी तिथि को छठी मैया के साथ सूर्य देव की भी पूजा-अर्चना की जाती है। मर्यादापुरुषोत्म श्रीराम व पांडवों ने भी किया था षष्ठी व्रत

ऐसी मान्यता है कि मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम भी छठ का व्रत रखा करते थे। सूर्य देव उनके कुल देवता थे। श्रीराम शुक्ल षष्ठी तिथि को माता सीता के साथ अस्त होते और उगते सूर्य को अ‌र्घ्य अर्पित कर यह व्रत किया करते थे। वहीं पांडवों ने भी इंद्रप्रस्थ में द्रोपदी के साथ भगवान भास्कर को अ‌र्घ्य देकर षष्ठी व्रत किया था। सतयुग में ही आरंभ हो चुका था छठ पर्व

ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार छठ पर्व का आरंभ सतयुग में हो चुका था। उस समय पृथ्वी पर स्वयंभू मनु के पुत्र प्रियव्रत का राज था। लंबे इंतजार के बाद उनके घर संतान का जन्म हुआ। लेकिन देवयोग से वह संतान मृत पैदा हुई थी। प्रियव्रत दुखी मन से उस संतान का अंतिम संस्कार करने जा रहे थे। तभी दिव्य आभा के साथ षष्ठी देवी का प्रकाट्य हुआ। उन्होंने प्रियव्रत के संतान को नवजीवन प्रदान किया और साथ ही छठ व्रत करने को कहा। फिर राजा ने अपनी प्रजा के साथ सूर्य षष्ठी व्रत को किया।


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