Move to Jagran APP

उद्योगविहीन सहरसा में मक्का व मखाना प्रसंस्करण उद्योग की है जरूरत

सहरसा। लॉकडाउन तीन रविवार को समाप्त हो गया। आज से लॉकडाउन चार का क्या स्वरूप होगा यह

By JagranEdited By: Published: Sun, 17 May 2020 06:51 PM (IST)Updated: Sun, 17 May 2020 06:51 PM (IST)
उद्योगविहीन सहरसा में मक्का व मखाना प्रसंस्करण उद्योग की है जरूरत
उद्योगविहीन सहरसा में मक्का व मखाना प्रसंस्करण उद्योग की है जरूरत

सहरसा। लॉकडाउन तीन रविवार को समाप्त हो गया। आज से लॉकडाउन चार का क्या स्वरूप होगा, यह अभी तय नहीं हुआ है। दुकानें खुलेगी कि नहीं कहना मुश्किल है। वैसे ही सहरसा जिले में 14 कोरोना वायरस के पॉजिटिव केस मिलने से कई इलाके सील हैं। जिस कारण लॉकडाउन तीन के समाप्त होने के बाद भी सामान्य स्थित सामान्य होने की गुंजाइश काफी कम है। लॉकडाउन के दौरान हजारों मजदूर अन्य प्रांतों में काम छोडकर अपने घर लौट गए है। मजदूर अब वापस जाना नहीं चाहते है। वे लोग स्थानीय स्तर पर ही काम की तलाश कर अपनी जीविका यहीं रहकर चलाना चाहते है। सहरसा जिले में एक भी उद्योग धंधा नहीं है। बैजनाथपुर पेपर मिल तो शहर से सटे बैजनाथपुर में बनी। विदेश से मशीनें भी मंगवायी गयी। लेकिन इस कागज उद्योग से धुंआ नहीं निकल पाया। सरकारी उपेक्षा के कारण खुलने से पहले ही निधि के अभाव में बंद हो गया। वर्ष 1975 में 48 एकड़ भूमि अधिग्रहण कर बिहार सरकार ने इसे चलाने के लिए निजी और सरकारी सहयोग से बिहार पेपर मिल्स लिमिटेड कंपनी का गठन किया था। वर्ष 1978 मं निजी उद्यमियों से करार खत्म होने के कारण काम रूक गया। इसके बाद तत्कालीन सरकार ने इसे बिहार राज्य औद्योगिक विकास निगम के स्वामित्व में ले आयी। इसके बाद भी काम शुरू नहीं हो पाया। अब भी यहीं स्थिति है।

loksabha election banner

कोसी क्षेत्र में उद्योग की है पूरी संभावना

कोसी इलाके सहरसा, सुपौल, मधेपुरा एवं सहरसा की सीमा से सटे खगडिया जिले में मक्का की खेती प्रचुर होती है। सहरसा जिले में सबसे अधिक मक्का की फसल होती है। इसीलिए इस जिले में मक्का पर आधारित उद्योग की यहां जरूरत है। मक्का प्रसंस्करण पर आाधारित उद्योग खुलने से फैक्ट्री को कच्चा माल पर किसी दूसरों पर नहीं निर्भर होना पडेगा। क्योंकि कोसी इलाके में मक्का की खेती इतनी अधिक होती है कि किसान एक बार के फसल से अपनी बेटी के हाथ पीले कर लेता है। वहीं सहरसा का मक्का बंगलादेश सहित दक्षिण भारत जाता है। मक्का की रैक पूरे भारत से सहरसा से ही सबसे अधिक जाती है। इसीलिए मक्का के कारोबार में दूसरे राज्यों से भी व्यापारी यहां आते है। आज बाजार में मिलनेवाला बंद पैकेट कार्नफ्लावर मक्का से ही बनता है और उसे दस गुणा अधिक दामों में यहां के ही लोग खरीदते है। इसके अलावा मखाना का भी उत्पादन होता है और मखाना उद्योग लगने से इस इलाके का विकास संभव होगा। कुटीर उद्योग के रूप में है आटा मिल

सहरसा शहरी क्षेत्र या ग्रामीण क्षेत्र में कुटीर उद्योग के रूप में आटा मिल खुले हुए है। वैसे भी गिनती के ही एक ही आटा मिल है जो उद्योग विभाग से निबंधित है। शहर के पटुआहा स्थित पूजा भोग आटा स्थापित उद्योग में से एक है। पूजा भोग आटा के संचालक उद्योगपति अर्जुन चौधरी पूछने पर कहते है कि सहरसा ही नहीं कोसी क्षेत्र में रंगदारी व्यवस्था के कारण ही कोई यहां उद्योगपति आना नहीं चाहते है और कोई उद्योग लगाना नहीं चाहते हैं। सरकार व बैंकों का सपोर्ट मिलता है। लेकिन स्थानीय स्तर पर रंगदारी व्यवस्था के कारण कोई भी उद्योगपति कोसी क्षेत्र में अपने आप को असुरक्षित महसूस करते है और यही कारण है कि यहां एक भी उद्योग धंधा नहीं है। कोट के लिए

सहरसा जिले में एक भी उद्योग नहीं है। छोटे-छोटे कुटीर उद्योग धंधा के रूप में चूडा़ मिल, आटा मिल संचालित है। लेकिन, उद्योग के लिए अबतक कोई प्रस्ताव निजी स्तर या सरकारी स्तर पर नहीं आया है। जबकि सरकार की उद्योग धंधा से जुड़ी कई योजनाएं है।

प्रकाश चौधरी, महाप्रबंधक, उद्योग विभाग


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.