छठ महापर्व संपन्न होते ही सामा चकेवा शुरू
वृंदावन में आग लागल कोई न बुझावे हे, हमरे जे..गीत अब रात को गांवों में गूंजने शुरू हो गये हैं।
समस्तीपुर । वृंदावन में आग लागल कोई न बुझावे हे, हमरे जे..गीत अब रात को गांवों में गूंजने शुरू हो गये हैं। भाई-बहन के प्रेम पर्व की शुरुआत हो गई है। छठ पर्व संपन्न होने के बाद भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक लोकपर्व सामा चकेबा मनाने की पुरानी परंपरा आज भी कायम है। बुधवार को छठ की समाप्ति के साथ ही बालिकाएं बाजार से सामा चकेवा की मिट्टी से बनी मूर्ति की खरीदारी कर घर ले जा रही थी। परंपरा के अनुसार बहनें सनई से निर्मित चुगला को गाली देते हुए उसकी दाढ़ी में आग लगाती हैं और गाती हैं चुगला करे चुगली बिलैया करे म्याउं-म्याउं। इसी तरह सामा चकेबा के कुछ प्रचलित लोक गीतों के साथ बहन भाई के लिए सामा- चकेवा का पर्व प्रारंभ करती है। कार्तिक पूर्णिमा तक होने वाली सामा चकेवा गांवों की बहनें अपने भाईयों के दीर्घ एवं सुखमय जीवन की मंगलकामना के साथ इसे मनाती हैं। शाम ढ़लने के बाद बहनें सामा चकेवा, सतभईया, चुगला, वृंदावन, चौकीदार, झाझी कुकुर आदि की मूर्तिया बांस की बनी चंगेली में रखती हैं। इसके बाद जोते हुए खेतों में जुटकर पारंपरिक सामा चकेवा के गीत गाती हैं। वहीं खर से निर्मित वृंदावन में आग लगाने और बुझाने की रस्म अदा की जाती है। इस दौरान महिलाएं और युवतियां पूरे उत्साह से इन रस्मों की अदायगी के बाद देर रात सामा चकेवा की मूर्ति का विशेष रूप से श्रृंगार करती हैं वहीं उसके खाने के लिए हरे-हरे धान की बालियां दी जाती हैं और रात्रि में इसे खुले आकाश में छोड़ दिया जाता है। पर्व के समापन के दिन भाई बजरी खाते हुए बहन के सभी कष्टों को दूर करने का संकल्प लेता हैं। भाई द्वारा तोड़ी गई प्रतिमा को नदी, तालाब या किसी जलाशय में विसर्जन के साथ ही इसका समापन हो जाता है।