अंतरवर्ती खेती से बढ़ेगी मिट्टी की उर्वरा शक्ति
सहरसा : कोसी क्षेत्र में बाढ़ और सुखाड़ के कारण फसलों की क्षति के कारण किसान को हो
सहरसा : कोसी क्षेत्र में बाढ़ और सुखाड़ के कारण फसलों की क्षति के कारण किसान को हो रहे घाटे से निपटने के लिए कृषि विभाग ने अंतरवर्ती खेती की योजना बनाई है। विगत वर्षों में दलहन उत्पादक एवं उत्पादकता स्थिर रहने और प्रति व्यक्ति दलहन की उपलब्धता कम होने को विभाग ने गंभीरता से लिया है। इसके लिए संकर मक्का के साथ एक साथ मूंग, उरद और अरहर की एक साथ अंतरवर्ती खेती कराने की रणनीति बनाई गई है। इससे मक्का के साथ दलहन की उत्पादकता बढ़ेगी और किसानों के साथ क्षेत्र का आर्थिक उन्नयन होगा।
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अंतरवर्ती फसल से बढ़ेगी खेतों की उर्वरता
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अंतरवर्ती फसल से जहां मक्का के साथ मूंग, उरद और अरहर का अतिरिक्त उपज प्राप्त होगा वहीं भूमि की उर्वरता भी बढ़ेगी। इसकी खेती जून से जुलाई का समय निर्धारित है, जिससे बुआई के समय भूमि में पर्याप्त नमी रहे। इस विधि से संकर मक्का की दो पंक्तियों की दूरी 75 सेंमी रखा जाता है तथा एक पौधे से दूसरे पौधे की दूरी 25 सेंमी रखा जाता है। मक्का के दोनो पंक्तियों के बीच में दो पंक्ति मूंग, उरद, अरहर की बुआई की जाती है।
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कम अवधि वाले दलहन की होगी बुआई
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अंतरवर्ती फसल के लिए कम अवधि वाला मूंग, उरद और अरहर के प्रभेदों का चयन किया जाएगा क्योंकि शुरू में मक्का का विकास मंद गति से होता है। इस बीच की अवधि में पूसा विशाल मूंग, पूरा 105, पीएस- 16 सोना, टाईप-9 और पंत यू उरद तथा यूपीएस 120, पूसा अगेती, आइसीपीएल 151 आदि अरहर की खेती की जाएगी। इन सभी दलहन की उपज 60 से 75 दिन के अंदर हो सकती है। इस विधि से 08 से 18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर दलहन और 45-70 क्विंटल प्रति हेक्टेयर मक्का की उपज हो सकती है।
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कोट
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अंतरवर्ती खेती कोसी क्षेत्र के किसानों के लिए काफी लाभकारी साबित हो सकता है। इस इलाके में संकर मक्का के साथ मूंग, उरद और अरहर की खेती की बड़ी संभावना है। आने वाले दिनों में इस क्षेत्र का किसान इस विधि से खेती कर काफी लाभांवित होंगे।
दिनेश ¨सह, जिला कृषि पदाधिकारी, सहरसा।