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रोहतास के बौलिया लाइम स्टोन उद्योग पर भी पड़ी बंदी की मार

जिले में एक एक कर बंद हुए उद्योगों के साथ बौलिया लाइम स्टोन उद्योग पर भी बंदी की मार पड़ी है। अनुमंडल के नौहट्टा प्रखंड की बौलिया क्वायरी पूरे देश में मशहूर थी। दशकों पूर्व यहां चूना पत्थर खदान के अलावा काफी दूर से लोग रोपवे देखने के लिए आते थे।

By JagranEdited By: Published: Thu, 15 Jul 2021 10:33 PM (IST)Updated: Thu, 15 Jul 2021 10:33 PM (IST)
रोहतास के बौलिया लाइम स्टोन उद्योग पर भी पड़ी बंदी की मार
रोहतास के बौलिया लाइम स्टोन उद्योग पर भी पड़ी बंदी की मार

उपेंद्र मिश्र, संवाद सहयोगी, डेहरी ऑन-सोन: रोहतास। जिले में एक एक कर बंद हुए उद्योगों के साथ बौलिया लाइम स्टोन उद्योग पर भी बंदी की मार पड़ी है। अनुमंडल के नौहट्टा प्रखंड की बौलिया क्वायरी पूरे देश में मशहूर थी। दशकों पूर्व यहां चूना पत्थर खदान के अलावा काफी दूर से लोग रोपवे देखने के लिए आते थे। क्वायरी बंद होने से अब यहां वीरानगी नजर आती है। लगभग 200 एकड़ में फैले परिसर में बने क्वार्टर और गेस्ट हाउस में घास फूस उग आया है। एक समय ऐसा था कि यहां एक छोटा सा शहर बसता था, लेकिन अब पूरी तरह सन्नाटा पसरा हुआ है।

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ब्रिटिश काल में सन् 1919 से यहां अंग्रेजों ने रोपवे का निर्माण कर चूना पत्थर निकालने का काम शुरू किया था। बौलिया क्वायरी के पास बने 21 किलोमीटर लंबे इस रोपवे का इस्तेमाल कैमूर पहाड़ी के खदानों से तब के बिहार और अब के झारखंड के जपला में स्थित सीमेंट फैक्ट्री में लाइम स्टोन ले जाने के लिए होता था, लेकिन साल 1992 में यह कंपनी बंद हो गई। जिससे बौलिया लाइम स्टोन उद्योग पर भी ताला लटक गया। तब से यहां पर यह काम पूरी तरह बंद है। देश के कई राज्यो से यहां रहकर काम करने वाले मजदूर समेत अन्य कामगार यहां से विस्थापित हो गए। इस कारण इलाके में पूरी तरह बदहाली देखी जा सकती है। कबाड़ के भाव बिक गई क्वायरी की सामग्री :

रोहतास में पड़ने वाली बौलिया क्वायरी की भी अधिकांश सामग्री कबाड़ के भाव बिक गई। रोपवे केवल इतिहास के पन्नों में सीमट गया है। जपला सीमेंट फैक्ट्री प्राइवेट सेक्टर यूनिट है। साल 2018 में इस कंपनी के सामान को बेचा जा चुका है। सांसद छेदी पासवान ने लोकसभा में उठाया था मुद्दा:

स्थानीय सांसद छेदी पासवान ने 20 नवंबर 2019 को क्वायरी को चालू करने के संबंध में लोकसभा में इस मुद्दे को उठाया था। इस दौरान इस पूरे इलाके में उद्योगों और इसके विकास की स्थिति पर सवाल पूछा था। उन्होंने सरकार द्वारा यदुनाथपुर से लेकर रामडिहरा तक के इलाके के 75 किलोमीटर तक का एक ब्लू प्रिट तैयार करने के बाद यहां मौजूद खनिज संपदा से संबंधित जानकारी भी मांगी थी। माना जाता है कि इस पूरे इलाके में आयरन, मीका और लाइमस्टोन के विशाल भंडार मौजूद है।

तीन हजार कामगार करते थे काम

बौलिया में कंपनी परिसर की पूरी जमीन 282 एकड़ में फैली है। शुरुआती दौर में करीब तीन हजार कामगार ठेकेदारी सिस्टम में काम करते थे। वहीं 1600 मजदूर स्थाई तौर पर कार्यरत थे। यहां पर क्वार्टर की संख्या 200 थी. 1921 में आवास बनने की शुरुआत हुई थी. 1936 में यहां मनोरंजन गृह का निर्माण हुआ था। हार्वे स्टेज के अलावा पक्का मैदान का निर्माण किया गया। एक कच्चा खेल मैदान भी मौजूद था। बेहतर नगरीय सुविधा वाले बौलियां में पानी निकासी की बेहतर व्यवस्था थी. 1938 में यह आया रोहतास उद्योग के अधीन:

इसका माकिलाना अधिकार अंग्रजों के पास था। जिसके बाद अंग्रजों ने इसका मालिकाना अधिकार साहू जैन को सौंप दिया। जिसके बाद यह डालमियानगर उद्योग समूह के अधीन आ गया। उसके बाद बीपी जैन और बाद में सिन्हा ग्रुप बंजारी के अधीन आ गया। 16 फरवरी 1985 को इसमें पहली बार ताला लटका और 15 अगस्त 1990 को दोबारा कार्य शुरू हुआ। कंपनी का नामकरण सोन वैली सीमेंट हो गया। पोर्टलैंड हटा दिया गया। 28 मई 1992 को कंपनी पूरी तरह बंद हो गई। कहते है मजदूर नेता:

स्थानीय क्वायरी के मजदूर नेता पदुम प्रसाद ने बताया कि बौलिया ,चुनहट्टा में आज भी क्वायरी में काम करने वाले मजदूर हैं, जिनका कम्पनी पर भगतान बकाया है। यह मामला हाईकोर्ट के अधीन है। इसके लिए पटना से बकाया फॉर्म भर दिया गया था। कंपनी का स्क्रैप माल भी बेचा जा चुका है और इसकी राशि ठेकेदार द्वारा कोर्ट में जमा कर दी गई है। उन्होंने सरकार से मजदूरों का बकाया भुगतान अभी बाकी है।


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