आज भी बच्चा हो जाता हूं मां के आंचल से लिपट कर
चलती फिरती आंखों से अजां देखी है मैंने जन्नत तो नहीं देखी है मां देखी है। मां के हाथों से खाने वाले नन्हे शिशु जब बड़े होकर अपना भविष्य संवारने के लिए सुदूर चले जाते हैं तो बरबस मां और बचपन की यादें आ जाती हैं।
समस्तीपुर । 'चलती फिरती आंखों से अजां देखी है, मैंने जन्नत तो नहीं देखी है, मां देखी है।' मां के हाथों से खाने वाले नन्हे शिशु जब बड़े होकर अपना भविष्य संवारने के लिए सुदूर चले जाते हैं तो बरबस मां और बचपन की यादें आ जाती हैं। इधर, अपने नौनिहालों की याद में मां की आंखें भी अक्सर गीली हो जाती हैं। काश! मेरा बच्चा मेरे पास होता और मैं अपनी हाथों से उसे खिला पाती। कितु, यह सब सच हो रहा है लॉकडाउन की अवधि में। अपनी मां की आंचल में सर रख कर सुकून भरी सांसे लेना भला कौन नहीं चाहता। वर्षों बाद इस अंतरराष्ट्रीय मातृ दिवस पर बच्चों को उनकी मां का प्यार ठीक वैसे ही मिल रहा है जैसे शैशव व बाल्यावस्था में उन्हें मिला करता था। इस व्यस्त मशीनी युग में वैसे लोग भी जो मशीन की तरह दिन रात काम करते हैं और उन्हें चाह कर भी घर आने की फुर्सत नहीं मिलती, इन दिनों अपनी मां के प्यार भरे लम्हों को जेहन में समेट रहे हैं।
पटोरी बाजार के व्यवसायी पवन गुप्ता की पुत्री पुणे में बीटेक कर जॉब कर रही है, कितु इन दिनों लॉकडाउन के कारण अपने घर पर ही मां के साथ समय बिता रही है। कहती है कि मैट्रिक के बाद यह पहला अवसर है जब मां के साथ इतने समय तक रही है। कहती है की पुरानी यादें फिर से ताजी हो गईं। उसकी बहन प्रिया पल्लवी भी पटना से पढ़ाई बंद होने के बाद घर पर आ गई और अपनी मां ममता कुमारी के साथ किचन में हाथ बटाती है। खाली समय में वह बचपन की कहानियों में खो जाती है। बेंगलुरु में बायोटेक्नोलॉजी की पढ़ाई पूरी कर रही साक्षी शैवाल थाना रोड स्थित अपने आवास पर मां किरण कुमारी और पिताजी के साथ रह रही है। पूछे जाने पर बताती है कि मेरी मां ही मेरे लिए भगवान है, प्रेरणा की स्त्रोत है। बीएचयू का छात्र सेतु नमन का कहना है कि उसकी मां ने ही हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा दी। उनके सपनों को साकार करना ही मेरे लिए सच्ची मातृभक्ति होगी। जेएनयू में स्नातकोत्तर की पढ़ाई कर रहे आयुष अमन का कहना है कि मेरी मां मेरे लिए सब कुछ है, पिता के मार्गदर्शन और मां की ममता उसके लिए कवच है। दिल्ली में बीटेक कर जॉब कर रहे संचय लाल तथा उसकी बहन आद्या अपनी मां सरिता दास को ही सब कुछ मानती है। सरिता दास बताती हैं कि बच्चों को उनके स्वाद के अनुसार खिलाने का मजा ही कुछ और होता है। इनका अधिकांश समय किचन में ही व्यतीत होता है और बच्चे भी इसमें हाथ बंटाते हैं।