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अव्यवस्था में फंसी प्रवासियों की सफर

जान है तो जहान है। वैश्विक महामारी कोरोना के इस दौर में इन दोनों को बचाने के लिए हर कोई जद्दोजद कर रहा है। लॉकडाउन के कारण रोजी-रोटी की जुगाड़ में घर छोड़ परदेस गए लोगों की वापसी जान बचाने की उद्देश्य से हो रही है। लेकिन यह वापसी प्रवासियों को खुद कष्टदायी साबित हो रहा है। राज्य सरकार के अनुरोध पर चल रही श्रमिक स्पेशल ट्रेन की सफर को सुखदायी बनाने में अधिकारी व कर्मी कोई कारगर कदम नहीं उठा पा रहे हैं। 24 घंटे का सफर वे भूखे-प्यासे 60 से 70 घंटे

By JagranEdited By: Published: Tue, 26 May 2020 06:41 PM (IST)Updated: Tue, 26 May 2020 06:41 PM (IST)
अव्यवस्था में फंसी प्रवासियों की सफर
अव्यवस्था में फंसी प्रवासियों की सफर

जान है तो जहान है। वैश्विक महामारी कोरोना के इस दौर में इन दोनों को बचाने के लिए हर कोई जद्दोजद कर रहा है। लॉकडाउन के कारण रोजी-रोटी की जुगाड़ में घर छोड़ परदेस गए लोगों की वापसी जान बचाने की उद्देश्य से हो रही है। लेकिन यह वापसी प्रवासियों को खुद कष्टदायी साबित हो रहा है। राज्य सरकार के अनुरोध पर चल रही श्रमिक स्पेशल ट्रेन की सफर को सुखदायी बनाने में अधिकारी व कर्मी कोई कारगर कदम नहीं उठा पा रहे हैं। 24 घंटे का सफर वे भूखे-प्यासे 60 से 70 घंटे में तय करने को विवश हैं। रेलवे की तरफ से की जाने वाली व्यवस्था भी दुरुस्त नहीं है। सासाराम जैसे रेलवे स्टेशन पर विभिन्न राज्यों से रोजाना ढाई से साढ़े तीन हजार तक प्रवासी स्पेशल ट्रेन से उतर रहे हैं।

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कभी रूट डायवर्ट तो कभी प्लेटफार्म खाली न रहने का झमेला प्रवासियों की जान को सांसत में डाल कर रख दिया है। इसे ले अभी तक न तो रेलवे ही ठोस रूट चार्ट तैयार कर सका है न सरकार ही प्लान बना सकी है कि कौन सी ट्रेन किस रूट से चलानी है ताकि लौटने वाले प्रवासियों का सफर सुखद हो। शायद यही वजह है कि स्पेशल ट्रेन सरल मार्ग से न चलकर दूसरे रूट से गंतव्य तक पहुंच रही है। गत दिनों गजियाबाद से सासाराम के लिए चली श्रमिक स्पेशल ट्रेन सीधा रूट की बजाए वाया गोरखपुर होते हुए पहुंची। लिहाला ट्रेन में सवार प्रवासियों को 24 घंटे के बजाए 38 घंटा में अपनी सफर पूरी करनी पड़ी। उसी ट्रेन में सवार भूख-प्यास से तड़पती औरंगाबाद के पोखरहां गांव की रहने वाली एक गर्भवती महिला को आरपीएफ ने पानी-फल व दवा की व्यवस्था कर तत्काल राहत पहुंचाने का कार्य किया।

रेलवे अधिकारियों की मानें तो श्रमिक स्पेशल ट्रेन चलाने उसकी कोई विशेष भूमिका नहीं है। राज्य सरकार को तय करना होता है कि कौन सी ट्रेन किस रूट से गंतव्य तक जाएगी। यह सब कुछ सफर करने वाले कामगारों के संख्या पर निर्भर कर रहा है। अगर कोई दिल्ली से पटना के स्पेशल ट्रेन चली और उस पर सासाराम व गया जिले के कामगार सवार हैं तो राज्य सरकार तय कर रही है कि वह ट्रेन डीडीयू से वाया आरा-बक्सर के रास्ते पटना जाएगी या फिर गया मार्ग से। स्टेशन प्रबंधक उमेश कुमार बताते हैं कि जिस स्टेशन पर श्रमिक स्पेशल का ठहराव होना है वहां एक बार में एक ही ट्रेन का ठहराव किया जाएगा। क्योंकि कोरोना से बचाव के लिए सावधानी, सतर्कता व सुरक्षा बहुत जरूरी है। एक बार में एक से अधिक स्पेशल ट्रेन का ठहराव सुनिश्चित करने से अव्यवस्था फैल सकती है। श्रमिक स्पेशल ट्रेन चलाने में राज्य सरकार की महती भूमिका है, उसी को तय करना है कि कौन ट्रेन किस मार्ग से चलेगी और किस-किस स्टेशन पर रूकेगी।


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