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Saharsa News: सहरसा लोकसभा सीट को क्यों किया गया खत्म? पढ़िए इसके पीछे की वजह, ये बने थे यहां से पहले सांसद

Saharsa News Todayसहरसा लोकसभा सीट अब इतिहास बनकर रह गया है। लेकिन बहुत लोगों को पता नहीं है कि आखिर क्यों बिहार के पटल से सहरसा लोकसभा सीट क्यों हटाई गई। इस लोकसभा सीट के बारे में दिलचस्प कहानी सामने आई है। इस सीट की धमक देश की राजधानी में थी। यहां का प्रतिनिधित्व प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ ललित नारायण मिश्र करते थे।

By Kundan Singh Edited By: Sanjeev Kumar Published: Sun, 17 Mar 2024 04:50 PM (IST)Updated: Sun, 17 Mar 2024 04:56 PM (IST)
सहरसा लोकसभा सीट को बिहार के पटल से हटाया गया (जागरण)

कुंदन, सहरसा। Saharsa News: आज भले ही सहरसा संसदीय क्षेत्र अस्तित्व में नहीं है लेकिन कभी सहरसा संसदीय क्षेत्र राष्ट्रीय राजनीति में चर्चित था। इस सीट की धमक देश की राजधानी में थी। यहां का प्रतिनिधित्व प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ ललित नारायण मिश्र करते थे। 1952 में हुए पहले चुनाव में ललित नारायण मिश्र ने संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया था। इसके बाद उन्होंने 1957 में ललित नारायण मिश्रा ( Lalit Narayan Mishra)  ने इंडियन नेशनल कांग्रेस पार्टी की टिकट चुनाव लड़ा था।

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इस चुनाव में उन्होंने जय कुमार सिंह को 69 हजार 663 मतों से पराजित किया था। आइएनडी की टिकट पर चुनाव लड़ रहे जयकुमार सिंह को 75 हजार 110 मत मिले थे। ललित नारायण मिश्रा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए और पहली , दूसरी लोकसभा और पांचवीं लोकसभा के सदस्य रहे।

वह 1964 से 1966 तक और फिर 1966 से 1972 तक राज्य सभा के सदस्य रहे। 1970 से चार फरवरी 1973 तक वह विदेश व्यापार मंत्री थे। पांच फरवरी 1973 को उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा रेलवे का कैबिनेट मंत्री बनाया गया था।

56 वर्ष तक रहा सहरसा संसदीय सीट का इतिहास

फिलहाल सहरसा जिला मधेपुरा व खगड़िया लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है। यहां से वर्ष 1952 से लेकर 2004 तक हुए चुनाव में कई दिग्गज नेता चुनाव जीतकर क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। लेकिन 2008 में हुए नये परिसीमन के बाद सहरसा लोकसभा का अस्तित्व समाप्त हो गया। जिसके बाद से सहरसा का नाम देश के सबसे बड़े सदन के पटल से हट गया।

चार महीने लगे थे पहले चुनाव में

1947 में देश की आजादी के बाद पहली बार चुनाव हुए। पूरे देश में हुए इस चुनाव में लगभग चार महीना लगा। भारत में 25 अक्टूबर 1951 और 21 फरवरी 1952 के बीच आम चुनाव हुए। पहली लोकसभा के लिए 489 सदस्यों को चुना गया। अधिकांश राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हुए। 1949 में एक चुनाव आयोग बनाया गया और मार्च 1950 में सुकुमार सेन को पहले मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त किया गया।

86 निर्वाचन क्षेत्रों में दो सदस्य चुने गए

देश में हुए पहले आम चुनाव में 314 निर्वाचन क्षेत्रों में एक सदस्य का चुनाव किया गया। जबकि 86 निर्वाचन क्षेत्रों में दो सदस्य चुने गए। इसमें एक सामान्य श्रेणी से और एक अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति से। तीन निर्वाचित प्रतिनिधियों वाला एक निर्वाचन क्षेत्र था।

बहु-सीट निर्वाचन क्षेत्रों को समाज के पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षित सीटों के रूप में बनाया गया था और 1960 के दशक में समाप्त कर दिया गया था। इस समय के संविधान में भारत के राष्ट्रपति द्वारा नामित दो एंग्लो-इंडियन सदस्यों का भी प्रावधान था।

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