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मंगलाचरण का मतलब होता है मंगल करना : जीयर स्वामी

रोहतास। मंगलाचरण का मतलब होता है मंगल करना। जैसे किसी का विवाह हो रहा हो , उसका भूत, भविष्य, वर्तमान

By JagranEdited By: Published: Fri, 13 Dec 2019 07:10 PM (IST)Updated: Fri, 13 Dec 2019 07:29 PM (IST)
मंगलाचरण का मतलब होता है मंगल करना : जीयर स्वामी
मंगलाचरण का मतलब होता है मंगल करना : जीयर स्वामी

रोहतास। मंगलाचरण का मतलब होता है मंगल करना। जैसे किसी का विवाह हो रहा हो , उसका भूत, भविष्य, वर्तमान की कामना करना ही मंगलाचरण है। इसके लिए पितरों को गीत गाकर, ऋषियों को, भगवान को, देवताओं की स्तुति करना ही मंगलाचरण होता है। समाज में परिवार में जो सुनने वाला हो, उसका मंगल हो। इसीलिए मंगलाचरण किया जाता है। चाहे भजन के रूप में हो या स्तुति के रूप में । तिलौथू प्रखंड के रमडीहरा गांव में आयोजित ज्ञान महायज्ञ में लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी ने यह बातें शुक्रवार को अपने प्रवचन के दौरान कही।

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स्वामी जी ने शुकदेव जी व राजा परिक्षित की कथा का वर्णन विस्तार से किया। कहा कि शुकदेवजी ने परिक्षित को बताया कि जो अच्छे सदाचारी ब्राह्मण हो उसे भगवान का मुख बताया गया है। भगवान के मुख की पूजा करने का मतलब अग्नि का पूजन, रोम का पूजा का मतलब वृक्ष तथा नाड़ी की पूजा से नदियों का, स्वास जो है भगवान का वायु है। भगवान की गति जो है संसार का महायज्ञ का फल मिल गया। भगवान के नेत्र के ध्यान का मतलब अंतरिक्ष का ध्यान कर लिया। उनकी पलकों का ध्यान का मतलब उनकी पलकों का ध्यान करना है। भगवान के पैर के तलवे को ध्यान करते हुए यह मानना चाहिए कि यह पताल लोक है। पैर के अग्र भाग रसातल लोक, दोनों एड़ी का ध्यान का मतलब महातल का दर्शन, जांघों के ध्यान का मतलब महीतल लोक का दर्शन, दोनो पेंडुली का दर्शन परासर लोक की पूजा, घुटनों का दर्शन सुतल लोक का दर्शन, नाभी का दर्शन करने का मतलब हमने आकाश का, भगवान के वक्षस्थल का पूजा करने का मतलब स्वर्गलोक का दर्शन कर लिया। मुख का दर्शन करने का मतलब जन लोक, ललाट का दर्शन करने का मतलब तपोलोक का दर्शन, सिरोभाग का दर्शन सतलोक है। भगवान की भूजा की पूजा करने का मतलब इन्द्र की, कान का ध्यान करने का मतलब दिशा का पूजन, इस प्रकार भगवान के अंगों का ध्यान करने से अलग अलग लोकों के परिक्रमा करने का फल प्राप्त होता है। यदि सारे दुनिया के तीर्थ, व्रत, देवी देवता की पूजा करने की क्षमता नही है तो केवल एक मात्र भगवान नारायण की पूजा कर लिया। जिससे तैंतीस कोटि देवता हैं, सभी देवताओं को सातों लोक की अराधना कर लिया।


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