पंगु सिस्टम के सहारे सासाराम नगर की सफाई व्यवस्था
शहरों की स्वच्छता रैंकिग जारी होने के बाद अब यहां पर भी लोगों के बीच यह चर्चा होने लगी है कि आखिर सासाराम इंदौर जैसा क्लीन क्यों नहीं बन सकता। साल दर साल बदतर हो रही सफाई व नगरीय व्यवस्था के बीच आम हो या खास सबकी जुबान पर स्वच्छता की रैंकिग कैसे सुधरे इसकी बात होने लगी है।
जागरण संवाददाता, सासाराम : रोहतास। शहरों की स्वच्छता रैंकिग जारी होने के बाद अब यहां पर भी लोगों के बीच यह चर्चा होने लगी है कि आखिर सासाराम इंदौर जैसा क्लीन क्यों नहीं बन सकता। साल दर साल बदतर हो रही सफाई व नगरीय व्यवस्था के बीच आम हो या खास सबकी जुबान पर स्वच्छता की रैंकिग कैसे सुधरे इसकी बात होने लगी है। एक लाख से 10 लाख आबादी वाले राज्य के सबसे गंदे शहर में शामिल सासाराम नगर निगम के पास फिलहाल पर्याप्त संख्या में न तो सफाई कर्मी हैं न ही कूड़ा उठाव के लिए मशीन व वाहन। मोहल्लों व ऐतिहासिक इमारतों के आसपास डंप किए जा रहे कूड़ों ने शहर की रैंकिग को निचले पायदान पर ला खड़ा किया है। दैनिक मजदूरी पर लगाए जा रहे सफाई कर्मियों ने भी लंबे समय तक हड़ताल कर यह बताने का प्रयास किया है कि शहर के लोगों को बदहाल सिस्टम में सफाई के बीच रहने का फिलहाल मौका मिलने वाला नहीं है। काफी जद्दोजहद के बाद नगर निगम को चेनारी प्रखंड के खुर्माबाद गांव के पास स्थायी कूड़ा डंपिग स्टेशन बनाने के लिए अब भूमि मिली है, अभी वहां कूडा फेंकने के कार्य के लिए और इंतजार करना होगा। हर घर शौचालय, फिर भी खुले में शौच की लत बरकरार :
जिला तीन वर्ष पूर्व ही ओडीएफ घोषित हो चुका है। शहर से गांव तक को खुले में शौच से मुक्त होने का एलान जिला प्रशासन के रिपोर्ट पर सरकार चुकी है, लेकिन हकीकत कुछ और बयां करता है। हर घर शौचालय होने के बावजूद एक बड़ी आबादी में आज भी खुले में सड़क व रेलवे लाइन के किनारे शौच करने की लत बरकरार है। शहर का दर्जा बढ़ने के बाद भी उनकी सोच आज तक नहीं बदली है। मिशन ओडीएफ के तहत प्रशासन का मार्निंग व इवनिग फलो अभियान भी कूंद पड़ गई है। यही वजह है कि कुछ लोगों की वजह से आज सासाराम शहर स्वच्छता की रैकिग में सबसे नीचले पायदान पर है। कई घरों में पानी रखने के उपयोग आ रहा डस्टबीन :
क्लीन शहर, ग्रीन शहर अभियान को अमली जामा पहनाने के लिए लगभग दो वर्ष पूर्व शहर में हर घर सूखा व गीला कचरा रखने के लिए कुछ घरों में गीला व सूखा कचड़ा रखने के लिए प्लास्टिक के दो डस्टबीन वितरित किया गया था। हालांकि अधिकांश घरों में डस्टबीन की आस अबतक लगी है। इसके अलावा मोहल्लों के चौक-चौराहों पर रखे गए कूड़ेदान समय पर सफाई कर्मियों के नहीं पहुंचने के कारण वजूद मिट गया है। लिहाजा कूड़ेदान की बजाए सड़क व गलियों में कूड़ा फेंकने की आदत जस की तस बरकरार है। कई घरों में डस्टबीन अब पानी रखने का काम आ रहा है। फोटो सेशन तक सिमटी जिम्मेदारी :
पिछले वर्ष जारी स्वच्छता रैंकिग के बाद शहर को क्लीन व ग्रीन बनाने को ले शहर से जुड़े कुछ स्वयंसेवी संगठन शुरूआती दौर में तत्परता दिखाई थी, परंतु यह भी कुछ दिनों तक ही रहा। किसी के हाथ में झाड़ू तो किसी के हाथ में बाल्टी व कुदाल जरूर दिखे, लेकिन वह भी फोटो सेशन तक ही सिमटा रहा। स्वयंसेवी संगठनों द्वारा अभियान को अनवरत जारी रखा गया होता तो निश्चित ही यह शहर सूची में बेहतर स्थान बनाने में कामयाब रहता।