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यहां चरखा से बनता था खादी का सूत, अब जंग खा रही है मशीन

सहरसा। एक समय था जब यहां लोग चरखा से खादी का सूत बनाते थे। उससे वस्त्र तैयार होता था लेकिन

By JagranEdited By: Published: Sun, 24 Jan 2021 05:41 PM (IST)Updated: Sun, 24 Jan 2021 05:41 PM (IST)
यहां चरखा से बनता था खादी का सूत, अब जंग खा रही है मशीन

सहरसा। एक समय था, जब यहां लोग चरखा से खादी का सूत बनाते थे। उससे वस्त्र तैयार होता था, लेकिन पिछले 14 वर्षों से खादी भंडार बंद है। यहां की मशीनों को जंक खाने लगी है।

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1968 में पंचगछिया का खादी भंडार शुरू हुआ था। इससे जुड़े दो सौ से अधिक लोगों के परिवारों का जीविकोपार्जन सूत काटकर चलता था। यहां कार्यरत लोगों की मेहनत के कारण खादी के वस्त्रों की बिक्री कई जिलों में होती थी, मगर विभागीय शिथिलता के कारण खादी भंडार बंद हो चुका है। एक जमाने में पंचगछिया के अलावा पटोरी, बिहरा एवं बरहशेर के सैकड़ों महिला-पुरुष अपने सभी काम पूरे कर सुबह और शाम यहां पार्ट टाइम रोजगार कर उपार्जन कर लेो थे, लेकिन वर्ष 2006 में यह बंद हो गया। शुरुआती दौर में मधुबनी से आये एक परिजनों द्वारा वर्तमान में भी एक-दो चरखा चलाकर संस्थान को जीवित रखने का अथक प्रयास किया जा रहा है।

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कई जिलों मे मशहूर था मशलीन चरखा से तैयार वस्त्र

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पंचगछिया गांव में संचालित खादी भंडार मे 1975 में विभाग द्वारा मशलीन चरखा की आपूर्ति करने के बाद यहां धोती-कुर्ता, पायजामा, सूती खादी चादर, गमछा, बेडशीट, रजाई कपड़ा समेत अन्य बड़े पैमाने पर तैयार होने लगा। यहां के कामगारों के काबिलियत एवं तकनीकी से अच्छे किस्म के तैयार वस्त्र कि मांग सहरसा समेत कई जिलों में होने लगी थी।

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कोट

वर्ष 2006 से पंचगछिया खादी भंडार बंद है। वर्ष 1968 में मेरे पिताजी स्वर्गीय अहमद अंसारी को मधुबनी से पंचगछिया लाकर उनके संचालन में खादी भंडार का संचालन शुरु हुआ था। तभी मात्र मोटा चादर बनता था। 1975 मे मशलीन चरखा आने के बाद कई वस्त्र बनने लगे थे।

तैयब अंसारी,

मुख्य संचालक,

खादी भंडार पंचगछिया।


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