अशिष्टता ही अनैतिकता का कारण
शिष्टाचार और नैतिक मूल्यों के बल पर विश्व के विभिन्न पटल पर भारत अपनी पहचान को स्थापित कर चुका है।
समस्तीपुर। शिष्टाचार और नैतिक मूल्यों के बल पर विश्व के विभिन्न पटल पर भारत अपनी पहचान को स्थापित कर चुका है। लेकिन दिनानुदिन अशिष्टता और अनैतिकता की ओर बढ़ रहा हमारा समाज अपनी परंपरा और धरोहरों को लगातार भूलता जा रहा है। इसकी संरक्षा व संवर्द्धन करना हम सबों का कर्त्तव्य है। इसके लिए सबसे अधिक युवा पीढ़ी को कसरत करनी होगी, क्योंकि आज का युवा वर्ग अपनी संस्कृति, सभ्यता, नैतिक चरित्र एवं सामाजिक कर्त्तव्य को तेजी से भूलते जा रहे हैं। आधुनिक परिवेश में अपनी मानवता को भूल कर लगातार गलत विचारों को अपना रहे हैं और तो और यह पीढ़ी जन्म देने वाले माता-पिता तक को आदर नहीं देकर नये परिवेश में ही अपना जीवन बसर करना चाहते हैं। इसके लिए स्कूलों में नैतिक शिक्षा का अनिवार्यता जरूरी है। जिससे कि बचपन से ही बच्चों को नैतिक शिक्षा का पाठ पढ़ाया जा सके और युवा होने तक इनमें सद्विचार, सदाचरण, के साथ-साथ शिष्टता और नैतिकता भी उनके अंदर प्रवेश कर सके। जो हमारे युवाओं के लिए आगे बढ़ने का मूल मंत्र भी साबित होगा। पूर्व में हमारे समाज में शिष्टाचार और नैतिकता का यह आलम था कि अपनों से बड़ों का आदर करना, उन्हें उचित प्रेम करना, दीन दुखी एवं नि:शक्तों को मदद करना, ऐसे लोगों के प्रति दया का भावना रखना तथा भूखों को भोजन कराना आदि समाज के व्यवहारिक प्रतिमान माने जाते थे। लेकिन आज सब विपरीत हो चला है। अशिष्टता, अनैतिकता जैसे विचारों एवं व्यवहारों का बोलबाला है। माता-पिता जिन्होंने हमें पाल कर बड़ा किया, आज हम उन्हें बोझ मान रहे हैं। आश्रम तक पहुंचाने में भी हिचक नहीं हो रही है। आज का आधुनिक समाज सामाजिक आदर्शो श्रेष्ठता, नैतिकता और सदाचारिता सबों की बलि चढ़ा चुकी है। जब तक शिष्टता नहीं आएगी, तब तक नैतिक मूल्यों का विकास संभव नहीं है।
- गणेश प्रसाद राय, निदेशक, सन साईन स्कूल, ढ़रहा
क्या कहते हैं शिक्षक
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प्राथमिक शिक्षा में नैतिक शिक्षा का पाठ्यक्रम निश्चित रूप से जोड़ना चाहिए। जब तक बच्चों को नैतिकता का पाठ नहीं पढ़ाया जाएगा, तब तक उनमें शिष्टाचार का विकास नहीं होगा। लगातार अशिष्ट हो रहे छात्रों के कारण विद्यालयों में भी गुरू-शिष्य परम्परा लगभग समाप्त ही हो चुकी है। इसको मजबूत करने से ही शिष्ट छात्र के साथ-साथ एक सफल समाज का निर्माण संभव है।
- कुमार रजनीश, शिक्षक
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मानव जीवन में शिक्षा का विशेष महत्व है। इसके बिना सम्पूर्ण मानव कहलाना संभव नहीं है। और जब तक शिक्षा नहीं होगी तब तक नैतिकता और शिष्टता की बात करना ही बेईमानी होगी। हमें सबसे पहले युवाओं को शिक्षित करने के साथ-साथ रोजगारोन्मुख शिक्षा पर भी बल देना होगा।
- संजीव कुमार, शिक्षक
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मनुष्य का संस्कार उसके समाज और परिवार पर निर्भर करता है। और वहां से प्राप्त शिक्षा ही मनुष्य के लिए अहम माना जाता है। संस्कार के बल पर ही शिष्टाचार और नैतिकता बलवती होती है। और जब तक जीवन है, तब तक कुछ न कुछ सीखने की आकांक्षा भी रखनी चाहिए।
- रेणु कुमारी ज्योति, शिक्षिका
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मनुष्य का जीवन नैतिकता, उदारता, सामाजिकता और व्यक्तित्व पर आधारित है। समाज में शिष्टाचार और नैतिकता कायम करने के लिए अनुशासनबद्ध होना आवश्यक है। विद्यालयों में बच्चों को नैतिक शिक्षा के साथ-साथ अनुशासन का पाठ पढ़ाना भी आवश्यक है।
- संजय कुमार ¨सह, शिक्षक
बोले छात्र
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विद्यालयों में महापुरूषों की जीवनी आधारित पाठ्यक्रम की पढ़ाई सुनिश्चित करना जरूरी है। एकलव्य, अर्जुन, आरूणी जैसे महापुरूषों की जीवनी से शिष्टाचार और नैतिकता दोनों की शिक्षा प्राप्त होना संभव है।
- कुमारी अनुष्का, छात्रा
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सदाचार व अनुशासित जीवन के साथ ही शिष्टता और नैतिकता की बात संभव है। और इसके लिए स्कूलों में नैतिक शिक्षा का पाठ पढ़ाना आवश्यक है। साथ ही गुरू-शिष्य परंपरा की मजबूती भी अशिष्टता और अनैतिकता को रोकने में सफल हो सकता है।
- अमन कुमार, छात्र
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आज्ञाकारिता, परोपकार, अनुशासन एवं सदाचारिता हमारी पहचान रही है। जो आज इतिहास में बदलती जा रही है। अपने इस धरोहर को बचाने के लिए बच्चों के साथ-साथ माता-पिता एवं समाज को भी आगे आना पड़ेगा। घर में दी गई शिक्षा ही शिष्टाचार और नैतिकता का जड़ है।
- अंशु कुमार, छात्र
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नैतिक मूल्यों का गिरते स्तर को रोकने के लिए समाज में जागरुकता की आवश्यकता है। शिक्षित समाज ही एक शिष्ट व नैतिक व्यक्ति को जन्म दे सकता है। शिष्टाचार और नैतिकता से ही मानव को सम्पूर्ण मानव कहा जाता है। संस्कृत के श्लोक में अशिक्षित मनुष्य को पशु के समान का दर्जा दिया गया है।
- रामानन्द कुमार, छात्र