मखाना की खेती से विमुख हो रहे किसान, मशीनीकरण से बेरोजगारी बढ़ी
फोटो 10 एसएआर 16 संसू नवहट्टा (सहरसा) मिथिला के बारे में कहा भी गया है कि पग-पग पोख
फोटो : 10 एसएआर 16
संसू, नवहट्टा (सहरसा): मिथिला के बारे में कहा भी गया है कि पग-पग पोखर माछ, मखान .। इस बार बाढ़ ने मखान उत्पादन पर प्रतिकूल असर डाला है। तालाबों व छोटे-छोटे डबरों में किए जाने वाले मखाना को बाढ़ ने बर्बाद कर दिया। भारी जल प्रवाह ने उसे बहा ले गया। जिससे मखाना उत्पादक किसानों को भारी बर्बादी का सामना करना पड़ा। जलाशय के बढ़े जलस्तर से मखाना निकालने में बाधा बनी हुई है। मखाना की खेती से जुड़े मजदूरों का काम भी खेत से मखाना निकालने तक सिमट गया है। फल को तैयार करने के लिए मशीन का उपयोग किया जाने लगा है।
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देश का 50 फीसदी उत्पादन मिथिला इलाके में
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देश में मखाना के कुल उत्पादन का पचास प्रतिशत उत्पादन मिथिला क्षेत्र में होता है। भारत में मखाना उत्पादन का 75 प्रतिशत भाग बिहार व उसमें से लगभग 50 प्रतिशत भाग मिथिला उत्पादन का केंद्र है। लेकिन उचित संरक्षण के अभाव में इसका विकास नहीं हो रहा है। मिथिला का मधुबनी, दरभंगा, सुपौल, सहरसा,कटिहार, पूर्णिया जिला मुख्य है। सहरसा में तीस प्रतिशत उत्पादन होता है।
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पारंपरिक तरीके से खेती, मशीन से तैयार होता है फल
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मखाना बोने से लेकर इसे पोखर जलाशय आदि से निकालने व फोड़ने तक परंपरागत विधि ही अपनाई जाती रही है। जिस कारण इसका भरपूर उत्पादन संभव नहीं हो पा रहा है। प्रसंस्करण स्थानीय विधि से प्रसंस्करण करने से अभी भी बेहतर लावा नहीं प्राप्त हो रहा है। जिससे वर्तमान में लावा से 30 से 35 प्रतिशत ही कामर्शियल लावा प्राप्त होता था। जिससे यह पेशा घाटे का सौदा साबित होने लगा। सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ हार्वेस्ट इंजीनियरिग द्वारा तैयार मखाना सीड रोस्टर मशीन का इस्तेमाल से वैसे तो 1989 से शुरू हो गया। कोसी इलाके में धीरे धीरे मखाना तैयार करने का कारोबार बंद हो गया। बाहर से आए व्यवसायी और साहूकार मखाना का गुड़िया खरीद कर ले जाते हैं तथा बंगाल महाराष्ट्र आदि प्रांतों में मशीन के जरिए मखाना के खाने वाला फल तैयार किया जाता है। मशीन से प्रोसेसिग खर्च में कमी आई है तथा लाभ बढ़ा है। इस कारोबार से जुड़े मजदूर का धंधा बंद हो गया है मशीनीकरण से बेरोजगारी बढ़ी है।
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शुरुआती दौर में होती थी काफी आमदनी:
मखाना खेती से जुड़े किसानों का कहना है कि वे लोग वर्षों से मखाना की खेती करते रहे हैं। शुरुआती दौर में इससे काफी आमदनी होती थी, लेकिन हाल के वर्षों में लागत के अनुरूप आमदनी घट गई है। प्रति एकड़ मखाना की खेती में 35 से 36 हजार रुपये लग जाते हैं। इसके अनुरूप ना ही बाजार मूल्य मिल पाता है और न ही कोई सरकारी सहायता। किसान बैजनाथ साह, मोहम्मद रुस्तम, सहाबुल, लाल मुखिया, सफीउल्लाह कारी आदि कहते हैं कि मखाना की खेती अब घाटे का सौदा हो गया है। किसान इससे विमुख होने लगे हैं। सरकारी प्रोत्साहन के अभाव में किसान इससे नाता तोड़ने लगे हैं।