कोरोना के खिलाफ बनें यूथ चैंपियन, मिथकों को करें दूर
कोरोना संक्रमण को लेकर अफवाह और मिथक को दूर करने के लिए युवाओं की सहभागिता अहम है। इसके माध्यम से कोरोना संक्रमण को लेकर भेदभाव के खिलाफ मुहिम चलाने की जरूरत है। इसके लिए केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने भी मुहिम की शुरुआत की है।
समस्तीपुर । कोरोना संक्रमण को लेकर अफवाह और मिथक को दूर करने के लिए युवाओं की सहभागिता अहम है। इसके माध्यम से कोरोना संक्रमण को लेकर भेदभाव के खिलाफ मुहिम चलाने की जरूरत है। इसके लिए केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने भी मुहिम की शुरुआत की है। इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए कोरोना से बचाव व इसके मिथक से लोगों को अवगत कराते हुए अपनी आवाज को लोगों तक पहुंचाने की जरूरत है। कोरोना के दौर में लोगों में भेदभाव व तिरस्कार के खिलाफ जागरूकता फैलाने में युवाओं की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है। इसके लिए पीड़ित से भेदभाव के बदले लोगों को इसकी सटीक जानकारी देकर उन्हें ऐसे लोगों के प्रति सहानुभूति के लिए पहल करने की आवश्यकता है, ताकि कोरोना पीड़ित सामाजिक उपेक्षा से बच सकें। इसके लिए विचारों को रुढ़ीवादी विचारधारा में बदलाव लाने की जरूरत है। ताकि अधिक से अधिक लोगों को सजग और जागरूक किया जा सके। सोशल मीडिया बन रही कारगर माध्यम
कोरोना के खिलाफ जागरूकता मुहिम में सोशल मीडिया कारगर माध्यम है। इसके तहत युवा वर्ग खाली समय में कोरोना से जुड़े तथ्यों पर विडियो, थैंक्यू कार्ड एवं मिथकों को उजागर करने वाले पोस्ट लिखकर स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की वेबसाइट या ट्विटर हैंडल से सोशल मीडिया संदेशों और ग्राफिक्स को अपने फेसबुक, व्हाट्सएप, स्नैपचैट, इंस्टाग्राम या किसी दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर साझा कर सकते हैं। जबकि कोरोना संक्रमित से उचित दूरी बनाकर खींची गई अपनी सेल्फी को सोशल मीडिया पर साझा कर कोरोना के मिथकों से लोगों को जागरूक कर सकते है। जबकि कोरोना के दुष्प्रचार का खंडन कर लोगों की सोंच और जानकारी में बदलाव लाया जा सकता है। तिरस्कार एवं भेदभाव को समझना जरूरी
कोविड-19 के दौर में लोगों में फैले तिरस्कार व भेदभाव के खिलाफ जागरूकता फैलाने में युवाओं की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है। जारी निर्देशिका में बताया गया है कि स्वास्थ्य सेवाओं के संदर्भ में तिरस्कार का मतलब होता है आपकी बीमारी के चलते कोई व्यक्ति समुदाय आपको नकारात्मक तरीके से देखता है। महामारी के दौर में इसका मतलब यह होता है कि किसी एक बीमारी से जुड़े लोगों को चिन्हित कर उनके साथ भेदभाव या अलग व्यवहार किया जाए। उनकी सामाजिक स्थिति और छवि को नुकसान पहुंचाया जाए। इस तरह का व्यवहार उन लोगों को जो खुद बीमारी से जूझ रहे हो या उनकी देखभाल करने वाले परिवार सदस्य दोस्तों और समुदाय के लोगों को प्रभावित कर सकता है।