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दीपावली की तैयारी को ले जुटे कुंभकार

रोहतास। दशहरा के बाद जिले के कुंभकार अब दीपावली की तैयारी में जुट गए हैं। सिवान से मिट्ट

By Edited By: Published: Sun, 01 Nov 2015 06:54 PM (IST)Updated: Sun, 01 Nov 2015 06:54 PM (IST)
दीपावली की तैयारी को ले जुटे कुंभकार

रोहतास। दशहरा के बाद जिले के कुंभकार अब दीपावली की तैयारी में जुट गए हैं। सिवान से मिट्टी लाकर कुंभकार परंपरागत तरीके से चाक के माध्यम से विभिन्न साइज के दीयों को आकार देने में लग गए हैं। इस क्रम में कलश, ढक्कन व लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियां भी बनाई जा रही है। दीपावली के अवसर पर कई घरों में परंपरागत रूप से मिट्टी के बने दीप व लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति की पूजा-अर्चना की जाती है। साथ ही पुरानी मूर्तियों को नदी व सरोवरों में प्रवाहित करने की भी परंपरा है।

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चाइनिज झालर व मूर्ति बन रही चुनौती :

स्थानीय मूर्तिकार जीतन पंडित की मानें तो बाजार आज देशी-विदेशी कृत्रिम बल्व व झालर परंपरागत रूप से मिट्टी का दीया व मूर्ति बनाने वाले कुंभकारों के लिए चुनौती बनते जा रहे हैं। सस्ते चाइनिज झालरों से बाजार पट गया है, जिसकी लोग जमकर खरीदारी भी कर रहे हैं। जबकि धर्म शास्त्रों में मिट्टी के दीये जलाने की बात कही गई है। ऐसे में मिट्टी के दीये बना कर अपनी आजीविका चलाने वाले लोगों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि मिट्टी के दीपक भी ज्यादा महंगे नहीं हैं। उसे बनाने व पकाने में लगने वाले समय व मेहनत को देखा जाय तो बाजार में 40 से 100 रुपए सैकड़ा तक दीया व 25 से 150 रुपए प्रति पीस लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियां बिक रही हैं।

मुफलिसी में कट रही ¨जदगी :

पीढि़यों से चाक पर मिट्टी के दीये, कलश, ढक्कन व मूर्तियां बनाने वाले कुंभकार वर्तमान में चाइनिज व बड़े कंपनियों द्वारा निर्मित झालर व प्रकाश के अन्य उपकरणों के बजार में आ जाने से अपने पुश्तैनी धंधे को ले ¨चतित हैं। शहर के शेरगंज मुहल्ले में चाक चलाने वाले कई कुंभकारों की मानें तो इन कृत्रिम उपकरणों ने इनके रोजगार को लगभग चौपट कर दिया है। नई पीढ़ी अब इस पुश्तैनी धंधे में नहीं उतरना चाहती है। अगर सरकार व समाज ने ध्यान नहीं दिया तो आने वाले दिनों में चाक पर मिट्टी के उपकरण बनाने की बात इतिहास बन कर रह जाएगी।


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