प्लेग से बचने को आपस में बना ली दूरी, गांव से रहते थे बाहर
आंखें सूनी सूखा कंठ.चिता में डूबा मन। चेहरे पर फीकी मुस्कान.बातों में भी थकान। ये हैं अजना गांव के 95 वर्षीय मिश्री राय। जीवन के हर रंग देखे भयावहता पहली बार। प्लेग हैजा जैसी महामारियों की मार झेली पर कोरोना जैसा खौफ नहीं देखा।
समस्तीपुर । आंखें सूनी, सूखा कंठ.चिता में डूबा मन। चेहरे पर फीकी मुस्कान.बातों में भी थकान। ये हैं अजना गांव के 95 वर्षीय मिश्री राय। जीवन के हर रंग देखे, भयावहता पहली बार। प्लेग, हैजा जैसी महामारियों की मार झेली, पर कोरोना जैसा खौफ नहीं देखा। साल 1934 में प्लेग का मंजर याद करते हैं। कहते हैं, नौ-दस साल की उम्र रही होगी। प्लेग का दौर आया। लोगों को मरते भी देखा। मेरी माता मुनेश्वरी देवी और घरवालों को यह कहते सुना था 'पिलेग' से मर गया। तब, इतनी बुद्धि नहीं थी। आज जब कोरोना संक्रमण देख रहा तो दिल बैठा जा रहा। कल्याणपुर के अंजना गांव के मिश्री राय व जामुन दास ने पुराने अनुभवों को किया साझा। प्लेग के प्रकोप से बचने को छोड़ दिया था गांव
आज जिस लॉकडाउन की बात हो रही। आपस में दूरी रखने की सलाह दी जा रही। यह सब उस दौर की बातें हैं। जब प्लेग का प्रकोप हुआ, तब हमलोगों ने घर छोड़ दिया था। मां मालिक के आम के बगीचे में ले जाया करती थीं। पूरे गांव के लोगों ने ऐसा ही किया था। हमारा पूरा परिवार महीनों एक-दूसरे से अलग होकर रहा। जब हैजे का प्रकोप हुआ तो घर छोड़कर एकांत बगीचे में मचान पर रहने लगे। भोजन भी सामान्य होता था। माड़-भात और नमक यह सबके लिए था। मन बदलने को सत्तू घोलकर पी लिया। कोई डर से घर जाना नहीं चाहता था। बाजार-हाट भी लगभग बंद हो गए थे। लोग डर से वहां नहीं जाया करते थे।
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संक्रमण चक्र तोड़ने को लॉकडाउन जरूरी
मिश्री राय बताते हैं कि महामारियों के प्रकोप के दौरान लोगों ने खुद गांव-घर से दूर रहने का निर्णय लिया था। इस निर्णय से हजारों लोगों की जान बची थी। आज कोरोना संक्रमण की आशंका के बीच लॉकडाउन और फिजिकल डिस्टेंस का निर्णय उचित लगता है। उनकी आंखों में उम्मीद जगती है कि इससे हम बीमारी से पार पा जाएंगे।
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लोगों ने किया था एकांतवास
वार्ड नंबर नौ के जामुन दास कहते हैं, जब भी देश में महामारी आई, हमलोगों ने एकांतवास किया। लोगों से मिलना-जुलना बंद कर दिया। कुएं का पानी उबालकर पीते थे। नीम की पत्तियों को उबालकर उस पानी का सेवन करते थे। उसी से नहाते थे। हमारे लिए वही सैनिटाइजर था। पूरा गांव शाकाहारी हो गया था। किसी की तबीयत बिगड़ती तो वैद्यजी आते थे। सबको हाथ धोकर भोजन करने, एक साथ नहीं रहने, गांव से दूर शौच करने आदि की सलाह देते। ऐसा करके ही हम बीमारी से उबर पाए थे।