आत्मचेतना की अभिव्यक्ति है ¨जदगी
सहरसा। रविवार को गायत्री शक्तिपीठ में व्यक्तित्व परिष्कार सत्र संपन्न हुआ। संबोधित करते हुए ट
सहरसा। रविवार को गायत्री शक्तिपीठ में व्यक्तित्व परिष्कार सत्र संपन्न हुआ। संबोधित करते हुए ट्रस्टी डा. अरूण कुमार जायसवाल ने कहा कि जब आप मन से प्रार्थना करते हैं तो ईष्र्या, द्वेष, अहंकार सभी चले जाते हैं। अगर भगवान का दिल से प्रार्थना करते हैं तो अंदर के सभी पाप निकलते जाते हैं। कहा कि जीवन में शरीर और आत्मा अलग-अलग है। आत्मा रथ और मन सारथी होता है। प्राण के डोर से शरीर बंधा है। मन जब विद्रोह करता है, तब जीवन का पतन हो जाता है। जीवन आत्मचेतना की अभिव्यक्ति है। कहा कि मन का सबसे विकसित रूप मनुष्य है। मनुष्य अपने आत्मा को कभी आत्मा मानते और परमात्मा की खोज करते हैं। आत्मा शब्द में दिखता नहीं है। उसी प्रकार प्रेम शब्द में है, वह दिखता नहीं। मन हमेशा भटकाता रहता है। मन को स्थिर करने में कई जन्म लग जाते हैं। उन्होंने कहा कि मन तीन तरह का होता है। चेतन मन, अर्थ चेतन मन और अवचेतन मन। छात्र-छात्राओं से कहा कि पढ़ाई में तीनों की उपस्थित आवश्यक है, अगर तीनों मन है तो पढ़ाई में रूचि आएगी।
इस अवसर पर अभिनव जायसवाल ने छात्र-छात्राओं को इतिहास के ज्ञान की चर्चा करते हुए कहा कि द्वितीय विश्वयुद्ध में सबसे बड़ी हार जर्मन की हुई। जिस कारण उसने बहुत दुख झेला। 1956 में नौ साल बाद पुन: बसा। पुन: उभरा यह जोश, हौसला, हिम्मत,युवाओं की थी, जो जर्मन का पुननिर्माण किया। इस अवसर पर मुख्य ट्रस्टी प्रकाश लाल दास, केदारनाथ टेकरीवाल, ललन कुमार ¨सह, हरेकृष्ण साह, पप्पू गनेरीवाल, दिनेश दिनकर, नवल ¨सह, संजय सराही, नूनूमणि ¨सह, अमोल जी, शांति मंडल की संजू देवी, कंचन देवी,मनीष, मधु, दीपा, ज्योति, चंदन, मदन, ब्रजभूषण आदि मौजूद रहे।