Rohtas News: 1905 में स्थापित चीनी मिल का अब सिर्फ मुख्य भवन ही शेष, बाकी पर बस गई कॉलोनियां
रोहतास जिले में 1905 में स्थापित चीनी मिल, जो कभी क्षेत्र की समृद्धि का प्रतीक थी, आज केवल एक मुख्य भवन के रूप में शेष है। 1934-35 की सरकारी रिपोर्ट में इसका उल्लेख है, जिसकी उत्पादन क्षमता 1940 में 600 टन तक बढ़ाई गई थी। उस समय, इस क्षेत्र में व्यापक रूप से गन्ने की खेती होती थी, लेकिन अब मिल के स्थान पर कॉलोनियां बस गई हैं।
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बिक्रमगंज में 1905 में स्थापित चीनी मिल का अब मुख्य भवन ही शेष। फोटो जागरण
पार्थ सारथी पांडेय, बिक्रमगंज (रोहतास)। बिक्रमगंज की चीनी मिल डुमरांव राज के सहयोग से कोलकाता के एक व्यवसायी ने स्थापित की थी। यह मिल 1905 में खुली थी और 1950 के दशक में बंद हो गई थी।चीनी मिल का पूरा परिसर आठ एकड़ से अधिक का था, जहां आज चीनी मिल का मुख्य भवन जीर्णशीर्ण स्थिति में खड़ा तो है, लेकिन बाकी जमीन में कॉलोनी बन गई है।
बताया जाता है कि इस चीनी मिल के पास अपनी करीब 50 एकड़ भूमि थी, जिसमें गन्ना का उत्पादन होता था। यहां गन्ना उत्पादन के साथ ही अच्छे व उन्नत किस्म के ईख लगाकर किसानों को दिखाया जाता था व बिचड़ा दिया जाता था, ताकि अच्छा गन्ना इस मिल को उपलब्ध हो सके। 1943 में 9 जनवरी को यहां ईख उत्पादक सहयोग समिति बनी, जिसमें ईख उत्पादक किसान सदस्य होते थे। इसके माध्यम से ईख चीनी मिल प्रबंधन क्रय करता था।
तेंदुनी निवासी रामलाल भगत बताते हैं कि वे बुजुर्गों से सुनते थे कि इस चीनी मिल का नाम मोहनी सुगर मिल था और इसे कोलकाता के किसी व्यवसायी ने स्थापित की थी। बताया जाता है कि इसे डुमरांव राज चीनी मिल भी कहा जाता था। 50 के दशक के अंत मे यह चीनी मिल बंद हो गई। बिक्रमगंज के इस चीनी मिल का उल्लेख शाहाबाद गजेटियर में भी है।
1934 - 35 के एक प्रकाशित सरकारी रिपोर्ट में बक्सर, डेहरी (डालमियानगर) और बिक्रमगंज के डुमरांव राज चीनी मिल का उल्लेख है। इस चीनी मिल की उत्पादन क्षमता पहले 250 टन थी, जिसे 1940 में बढ़ाकर 600 टन तक कर दिया गया था। उस समय इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर गन्ना का उत्पादन होता था। शायद ही कोई गांव व किसान ऐसा होता था जो गन्ना का उत्पादन नहीं करता था।
गन्ना यहां की मुख्य फसल थी। इसी बीच रोहतास उद्योग समूह डालमियानगर ने 1500 टन उत्पादन क्षमता की मिल लगा दी। इसका प्रतिकूल असर बिक्रमगंज और बक्सर की चीनी मिल पर पड़ा।
इसी बीच बिहटा में 850 टन उत्पादक क्षमता की चीनी मिल बन गई और उसका भी असर पड़ा। इसके बाद बिक्रमगंज और बाद में डेहरी और बिहटा की चीनी मिल भी बंद हो गई। बिक्रमगंज केन यूनियन सदस्य धनेश्वर तिवारी बताते हैं कि उनके योगदान से पूर्व ही यहां की चीनी मिल बंद हो गई थी। वे बताते हैं कि चीनी मिल का उपकरण, कल पुर्जा वारसलीगंज चला गया।
चीनी मिल की जमीन पर बस गई बस्ती
बिक्रमगंज चीनी मिल के नाम पर अब यहां केवल मिल का मुख्य भवन है। बाकी जमीन में काफी घर और कई कॉलोनी का निर्माण हो गया है। हालांकि इस जमीन अभी न तो निबंधन होता है न किसी का मालगुजारी रासिद कटता है। चीनी मिल की जमीन के निबंधन पर पूर्णतः रोक है, लेकिन लोग स्टाम्प पर ही खरीद बिक्री कर लेते हैं।
यहां बतौर राजस्व कर्मचारी रह चुके स्थानांतरित राजस्व कर्मचारी जयजीत कुमार ने बताया कि पंजी दो में भी मोहनी सुगर मिल का ही नाम दर्ज है। उन्होंने बताया कि अभी भी डुमरांव राज का न्यायालय में मामला लंबित है। डुमरांव महाराज परिवार का दावा है कि यह जमीन बकास्त जमीन है।
इसको लेकर अभी भी न्यायालय में मामला लंबित है। वहीं जो लोग यहां मकान बनाए हैं उन्हें यह जमीन रघुनाथ साह जो चीनी मिल से जुड़े हुए थे उन्होंने बेच दिया। हालांकि पूर्व में कुछ लोगों की रजिस्ट्री भी हुई है, लेकिन दाखिल खारिज नहीं हुई है।
केन यूनियन अब महज पीडीएस तक सिमटा
बिक्रमगंज केन यूनियन का अपना कार्यालय है। इसी के भवन में एक वर्ष पूर्व तक अनुमंडल पदाधिकारी का कार्यालय किराया पर चलता था। गन्ना खरीदने व चीनी मिल को बेचने के लिए इसका पंजीकरण 1943 में हुआ था। बदले में इसे कमीशन मिलता था और यही आय का मुख्य साधन था।
फिलहाल इसके माध्यम से एक पीडीएस दुकान चलता है। इसमें पूर्व में गन्ना उत्पादक किसान ही सदस्य होते थे। बाद में बहुधंधी समिति जिसे अब प्राथमिक कृषि साख सहयोग समितियां के नाम से जाना जाता है वे ही सदस्य हो गए।
फिलहाल बिक्रमगंज केन यूनियन के बिक्रमगंज, संझौली, सूर्यपुरा, दावथ, काराकाट और भोजपुर जिला के पीरो प्रखंड के तीन पैक्स को मिलाकर 36 पैक्स इसके सदस्य हैं। यही पैक्स अध्यक्ष यहां के अध्यक्ष और ग्यारह सदस्यीय समिति का चुनाव करते हैं।

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