सदर अस्पताल में चिकित्सा सुविधा बदहाल
समस्तीपुर। जिले में बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर आमजन को कई आश्वासन मिले। लेकिन यह कागजों से बाहर नहीं आ सकी।
समस्तीपुर। जिले में बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर आमजन को कई आश्वासन मिले। लेकिन यह कागजों से बाहर नहीं आ सकी। जिले के स्वास्थ्य संस्थानों में मरीजों को सुविधाएं कम और दिक्कतें अधिक झेलनी पड़ती है। स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध करवाने के लिए राजनीतिक दल भी कभी दिलचस्पी नहीं दिखाते है। सेहत के सवाल पर जवाब आज भी उलझे हुए है। अस्पतालों में न पूरी दवाइयां उपलब्ध हो पाई है और न ही सभी जांच की सुविधाएं ही। मरीज आज भी प्राइवेट संस्थानों में महंगे दाम पर जांच करवाकर बाहर से दवा खरीदने को मजबूर है। जिले के सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों में चिकित्सकों के कई पद रिक्त हैं। इस कारण मरीज भगवान भरोसे हैं। सदर अस्पताल में मरीजों का इलाज कम, रेफरल ज्यादा बन गया है। प्रस्तुत है समस्तीपुर से संवाददाता प्रकाश कुमार की रपट।
---जिले की आबादी करीब 44 लाख है लेकिन विडंबना देखिए कि यहां एक भी स्तरीय सरकारी अस्पताल नहीं है। एक मेडिकल कॉलेज खोलने की घोषणा हुई थी तो उसका स्थल चयन में ही कई वर्ष बीत गए। अब जब स्थान निर्धारित हो गया है तो लोगों में थोड़ी आस जगी है। फिलहाल जिले के सबसे बड़े अस्पताल सदर अस्पताल को ही अपना अस्तित्व बचाकर रखने में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। संसाधनों की समस्या दूर करने के बाद भी मरीजों को बेहतर चिकित्सा सुविधा नहीं मिल रही है। सदर अस्पताल मरीजों की चिकित्सा करने में कितना सक्षम होगा, यह समझा जा सकता है। बावजूद इसके जिले में सरकारी चिकित्सा सेवा को दुरुस्त करने का मुद्दा लोकसभा चुनाव में गौण है। बात सिर्फ इस चुनाव की नहीं है। अरसे से राजनीतिक दलों के एजेंडे में सदर अस्पताल की चिकित्सा सेवा का विस्तार नहीं रहा है। इसी का परिणाम है कि यहां के गरीबों को या तो संसाधन विहीन स्वास्थ्य संस्थानों में जिदगी की जंग लड़नी पड़ती है या फिर बेहतर इलाज के लिए जमीन-जायदाद बेचना पड़ता है। सदर अस्पताल की बदहाल चिकित्सा व्यवस्था को लेकर हमेशा हंगामा होता है। गंभीर मरीजों के इलाज की सुविधा नहीं
सदर अस्पताल में मरीजों को आइसीयू और अल्ट्रासाउंड की सुविधा अब तक उपलब्ध नहीं कराई गई है। आइसीयू की सुविधा नहीं होने के कारण गंभीर मरीजों को इलाज कराने में काफी परेशानी होती है। पिछले चार साल से जिला स्वास्थ्य समिति सदर अस्पताल में आइसीयू खोलने की पहल कर रही है लेकिन अब तक सफलता नहीं मिली है। मिली जानकारी के अनुसार प्रत्येक माह औसतन एक सौ से अधिक मरीजों को पीएमसीएच या डीएमसीएच रेफर किया जाता है। खासकर कोई बड़ी घटना या दुर्घटना होने पर सदर अस्पताल में गंभीर मरीजों का उचित इलाज नहीं हो पाता है। संसाधनों की कमी के कारण प्राथमिक उपचार कर ऐसे मरीजों को रेफर कर दिया जाता है, जिसके कारण मरीजों के अलावा उनके परिजनों की परेशानी बढ़ जाती है। सदर अस्पताल में प्रत्येक दिन 80 से अधिक महिला मरीज चिकित्सा के लिए पहुंचती है। औसतन प्रत्येक दिन 30 से 35 प्रसव भी कराया जाता है। बावजूद इसके मरीजों को अल्ट्रासाउंड की सुविधा नहीं मिल रही है। वहीं बर्न वार्ड को बंद कर देने से आग से झुलसे मरीजों को सामान्य वार्ड में ही रखा जाता है। जिससे उन्हें इंफेक्शन फैलने का खतरा बना रहता है। मरीज लाचार, व्यवस्था बीमार
सदर अस्पताल में सुविधाएं कम और समस्याएं अधिक है। यहां मरीज और उनके परिजनों के साथ कर्मचारियों को भी परेशानी का सामना करना पड़ता है। लेकिन उनकी समस्याओं के समाधान पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। अस्पताल पहुंचते ही कई मरीज दम तोड़ देते हैं, तो कई पहुंचने के बाद सीधे रेफर कर दिए जाते है। वैसे इस अस्पताल में मरीजों के साथ कर्मचारी और चिकित्सक का दर्द भी कम नहीं है। समस्याएं कई, समाधान नहीं
अस्पताल आने में सबसे पहले जाम का सामना करना पड़ता है। मरीज और उनके परिजनों के साथ-साथ चिकित्सा कर्मियों के वाहनों के लिए पड़ाव स्थल नहीं है। सदर अस्पताल में भर्ती होने वाले मरीज के लिए अटेंडेंट शेड नहीं होने की समस्या है। अस्पताल में भर्ती मरीजों और उनके परिजनों के साथ चिकित्सा कर्मियों को पीने के लिए पानी की सबसे बड़ी समस्या रहती है यही नहीं इन्हें नित्यक्रिया से निपटना भी मुश्किल होता है। सेंट्रलाइज पैथोलॉजिकल सेंटर नहीं होने से सभी तरह की जांच की सुविधा मरीजों को नहीं मिल पाती है, जिससे निजी जांच केंद्र के दलाल सदर अस्पताल के पैथोलॉजिकल केंद्र में सक्रिय रहते हैं। मरीजों को निबंधन और दवा लेने के लिए घंटों कतार में लगना पड़ता है। चिकित्सक से इलाज के लिए घंटों तक इंतजार करना पड़ता है। सदर अस्पताल में पूछताछ केंद्र बनाने के बाद भी इसे सुचारु रूप से आजतक नहीं चलाया जा सका है। जिस कारण जानकारी के लिए लोगों को भटकना पड़ता है। चिकित्सक के एप्रन और अधिकांश कर्मियों के निर्धारित ड्रेस में नहीं होने से अस्पताल कर्मी की पहचान नहीं हो पाती है। इससे मरीज और परिजन ठगी के शिकार होते है। अस्पताल का हाल
- मरीजों के लिए 82 बेड स्वीकृत है, जबकि अक्सर 150 से 175 तक मरीज भर्ती रहते हैं।
- यहां पर सुपर स्पेशलिस्ट विभाग एवं चिकित्सक नहीं है।
- अल्ट्रासाउंड, आइसीयू जैसी जांच की सुविधा नहीं है।
- कई मशीनें खराब हैं, वहीं कर्मियों के अभाव में भी जांच में परेशानी होती है।
- यहां पर स्कीन, मनोवैज्ञानिक चिकित्सक नहीं है। जिससे मरीजों को इलाज में परेशानी का सामना करना पड़ता है।
- मरीजों को सभी प्रकार की दवा अस्पताल में नहीं मिलती हैं, जिस कारण मरीजों को दवा खरीदनी पड़ती है।