अब स्कूलों में नहीं लगती खेल की घंटी
सहरसा। भले ही वर्तमान में शिक्षा की स्थिति में सुधार हुई हो लेकिन अब भी विद्यालयों में बच्चों के
सहरसा। भले ही वर्तमान में शिक्षा की स्थिति में सुधार हुई हो लेकिन अब भी विद्यालयों में बच्चों के शारीरिक विकास का ध्यान नहीं रखा जा रहा है। कुछ वर्ष पूर्व तक स्कूलों में खेल की घंटी लगती थी परंतु अब कहीं भी यह घंटी सुनाई नहीं देता है। यही नहीं पहले वार्षिक परीक्षा के अंतिम दिन बागवानी की परीक्षा स्कूलों में ली जाती थी। बागवानी पर भी बच्चों को नम्बर दिया जाता था। बच्चे परीक्षा के बाद बागवानी की परीक्षा में अच्छे नम्बर लाने के लिए फूल पत्ती की जुगाड़ में लगकर कड़ी मेहनत करते थे। इससे बच्चों का पर्यावरण के प्रति रूझान बढ़ता था। इसमें बच्चों के परिजन भी काफी सहयोग करते थे। परीक्षा में अधिक नम्बर लाने वाले छात्र के परिजन सीना तानकर चौपाल पर बैठते थे। वहीं अधिक नम्बर लाने वाले छात्र का भी मनोबल उंचा रहता था। लेकिन अब तो बच्चे स्कूल में टिकते ही नहीं है। क्या खेल और क्या बागवानी। हालांकि स्कूलों में सरकार की ओर से बच्चों के खेल पर काफी राशि खर्च की जा रही है। स्कूलों में खेल सामग्री भी खरीदा जाता है, लेकिन इसका उपयोग नहीं हो पाता। स्कूलों में सरकार शारीरिक शिक्षक भी बहाल किये गये हैं। बावजूद इसके स्कूलों में खेल पर ध्यान नहीं दिये जाने से बच्चों की प्रतिभा दबकर रह जाती है।