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Supreme Court की अधिवक्‍ता सुरभि की शादी में शामिल होने 15 दिनों का पेरोल, पढ़ें... आनंद मोहन की Profile Story

आनंद मोहन की Profile Story सत्ता के उच्च शिखर तक पहुंच रखनेवाले इस नेता की बाहुबली के रूप में भी रही पहचान। विवादों से भरा रहा है आनंद मोहन का राजनीतिक सफर। सत्ता विरोधी स्वभाव के कारण साजिशों के भी होते रहे शिकार।

By Jagran NewsEdited By: Dilip Kumar shuklaPublished: Wed, 02 Nov 2022 02:24 PM (IST)Updated: Wed, 02 Nov 2022 02:24 PM (IST)
Supreme Court की अधिवक्‍ता सुरभि की शादी में शामिल होने 15 दिनों का पेरोल, पढ़ें... आनंद मोहन की Profile Story
आनंद मोहन की Profile Story : 15 दिनों के पेरोल पर सहरसा जेल से बाहर निकलेंगे आनंद मोहन।

संवाद सूत्र, सहरसा। आनंद मोहन की Profile Story : जेपी के समग्र क्रांति के उभरकर सत्ता के उच्च शिखर तक अपनी पहुंच रखनेवाले पूर्व सांसद आनंद मोहन वर्तमान में गोपालगंज के तत्कालीन डीएम जी कृष्णैया हत्याकांड में आजीवन कारावास के तहत पिछले 14 वर्ष दस महीने से सहरसा जेल में बंद हैं। सत्रवाद 115/96 में सजा काट रहे आनंद मोहन अपनी पुत्री सुरभि आनंद के शुभलग्न और 97 वर्षीय मां गीता देवी के बिगड़े स्वास्थ्य के कारण 15 दिनों के पैरोल पर बाहर आ रहे हैं।

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17 वर्ष की आयु में शुरू हुआ राजनीतिक जीवन

आनंद मोहन ने महज 17 वर्ष की आयु में अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी। 1974 में जयप्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति आंदोलन में जुड़ने के बाद उन्होंने अपनी पढ़ाई छोड़ दी थी और बढ़- चढ़ कर उस आंदोलन में हिस्सा लिया था। जिस कारण उस वक़्त लगे इमरजेंसी में सबसे अधिक दिन दो वर्ष जेल में रहना पड़ा था। वे देशभर में एक निडर और बाहुबली नेता के रूप में भी जाने जाते हैं। उनके खिलाफ कई आपराधिक मुकदमे सूबे के विभिन्न न्यायालयों में चल रहे हैं। इसमें हत्या के सभी मामलों में वो बरी हो चुके हैं। जबकि डीएम जीकृष्णैया हत्याकांड में वो सजायाफ्ता हैं।

नेल्सन मंडेला व भगत सिंह हैं आदर्श

भगत सिंह और नेल्सन मंडेला को अपना आदर्श मानने वाले आनंद मोहन हमेशा सत्ता विरोधी रहे हैं, जिसके कारण उन्हें राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के कारण कई बार जेल भी जाना पड़ा है। पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी की सरकार में मैथिली भाषा को अष्टम अनुसूची में शामिल कराने में सांसद के रूप में उनकी भी बड़ी भूमिका मानी जाती है। स्थानीय स्तर पर महान स्वतंत्रता सेनानी पूर्व विधायक परमेश्वर कुमर के शिष्यवत रहे आनंद मोहन पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के काफी करीबी नेता रहे। प्रधानमंत्री रहते भी चंद्रशेखर उनके घर पंचगछिया आए। राजनीतिक विरोध के बावजूद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार समेत राजनीतिक दिग्गज उनके पारिवारिक समारोह में शिरकत करते रहे हैं। जेल में भी इनसे विभिन्न दलों के नेताओं के मिलने का सिलसिला चलता रहा है।

1990 में पहली बार बने थे विधायक

1990 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के कद्दावर नेता लहटन चौधरी को पराजित कर जनता दल के उम्मीदवार के रूप में जीत हासिल की। आनंद मोहन सिंह 66 वर्ष के हैं। उनका जन्म 28 जनवरी 1954 ई को सहरसा ज़िले के एक छोटे से गांव पंचगछिया में हुआ था। उनके दादा राम बहादुर सिंह एक प्रखर स्वतंत्रता सेनानी थे, जिनसे मिलने के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी उनके घर आए थे।

1993 में उन्होंने जब जनता दल ने सरकारी नौकरी में आरक्षण देने के प्रस्ताव पर सहमति प्रदान की तो सभी वर्ग के गरीबों को आरक्षण को लाभ देने की मांग पर उन्होंने जनता दल से नाता समाप्त कर बिहार पीपुल्स पार्टी का गठन किया। वे दो बार शिवहर लोकसभा क्षेत्र से सांसद बने हैं। महिला बिल समेत कई मुद्दे पर संघर्ष के कारण वे संसद ने भी मार्शल आऊट कराए गए। उनकी पत्नी लवली आनंद ने लालू प्रसाद यादव समर्थित पूर्व मुख्यमंत्री सत्येंद्र नारायण सिंहा की पत्नी किशोरी सिंह को पराजित कर वैशाली से सांसद बनी। बाद में वह नवीनगर से विधायक बनी। बाढ़ से चुनाव जीतने के बाद भी तत्कालीन सत्ता से मतभेद के कारण उन्होंने उपचुनाव में टिकट को त्यागकर सीट छोड़ दिया। गत चुनाव में सहरसा विधानसभा से लगभग 85 हजार मत प्राप्त कर भी वह चुनाव हार गई।

तीन बच्चों के हैं पिता

आनंद मोहन के तीन बच्चे हैं। ज्येष्ठ पुत्र चेतन आनंद वर्तमान में शिवहर के विधायक हैं। पुत्री सुरभि आनंद उच्चतम न्यायालय में अधिवक्ता और कनिष्ठ पुत्र अंशुमन आनंद अपनी पढ़ाई कर रहे हैं।

साहित्य से है गहरा नाता

एक राजनेता के साथ-साथ आनंद मोहन एक कवि लेखक भी है। उनकी रचनाएं कैद में आज़ाद कलम, काल कोठरी से, तेरी मेरी कहानी के अलावा आत्मकथा बचपन से पचपन तक काफी चर्चित है। जेल यात्रा के दौरान भी वे कारा की कुव्यवस्था को लेकर अनशन व अन्य आंदोलनों करते रहे हैं। जेल से न्यायालयों की पेशी के क्रम में भी वे कई बार विवादों में रहे। लंबे समय तक जेल में रहने के बावजूद उनके समर्थकों की संख्या में कमी नहीं आई। पैरोल पर उनके बाहर आने की खबर से समर्थकों में भारी उत्साह है।


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