भूखे कैसे गांए, गैया-बकरी चरती जाए, मुनिया बेटी पढ़ती जाए
सहरसा। गैया- बकरी चरती जाए मुनिया बेटी पढ़ती जाए जैसे नारों से हर गांव-टोले में शिक्षा क
सहरसा। गैया- बकरी चरती जाए, मुनिया बेटी पढ़ती जाए जैसे नारों से हर गांव-टोले में शिक्षा का अलख जगानेवाले जिले के दर्जनों प्ररेक लॉकडाउन में बेहद परेशान हैं। इनके पास रोटी की गंभीर समस्या है। इन्हें न कोई पूछनेवाला है और न ही कर्ज देनेवाला ही मिल रहा है। केन्द्र सरकार ने वर्ष 2009-10 में साक्षर भारत योजना प्रारंभ किया था। हर ग्राम पंचायत में ग्राम लोक शिक्षा समिति की ओर से एक महिला व एक पुरूष की नियुक्ति की गई। इन्हें 15 वर्ष से अधिक उम्र के निरक्षरों को साक्षर करने की जिम्मेवारी दी गई थी।
महज दो हजार रूपये मानदेय पर रखे गए इन प्ररेकों से समय- समय पर हाउस होल्ड सर्वे, बीएलओ और अन्य कई तरह की जिम्मेवारी देकर काम लिया गया। 31 मार्च 2018 को योजना बंद कर प्रेरकों का अनुबंध समाप्त कर दिया गया। । अनुबंद समाप्त करने के बाद इनलोगों के लगभग 40 महीने का मानदेय भी अबतक लंबित पड़ा हआ है। जिसके कारण इन प्रेरकों समक्ष भुखमरी की नौबत उत्पन्न हो गई है। अखिल भारतीय साक्षर भारत मिशनकर्मी संघ के प्रदेश सचिव इन्द्रभूषण कुमार कहते हैं कि पूरे भारत में 18 हजार प्रेरक हैं, जिनके अगर लंबित मानदेय तक का अगर तत्काल भुगतान हो जाता, तो इनलोगों को भुखमरी से निजात मिल सकती थी। कहा कि सरकार एकतरफ लोगों को रोजगार देने की बात कह रही है। दूसरी ओर लगभग एक दशक तक गांव- गांव में घूमकर शिक्षा का अलख जगाने वाले इन प्ररकों को मौत के मुंह में धकेल दिया गया है।