गांवों के विकास की राह में अधूरा पुल बना रोड़ा
विद्यापतिनगर। सूबे में विकास की रफ्तार ने प्रखंड के कई पुल-पुलियों की तस्वीर बदल कर रख दी। लेकिन प्रखंड क्षेत्र स्थित गंगा की सहायक वाया नदी के अखाड़ा घाट पुल निर्माण का कार्य 6 साल बीत जाने के बाद भी अधूरा है।
विद्यापतिनगर। सूबे में विकास की रफ्तार ने प्रखंड के कई पुल-पुलियों की तस्वीर बदल कर रख दी। लेकिन प्रखंड क्षेत्र स्थित गंगा की सहायक वाया नदी के अखाड़ा घाट पुल निर्माण का कार्य 6 साल बीत जाने के बाद भी अधूरा है। प्रखंड मुख्यालय से तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित मऊ दियारा,शेरपुर दियारा, समसीपुर, विशनपुर, दादुपुर आदि गांवों की आबादी इस पुल के निर्माण को लेकर आज भी किसी तारणहार की तलाश में हैं। ऐसे में आज भी इलाके के लोगों की जिदगी चचरी पुल और नावों पर रेंगती है। वर्ष 2013 में इस पुल की आधारशिला रखी गई थी। पांच पिलर भी बनकर तैयार हो गए लेकिन प्रशासनिक और राजनीतिक उदासीनता के चलते पुल निर्माण अधूरा पड़ गया। मामला कोर्ट में जा पहुंचा। संवेदक काम बंद कर फरार होगया। फिर क्या था इलाके के विकास की राह में रोड़ा अटक गया। जिसके बाद किसी ने इसकी सुध ही नहीं ली। संवाददाता पदमाकर सिंह लाला की रपट : ----विद्यापतिनगर प्रखंड मुख्यालय से सिर्फ तीन किलोमीटर की दूरी पर बसे मऊ दियारा,शेरपुर दियारा, समसीपुर, विशनपुर, दादुपुर आदि गांवों के हजारों लोगों के विकास की राह में पुल का रोड़ा अटका है। यहां के लोग अपनी जान हथेली पर रख अपने दैनिक क्रियाकलापों को अंजाम देते हैं। साल में पांच महीने तो पूरा इलाका नदियों की जलधारा के बीच टापू में ही तब्दील रहता है। नियति ऐसी की नाव या फिर डेंगी ही आवागमन का एकमात्र सहारा। बाकी समय चचरी पुल का आसरा। पेच में फंसा निर्माण कार्य
प्रखंड अंतर्गत मऊ वाया नदी अखाड़ा घाट पूल का निर्माण कार्य वर्षों से अधूरा पड़ा है। कार्यकारी एजेंसी ग्रामीण कार्य विभाग कार्य प्रमंडल पटोरी, संवेदक विनय कुमार द्वारा पुल का निर्माण कार्य किया जाना था। इस आरसीसी पुल की अनुमानित लागत 809.67 लाख था। इसका निर्माण कार्य भी शुरू हुआ। पांच पिलर बनकर खड़े भी हो गए। इसी बीच राजनीति का रोड़ा अटक गया। करोड़ों रुपये खर्च किए जाने के बाद कतिपय भू-स्वामियों द्वारा मुआवजे की मांग को लेकर कोर्ट में वाद दायर कर अड़ंगा लगा दिया गया। हालांकि कोर्ट ने निर्माण कार्य रोकने की बात नहीं की लेकिन कतिपय भू-स्वामियों द्वारा हस्तक्षेप के कारण पुल का निर्माण कार्य अधूरा पड़ा है। पुल का शिलान्यास 25 अक्टूबर 2013 को तत्कालीन जल संसाधन मंत्री सह स्थानीय विधायक विजय कुमार चौधरी ने तत्कालीन सांसद अश्वमेघ देवी द्वारा किया गया था। पुल बनते तो जुड़ते दिल
इस पुल के बनने से दो जिले बेगूसराय और समस्तीपुर के दर्जन भर पंचायत मसलन मऊ दियारा, शेरपुर दियारा, समसीपुर, किशनपुर, चिड़ैया टोंक, दादुपुर आदि के करीब 50 हजार की आबादी को आवागमन में सहूलियत होती। एक प्रखंड से दूसरे प्रखंड सहित पड़ोसी जिले के हजारों लोगों को आवागमन में आसानी होती। कई गांवों की दूरी कम होती। चचरी पुल पार कर बच्चे जाते स्कूल इस इलाके के सैकड़ों बच्चे प्रतिदिन अपनी जान जोखिम में डालकर चचरी पुल के सहारे अपनी तकदीर गढ़ने के लिए मऊ बाजार, विद्यापतिनगर, दलसिंहसराय सहित अन्य जगहों पर पढ़ने जाते हैं। तो बरसात व बाढ़ के समय नाव के सहारे विद्यालय जाते हैं। अलबत्ता यह कि जब तक वे घर लौट कर नहीं आते तबतक परिजनों की चिता बनी रहती है। दैनिकचर्या की वस्तुओं के लिए बाजार जाते हैं लोग
इस इलाके के सैकड़ों लोग प्रतिदिन चचरी पुल और बरसात में नावों के सहारे अपनी दैनिकचर्या की वस्तुओं की खरीदारी करने के लिए मऊ बाजार, विद्यापतिनगर,बाजिदपुर, बछवाडा, दलसिंहसराय आदि जगहों के लिए आवागमन करते हैं। वहीं किसानों के लिए कृषिगत वस्तुओं की खरीदारी कर उसे घर तक लाना परेशानी का सबब बन जाता है। रिश्ते से कतराते हैं मेहमान
ग्रामीणों की मानें तो कई रिश्ते इसलिए टूट गए कि इस इलाके में जाने के लिए एक रास्ता तक नहीं है। पुल निर्माण कार्य के ठंडे बस्ते में जाने के कारण विकास नाम की रोशनी इस इलाके में अभी तक नहीं पहुंच सकी है। खेतों की पगडंडी पर चल ग्रामीण अपना सफर पूरा करते हैं। कोई भी बाहरी व्यक्ति इस गांव में रिश्ता नहीं जोड़ना चाहता। कहते है ग्रामीण
समसीपुर विशनपुर पंचायत के मुखिया श्रीराम राय, ग्रामीण रामसुभग राय,प्रवेश राय, हीरा यादव, वीरेन्द्र साह, मालती देवी, प्रमीला देवी, प्रमोद राय, मदन साह, हरदोई पासवान, किस्टो राम, सुरेन्द्र राम आदि बताते हैं कि वर्ष 2013 में जब इस पुल निर्माण कार्य की आधारशिला रखी गयी थी। तब ग्रामीणों में उत्साह का माहौल था। हमलोगों के ढोल-नगाड़ों और बैंड बाजा के साथ माननीय लोगों का स्वागत किया था। तब कहां गया था कि महज दो साल के भीतर पुल बनकर तैयार हो जाएगा। लेकिन कतिपय कारणों से पुल निर्माण कार्य बंद कर संवेदक फरार हो गए। पांच पाये बनाने में खर्च किए गए करोड़ों रुपये पानी में बह गए।उसके बाद भी कई बार जनप्रतिनिधियों व राजनेताओं को स्मारित किया गया। लेकिन इस ओर कोई सुध नहीं ली गयी न ही कोई सार्थक पहल की गयी।