नहाय खाय के साथ लोक आस्था का महापर्व छठ शुरू
केरवा जे फरेला घवद से ओई पर सुगा मेडऱाय उजे खबरी जनइबो अदिक, सूरज से सुगा देले जुठियाई।
समस्तीपुर । केरवा जे फरेला घवद से ओई पर सुगा मेडऱाय उजे खबरी जनइबो अदिक, सूरज से सुगा देले जुठियाई। उजे मरबो रे सुगवा धनुक से सुगा गिरे मुरझाय उजे सुगनी जे रोए ले वियोग से आदित होइ ना सहाय देव होइ ना सहाय..। हर तरफ मन को विभोर करने वाली छठ की ऐसी ही गीत सुनाई दे रही। पूरा वातावरण भक्ति व उत्साह में डूबा हुआ है। चार दिवसीय महापर्व छठ पूजा की सारी तैयारी पूरी कर ली गई है। इसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को तथा समाप्ति कार्तिक शुक्ल सप्तमी को होती है। इस दौरान व्रतधारी लगातार 36 घंटे का व्रत रखते हैं। व्रत के दौरान वे पानी भी ग्रहण नहीं करते। रविवार को नहाय खाय से छठ पूजा शुरू हो जाएगी। पहला दिन कार्तिक शुक्ल चतुर्थी नहाय-खाय के रूप में मनाया जाता है। आज लोग सबसे पहले घर की सफाई करते हैं। उसके बाद छठव्रती स्नान कर पवित्र तरीके से बने शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण कर व्रत की शुरुआत करते हैं। घर के सभी सदस्य व्रती के भोजन करने के बाद ही भोजन ग्रहण करते हैं। भोजन के रूप में कद्दू,चने का दाल और चावल ग्रहण किया जाता है। दूसरे दिन कार्तिक शुक्ल पंचमी को व्रती दिन भर उपवास रखने के बाद शाम को भोजन करते हैं। इसे खरना कहा जाता है। खरना का प्रसाद लेने के लिए आस-पास के सभी लोगों को निमंत्रित किया जाता है। प्रसाद के रूप में गन्ने के रस में बने हुए चावल की खीर के साथ घी लगी रोटी बनाई जाती है। इसमें नमक या चीनी का उपयोग नहीं किया जाता है। तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को दिन में छठ प्रसाद बनाया जाता है। प्रसाद के रूप में ठेकुआ ,चावल के लड्डू आदि बनाए जाते हैं। इसके अलावा खाजा व विभिन्न तरह के फल, हल्दी, मूली आदि चढ़ाया जाता है। शाम को बांस की टोकरी में अर्घ्य का सूप सजाया जाता है और व्रती के साथ परिवार तथा पड़ोस के सारे लोग अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने घाट की ओर चल पड़ते हैं। चौथे दिन कार्तिक शुक्ल सप्तमी की सुबह उदीयमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।
महापर्व छठ को लेकर शुक्रवार को पूरा बाजार गुलजार रहा। हजारों की संख्या में छठव्रती पूजा सामग्री की खरीदारी के लिए बाजार पहुंची। बाजार में जबर्दस्त गहमा -गहमी रही। भीड़ के कारण हर तरफ जाम ही जाम लगा रहा। इस चार दिवसीय महापर्व की शुरुआत 04 नवंबर को नहाय खाय के साथ हो रही है। छठ में उपयोग की जाने वाली पूजा सामग्री में बांस की बनी सूप, डाला, मिट्टी के दीए, मिट्टी के हाथी प्रसाद के लिए हल्दी के गांठ लगे पौधे, मूली, अड़वी, सूथनी अदरक, तरह के फल से बाजार पट गया है। जगह-जगह पूजा सामग्री की दुकानें सज गई है। सड़क किनारे जगह-जगह दुकानें सजी है। पिछले साल की तुलना में इस बार पूजा सामग्री के दामों में कोई खास अंतर नहीं है। पूजा पर जीएसटी का भी कोई असर नहीं दिख रहा है। पूजा सामग्री की खरीदारी में लोग कोई कोताही नहीं बरत रहे हैं।
महापर्वछठ सूर्योपासना का प्रसिद्ध पर्व है। इस महापर्व का सीधा संबंध प्रकृति से है तथा इसमें गहरा विज्ञान छिपा है। वैसे यह यह पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है। पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में। चैत्र शुक्लपक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले छठ पर्व को चैती छठ व कार्तिक शुक्लपक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले पर्व को कार्तिकी छठ कहा जाता है। पारिवारिक सुख-स्मृद्धि तथा मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए यह पर्व मनाया जाता है। इस पर्व को स्त्री और पुरुष समानरूप से मनाते हैं। छठ व्रतके संबंध में अनेक कथाएं प्रचलित हैं। कहा जाता है कि जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा। तब उसकी मनोकामनाएं पूरी हुईं तथा पांडवों को राजपाट वापस मिल गया। लोक परंपरा के अनुसार सूर्य देव और छठी मइया का संबंध भाई-बहन का है। लोक मातृका षष्ठी की पहली पूजा सूर्य ने ही की थी। छठ पर्व की परंपरा में बहुत ही गहरा विज्ञान छिपा हुआ है। षष्ठी तिथि छठ एक विशेष खगौलीय अवसर है। उस समय सूर्यकी पराबैगनी किरणें पृथ्वी की सतह परसामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती हैं। उसके संभावित कुप्रभावों से मानवकी यथासंभव रक्षा करने का सामर्थ्य इस परंपरा में है। सूर्यके प्रकाश के साथ उसकी पराबैगनी किरण भी चंद्रमा और पृथ्वी पर आती हैं। सूर्यका प्रकाश जब पृथ्वी पर पहुंचता है तो पहले उसे वायुमंडल मिलता है। वायुमंडल में प्रवेश करने पर उसे आयन मंडल मिलता है। पराबैगनी किरणों का उपयोग कर वायुमंडल अपने ऑक्सीजन तत्व को संश्लेषित कर उसे उसके एलोट्रोप ओजोन में बदल देता है। इस क्रिया द्वारा सूर्य की पराबैगनी किरणों का अधिकांश भाग पृथ्वी के वायुमंडल में ही अवशोषित हो जाता है। पृथ्वी की सतह पर केवल उसका नगण्य भाग ही पहुंच पाता है। सामान्य अवस्था में पृथ्वी की सतह पर पहुंचने वाली पराबैगनी किरण की मात्रा मनुष्यों या जीवों के सहन करने की सीमा में होती है। अत: सामान्य अवस्था में मनुष्यों पर उसका कोई विशेष हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ता बल्कि उस धूप द्वारा हानिकारक कीटाणु मर जाते हैं, जिससे मनुष्य या अन्य जीवों को लाभ ही होता है।चंद्रमा और पृथ्वीके भ्रमण तलों की सम रेखा के दोनों छोरों पर सूर्य की पराबैगनी किरणें कुछ चंद्र सतह से परावर्तित तथा कुछ गोलीय अपवर्तित होती हुई पृथ्वी पर पुन: सामान्य से अधिक मात्रा में पहुंच जाती हैं। वायुमंडल के स्तरों से आवर्तित होती हुई सूर्यास्त तथा सूर्योदय को यह और भी सघन हो जाती है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार यह घटना कार्तिक तथा चैत्र मासकी अमावस्या के छह दिन बाद आती है।ज्योतिषीय गणना पर आधारित होने के कारण इसका नाम छठ पर्व रखा गया है।