Move to Jagran APP

गर्मी शुरू होते ही पशुओं के साथ मैदानी क्षेत्र में पलायन को विवश हैं वनवासी

यह सतत प्रक्रिया है। वर्षों से गर्मी शुरू होते ही कैमूर पहाड़ी पर बसे गांवों में पेयजल का संकट उत्पन्न हो जाता है और गांव के लोग अपने पशुओं को लेकर मैदानी इलाके में चले आते हैं। ऐसी विषम परिस्थिति में कैमूर पहाड़ी पर बसे गांव के पशुपालक सैकड़ों की संख्या में अपने पशुओं को लेकर मैदानी इलाके के गांव व

By JagranEdited By: Published: Tue, 05 May 2020 03:26 PM (IST)Updated: Tue, 05 May 2020 03:26 PM (IST)
गर्मी शुरू होते ही पशुओं के साथ मैदानी क्षेत्र में पलायन को विवश हैं वनवासी
गर्मी शुरू होते ही पशुओं के साथ मैदानी क्षेत्र में पलायन को विवश हैं वनवासी

रोहतास। गर्मी शुरू होते ही कैमूर पहाड़ी पर बसे गांवों में पेयजल का संकट  उत्पन्न हो जाता है और गांव के लोग अपने पशुओं को लेकर मैदानी इलाके में जा रहे हैं। ऐसी विषम परिस्थिति में कैमूर पहाड़ी पर बसे गांव के पशुपालक सैकड़ों की संख्या में अपने पशुओं को लेकर मैदानी इलाके के गांव व सोन नदी के मध्य स्थित डीला पर पहुंच रहे है। पूरी गर्मी किसी के खेत खलिहान में ही अपना डेरा जमा देते हैं और दिनभर पशुओं को चराते हैं। रात में खेतों में ही सो जाते हैं। दूघ बेचकर चलाते हैं आजिविका:

loksabha election banner

मैदानी इलाकों में आने पर पशु के भोजन की व्यवस्था तो हो जाती है, लेकिन अपने पेट के लिए पापड़ बेलने पड़ते हैं। दूध कम दामों में ही बेचकर अपना भरण पोषण वे करते हैं। यह समस्या कैमूर पहाड़ी पर बसे रेहल चूंदा, पिपरडीह, ब्रह्मदेवता, बभन तालाब, नागा टोली, बूधुआ, धंसा समेत 11 राजस्व गांव के 83 टोला में बसे सभी लोगों के साथ है। पिपरडीह पंचायत के कुब्बा निवासी सरपंच विष्णुदेव यादव कहते हैं कि इन पहाड़ी गांव में जीवन यापन का एकमात्र साधन पशुपालन ही है। जंगल में लगे महुआ, चिरौंजी, आंवला, हर्रे, बहेरा समेत कई वन औषधि यहां के लोगों के जीविकोपार्जन का साधन पहले माना जाता था, लेकिन वन विभाग द्वारा इसे प्रतिबंधित किए जाने के कारण पशुपालन ही एकमात्र जीविकोपार्जन का साधन बच गया है। वहीं बुधुआ निवासी राम लाल सिंह यादव, श्रीनिवास यादव, कहते हैं कि पेयजल संकट होने पर गर्मी के मौसम में हम सभी लोग अपने पशुओं के साथ सोन तटीय इलाके डेहरी, तिलौथू ,रोहतास व नौहटा प्रखंड के विभिन्न गांवों में चले जाते हैं। कुछ लोग अपने रिश्तेदारों के यहां शरण लेते हैं, तो कुछ लोग ऐसे ही खेत खलिहान में किसी प्रकार गुजर-बसर कर अपना समय बिता लेते हैं। बरसात आते ही अपने गांव में चले आते हैं। इस दौरान पशुओं का दूध बेच किसी तरह गुजारा हो पाता है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.